आगरा(ब्यूरो)। इस माहौल में हर उम्र के इंसान के साथ मानसिक तनाव जैसी स्थिति बन रही है और अब टीनएजर्स की समस्या और बढ़ गई है। टीनएजर्स यानि 10-19 साल के बच्चे, टीनएज में करीब 50 फीसदी लोगों को 14 साल की उम्र में किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी होती है। ऐसे में अगर, पेरेंट्स बच्चों को गंभीरता से नहीं लेते तो बच्चों में तेजी से बदलाव आता है, वे पेरेंट्स की बात को अनसुना कर देते हैं। यहीं समय है जब टीनएज को पॉजिटिव नजरिए से सही दिशा दी जा सकती है।
टीनएज में समस्या की वजह
मनोवैज्ञानिक आगरा कॉलेज डॉ। रचना सिंह से जानें टिप्स किसी टीनएजर की मानसिक समस्या बहुत बढ़ रही हो तो पेरेंट्स को एक्सपर्ट की सलाह माननी चाहिए। जानिए कैसे टीनएजर्स की मानसिक समस्याओं का पता लगा सकते हैं। टीनएज में बच्चों पर सामाजिक व्यवहार का भी असर पड़ता है जैसे पारिवारिक कलह, पढ़ाई में ठीक तरह से काम न करना, पेरेंट्स में से किसी एक या दोनों का नहीं रहना, उनका बच्चों पर ज्यादा ध्यान न देना, स्कूल में कोई परेशानी, वित्तीय समस्याएं आदि सब कुछ इसका कारण बन सकता है और ये टीनएजर्स के दिमाग पर काफी गहरा असर डाल सकता है।
ऐसे में बच्चे नहीं सुनते पेरेंट्स की बात
मनोवैज्ञानिक डॉ। पूनम तिवारी ने बताया कि किशोरों को अक्सर उस समय पेरेंट्स को अनसुना करते देखा जाता है, जब वे उनकी आलोचना कर रहे होते हैं। जब पेरेंट्स बच्चों की कमी बता रहे होते हैं तो उनके मस्तिष्क का एक खास हिस्सा प्रभावित होता है। तब उनके दिमाग के उस हिस्से की गतिविधियां तेज हो जाती हैं, जो नकारात्मक भावनाओं से भरा होता है, जबकि उस हिस्से में गतिविधियां कम हो जाती हैं, जो फीलिंग को कंट्रोल करता है और लोगों के विचारों को सुनता है। ऐसे में वे किसी की बात को गंभीरता से नहीं लेते हैं।
पेरेंट्स को समझने में समस्या
एक्सपर्ट के अनुसार पेरेंट्स को सीख मिल सकती है कि जब वे अपने किशोर बच्चों को डांटते-फटकारते हैं तो उनके अंदर नकारात्मक भावनाओं की प्रतिक्रिया हो सकती है। साथ ही उन्हें यह समझने में भी मुश्किल आ सकती है कि वे अपनी भावनाओं पर किस प्रकार नियंत्रण करें। उन्हें अपने माता-पिता की मानसिक स्थिति को समझने में भी दिक्कत आ सकती है।
टीनएज में समस्याएं
-अचानक से पढ़ाई-लिखाई छोड़ देना या स्कूल न जाना।
-किसी भी तरह की सामाजिक गतिविधि में हिस्सा न लेना
-किसी तरह के हाई रिस्क वाले व्यवहार को करना जैसे नशा करना
-गुस्सैल समस्या, किसी और को परेशान करना
-दोस्तों से बातचीत करने में मुश्किल होना
-किसी अन्य बच्चे में दिलचस्पी न दिखाना, दोस्त न बना पाना,अकेला रहना।
-किसी भी एक चीज़ में ध्यान न लगाना, लंबे समय तक कामों को अधूरा छोडऩा।
-एक्टिविटी लेवल में अचानक बदलाव आना
-एक जगह पर न बैठ पाना, किसी चीज के लिए इंतजार न कर पाना।
-सेल्फ-एस्टीम में कमी, किसी भी काम को करने में बहुत ज्यादा डर होना।
-मूड हमेशा बदलता रहना, जैसे फ्र स्ट्रेशन, इरिटेशन, भावनात्मक समस्याएं।
-मनोरंजन की चीजों पर ध्यान न रखना
-जैसे खुद को अलग महसूस करना, अकेले बहुत ज्यादा समय बिताना और आसानी से थकान हो जाना,
-बच्चों द्वारा की जाने वाली एक्टिविटीज में ध्यान न रखना।
टीनएज पर पेरेंट्स और स्कूल टीचर्स की बातें अधिक प्रभावित करती हैं, ऐसे में नकारात्मक रवैया उनको अलग महसूस कराता है। अकेले बहुत ज्यादा समय बिताना और आसानी से थकान होना, एक जगह पर न बैठ पाना, किसी चीज के लिए इंतजार न कर पाना।
डॉ। पूनम तिवारी, मनोवैज्ञानिक आरबीएस कॉलेज
एक एज में बच्चे पेरेंट्स की बात को अनसुना कर देते हैं, जब पेरेंट्स बच्चों की कमी बता रहे होते हैं तो उनके मस्तिष्क का एक खास हिस्सा प्रभावित होता है। तब उनके दिमाग के उस हिस्से की गतिविधियां तेज हो जाती हैं, जो नकारात्मक भावनाओं से भर जाता है।
डॉ। रजना सिंह, आगरा कॉलेज आगरा
माता-पिता के बीच झगड़े बढ़ रहे हैं, इसका बच्चे के दिमाग पर असर पड़ता है और वो सहम जामा है, उसे वो सीन याद आते हैं। पापा ने मम्मी को मारा, तो मां घर छोड़ कर चली गई, इन बातों से बच्चें के मन में क्राइम की भावना पैदा होती है। पेरेंट्स को टीनएज मेें खास ध्यान रखना चाहिए।
डॉ। केसी गुरनानी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक