आगरा। सुबह के पांच बजे थे और मैैं सो रही थी। अचानक बहुत तेज धमाका हुआ। एकबार तो दिल दहल गया। जब बाहर निकलकर देखा तो आसमान में गहरा काला धुआं छाया हुआ था। न्यूज देखी तो पता चला कि 12 किलोमीटर दूर स्थित एयरपोर्ट पर धमाका हुआ है। मैैं बुरी तरह डर गई थी। वहां जंग की स्थिति थी। फाइटर जेट आसमान में लगातार उड़ रहे थे। उस बीच मुझे लग रहा था कि अब मैैं घर नहीं पहुंच पाउंगी। लेकिन किस्मत से मेरी जान बच गई और मैैं घर पर आ गई हूं। ये बातें आगरा के शास्त्रीपुरम निवासी श्रेया ने कहीं। वह रविवार को ही यूक्रेन से वापस लौटी हैं।

पूरा शहर बंद था
शास्त्रीपुरम निवासी श्रेया सिंह वेस्टर्न यूक्रेन की आईएफएनएम यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैैं। उनकी चार साल की पढ़ाई पूरी हो गई थी। श्रेया ने बताया कि 24 फरवरी को सुबह पांच बजे धमाका होने के बाद वे काफी घबरा गई थीं। टीवी पर खबर देखने के बाद हमें पता चल गया कि अब हालात सामान्य नहीं हैैं। पूरा शहर बंद था। केवल सुपर मार्केट खुले थे। श्रेया और उनके दोस्त सामान लेने के लिए पैदल-पैदल सुपरमार्केट खाने-पीने का जरूरी सामान लेने के लिए गए। तब आसमान में लगातार फाइटर जेट ही गुजर रहे थे। हमें इससे काफी डर लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि कभी हमारे ऊपर भी बम गिर सकता है।

बंकर में कर दिया शिफ्ट
श्रेया ने बताया कि जैसे-तैसे हमने डरते हुए समय काटा। सायरन बजने के बाद हमें बंकर में शिफ्ट कर दिया गया। मेरे साथ 400 लोग उस बंकर में मौजूद थे। हम बहुत घबराए थे। पल-पल काटना भारी हो रहा था। जब भी सायरन बजता, सांसें अटक जाती थीं। बंकर और हॉस्टल में फंसे सभी स्टूडेंट्स एक दूसरे को दिलासा दे रहे थे। घर से मम्मी, पापा के भी लगातार फोन आ रहे थे। तीन दिन इसी डर में जैसे-तैसे कटे।

जगी जिंदगी की आस
श्रेया ने बताया कि 26 फरवरी की रात को रात को एंबेसी और यूनिवर्सिटी की ओर से बताया गया कि सभी लोगों को शनिवार सुबह 9 बजे रोमानिया, हंगरी या पोलैंड के रास्ते होकर भारत ले जाया जाएगा। इस मैसेज ने बम धमाकों के बीच जिदंगी की आस-सी जगा दी। हम सब बंकर में थे, बार-बार घड़ी देख रहे थे। बस बेसब्री से सुबह 9 बजने का इंतजार था। सुबह छह बजे से सब तैयार थे।

लूटपाट की घटना से डर गए
मेयर के क्लीयरेंस के बाद हमने भी रोमानिया बॉर्डर पर जाने का निश्चय किया। हमसे पहले एक बस रोमानिया बॉर्डर के लिए रवाना हुई। हम उस बस में बैठे अपने दोस्तों के संपर्क में थे। हमें बताया गया कि उस बस में सवार छात्रों के साथ यक्रेन के स्थानीय लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी है। उनके रुपए और खाने का सामान लूट लिया। इससे हम और डर गए। इवानो से रोमानिया जाने वाली बसों में सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था। बाद में हम सभी 60 बच्चों ने खुद पैसे इकट्ठे करके बस हायर की और अपने रिस्क पर रोमानिया के लिए निकल पड़े।

मां बोली, सब ठीक हो जाएगा
रोमानिया के लिए बस में बैठते समय हम बहुत डरे थे। हम 60 बच्चों के साथ रोमानिया बॉर्डर भेजे गए। यह 400 किलोमीटर का सफर शनिवार सुबह शुरू हुआ। भगवान का नाम लेते-लेते दहशत के बीच हम देर रात रोमानिया बॉर्डर से 15 किलोमीटर पहले पहुंचे। गाडिय़ों की लंबी लाइन होने के कारण यहां से पैदल ही जाना था। ठंड से ठिठुरती रात और भूख प्यास से बदहाल हम एक दूसरे को हिम्मत बंधाते हुए आगे बढऩे लगे। मां-पिता का चेहरा याद करके पूरे रास्ते आंसू बहाते रहे। मां से बात हुई और फोन कट गया। दो घंटे तक लगातार कोशिश की तो वापस कनेक्ट हुई, ना मां चुप रही और ना मैं। बस रोते ही रहे। मां बोली तू एक बार घर पहुंच जा। सब ठीक हो जाएगा।


अन्य देशों के युवाओं ने की अभद्रता
श्रेया ने बताया कि उन्होंने और उनके साथियों ने तिरंगा झंडा अपने आगे और पीछे लगा रखा था। भारतीय छात्रों को रोमानिया बॉर्डर पर प्रवेश दिया जा रहा था तो वहां मौजूद दूसरे देशों के छात्रों को बुरा लग रहा था। इससे वो हमारे साथ मारपीट पर उतारू हो गए थे। नाइजीरिया की एक लड़की ने मेरे साथ अभद्रता की। वो सभी छात्रों के साथ ऐसा कर रहे थे। वो हमारे साथ जबरन यूक्रेन से बाहर निकलना चाह रहे थे। बॉर्डर पर अचानक से धक्का-मुक्की शुरू हो गई। मेरा फोन गिर गया और मैं भी। धक्का-मुक्की में मेरे ऊपर किसी ने सूटकेस फेंका और मुझे चोट लग गई। मैैं गिर पड़ी और लोग मेरे ऊपर से गुजरने लगे। मेरे साथियों ने मुझे उठाया। इसके बाद फिर वे जैसे-तैसे रोमानिया में एंट्री की प्रक्रिया में शामिल हुए। श्रेया ने बताया कि जब वे रोमानिया पहुंच गए तो उन्होंंने भारत माता की जय के नारे लगाए।

परिजनों को देख छलक पड़े आंसू
रोमानिया बॉर्डर में एंट्री मिलते ही स्थिति बदल गई। एंबेसी के अधिकारियों ने हमारा स्वागत किया। हमारे रहने खाने और एयरपोर्ट तक पहुंचने की बहुत अच्छी व्यवस्था की गई। यक्रेन से रोमानिया पहुंचने के बाद मैं 10 मिनट तक आंखें बंद कर बैठी रही। फोन में नेटवर्क नहीं था, लेकिन मैं मन ही मन अपने घर वालों से कनेक्ट कर उन्हें बताने की कोशिश कर रही थी कि मैं अब सुरक्षित हूं। जैसे ही रविवार रात को हमारी फ्लाइट ने भारत के लिए उड़ान भरी, आंखों से आंसू छलक पड़े। ये केवल मेरा हाल नहीं था, बल्कि फ्लाइट में बैठे अधिकांश बच्चों की आंखें नम थीं। सुबह दिल्ली में मम्मी-पापा और भाई को देखकर उनसे लिपट गई। अब अपने शहर आकर बहुत अच्छा लग रहा है। श्रेया ने बताया कि दिल्ली एयरपोर्ट पर अलग-अलग स्टेट के अधिकारी मौजूद थे। वे यूक्रेन से लौटने वाले लोगों को उनके घर तक पहुंचा रहे हैैं।

श्रेया को देख भावुक हो गईं मां
श्रेया की मां संतोष ने बताया कि बेटी को मुसीबत में फंसने की खबर को सुनकर ही उनका दिल बैठा जा रहा था। उन्हें केवल बेटी की ही चिंता हो रही थी। शुरूआत में तो उससे बात हुई। लेकिन बाद में उससे बात होना भी बंद हो गया था। लेकिन जैसे ही मैैंने मेरी बेटी को देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैैंने उसे गले से लगा लिया.उन्होंने बताया कि उनकी बेटी सकुशल लौट आई, ये उनके लिए सबसे बड़ी बात है।