आगरा(ब्यूरो)। यह कहना है दुनियाभर से जुटे न्यूरो क्षेत्र के विशेषज्ञों का। शनिवार को होटल जेपी पैलेस में वल्र्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोसर्जिकल सोसाइटीज की दो दिवसीय कांफ्रेंस शुरू हुई। दुनिया में न्यूरोसर्जन्स की शीर्ष अंतरर्राष्ट्रीय संस्था वल्र्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोसर्जिकल सोसायटी (डब्ल्यूएफएनएस) का फाउंडेशन एजूकेशन कोर्स भी इस बार शहर में हो रहा है। कार्यक्रम के पहले दिन 35 से अधिक तकनीकी सत्र, वीडियो केस स्टडी और पेपर प्रजेंटेशन व पैनल डिस्कशन हुए।
आयोजन सचिव एवं वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ। अरङ्क्षवद कुमार अग्रवाल ने बताया कि यह फाउंडेशन एजूकेशन कोर्स ऐसा कार्यक्रम है जो दुनिया भर के न्यूरो सर्जन्स को सीखने का एक बेहतरीन अनुभव प्रदान करेगा। तकनीकी सत्रों में यूएसए से आए संस्था के अध्यक्ष प्रो। नेल्सन एम ओयेसिकू ने न्यूरोसर्जरी के भविष्य की दिशा और दशा के बारे में जानकारी दी। भारत के प्रो। बसंत के मिश्रा ने कहा कि नेवीगेशन सिस्टम के जरिए ब्रेन ट््यूमर सर्जरी आसान हुई है। इजरायल के डॉ। एंड्रयू काये ने विभिन्न ब्रेन ट््यूमर में मरीज को खतरे से बाहर निकालने के सभी विकल्पों पर विस्तार से चर्चा की। यूएसए के डॉ। केनन अर्नोटाविक ने पिट््यूटरी ट््यूमर की वजह से दृष्टि दोष को कम करने की तकनीकों पर जानकारी दी। जापान के डॉ। अक्यो मोरिता ने माइक्रोसर्जरी के क्षेत्र का प्रशिक्षण दिया और नई तकनीकों के बारे में बताया। इजराइल के डॉ। यिगल शोशान ने न्यूरोसर्जरी में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के उपयोग पर जानकारी दी। वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ। आरसी मिश्रा ने बताया कि 21वीं सदी में एमआरआई, पैट स्कैन, बेहतर रिजॉल्यूशन युक्त सीटी स्कैन तकनीकों ने खतरों को कम किया है और सफलता दर भी बढ़ी है।
ब्रेन ग्लिओमा गंभीर ट्यूमर
ङ्क्षहदुजा हास्पिटल, मुंबई के बसंत के मिश्रा ने बताया कि ब्रेन ग्लिओमा गंभीर तरह का ट््यूमर होता है। जिसमें ऑपरेशन के बाद 15-20 प्रतिशत तक लोग बच जाते हैं। यह आनुवांशिक होता है। इस बीमारी के लक्षणों में से एक मिर्गी का दौरा है, 30 साल के बाद मिर्गी के दौरे आना ट््यूमर हो सकता है। बच्चों के मामले में ट््यूमर का खतरा नहीं होता। इसके साथ ही एक ही जगह सिरदर्द होने के साथ ही देखने में तकलीफ, हाथ-पैर में सुन्नपन हो तो यह ब्रेन ग्लिओमा के संकेत हो सकते हैं। ऐसे में चिकित्सक से संपर्क करें।
थेरेपी से जल्दी हो सकते हैैं ठीक
दिल्ली के मेदांता हास्पिटल से आए डॉ। वीपी ङ्क्षसह ने कहा कि किसी बीमारी की वजह से शरीर का कोई हिस्सा काम नहीं कर पाता है। ऐसे में रोबोटिक रीहेबिलिटेश थेरेपी के माध्यम से मरीज को जल्दी ठीक किया जा सकता है। रोबोट के माध्यम से हाथ व पैर को कार्य करने लायक बनाने में यह थेरेपी चार से छह हफ्ते का समय ले सकती है, इस दौरान 10 से 30 थेरेपी की सिङ्क्षटग लेनी होती हैं। इसके साथ ही फिजियोथेरेपी, साइकोथेरेपी, स्पीच एंड स्वोलोइंग थेरेपी और आक्यूपेशनल थेरेपी के माध्यम से मस्तिष्क के कई क्षेत्रों के मृत होने के बाद उसके आसपास के क्षेत्रों को विकसित करके रोगी को ठीक किया जा सकता है। यह थेरेपी एक हिस्से के ब्रेन स्ट्रोक, सिर की गंभीर चोट और ब्रेन सर्जरी में काफी कारगर साबित होती है।
तीन स्तर पर हो स्वास्थ्य संरचना
श्री चित्रा तिरूनल इंस्टीट््यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलोजी, तिरुअनंतपुरम के डॉ। संजय बिहारी ने बताया कि जिस तरह से तिरुअनंतपुरम में तीन स्तर पर स्वास्थ्य संरचना बनी हुई है वैसी ही उत्तर प्रदेश में भी होनी चाहिए। इस संरचना में सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव चिकित्सा उपकरण विकास, व स्वास्थ्य विज्ञान साथ में कार्य करता है। इसमें उद्यमी, चिकित्सक, इंजीनियर व विज्ञानी साथ में काम करके सरकार का खर्चा बचा सकते हैं।
न्यूरोसर्जरी का क्षेत्र लगातार विकसित हो रहा है। 21वीं सदी में एमआरआई, पैट स्कैन, बेहतर रिजॉल्यूशन युक्त सीटी स्कैन तकनीकों ने खतरों को कम किया है और सफलता दर भी बढ़ी है।
- डॉ। आरसी मिश्रा, वरिष्ठ न्यूरोसर्जन