आगरा(ब्यूरो)। अब यशोदा दस महीने से बेटी से मिलने के लिए अधिकारियों के कार्यालय के चक्कर लगा रही है। वहीं मां से मिलने के लिए बच्ची का भी रो-रोकर बुरा हाल है।
किन्नर को मिली थी लावारिश
टेढ़ी बगिया निवासी यशोदा को आठ साल पहले 2014 में फरुर्खाबाद के एक किन्नर ने नवजात लावारिश शिशु को दिया था। किन्नर को यह बच्ची कचरे में पड़ी मिली थी। उस समय बहुत बीमार भी थी। जिसको लेने के लिए यशोदा पहुंची थी। यशोदा ने नवजात बच्ची को नहला धुलाकर पहले दिन से ही उसका बेटी की तरह पालन पोषण किया। तब से यशोदा बच्ची के स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण को ध्यान में रखते हुए बेहतर परवरिश कर रही है। अब बच्ची आठ साल की हो गई है। यशोदा उसे कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ा रही हैं। पूरा परिवार उसे प्यार दुलार करता है। बच्ची का जन्मदिन एक उत्सव के रूप में हर साल मनाया जाता है। उस दिन सभी रिश्तेदार और परिचितों को दावत भी दी जाती है।
दस महीने बाद वापस लिया बच्ची को
अक्टूबर 2021 को किन्नर यशोदा की अनुपस्थिति में घर आकर बच्ची को घुमाने के बहाने घर से ले गया। उसके बाद बच्ची को वापस करने में आनाकानी करने लगा। फरुर्खाबाद पुलिस तथा चाइल्ड लाइन के हस्तक्षेप पर बच्ची को बरामद कर प्रार्थिया के सुपुर्द करा दिया। कुछ दिनों बाद चाइल्ड लाइन ने बच्ची को आगरा बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत कराया। बाल कल्याण समिति ने बच्ची को बाल गृह में भेज दिया लेकिन 12 दिन बाद समिति ने प्रार्थिया को फिट पर्सन घोषित कर बच्ची को यशोदा को बच्ची सौंप दी। वहीं बच्ची की पढ़ाई लिखाई कराने और देखभाल करने को आदेश दिया।
हर 15 दिन में पेेश की समिति के समक्ष
हर 15 दिन बाद बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा। यशोदा हर 15 दिन बाद बच्ची को लेकर बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत होती रही। हर तारीख पर वह हस्ताक्षर कराते रहे। बाल कल्याण समिति लगातार फॉलोअप करती रही। सभी संतुष्ट थे लेकिन इसके आठ माह बाद बाल कल्याण समिति ने यशोदा को बच्ची के साथ बुलाया, कुछ दिन बच्ची को बाल गृह में रखने की कहकर बच्ची को राजकीय बाल गृह में भेज दिया। यशोदा को देने से इंकार कर दिया है।
मदद को सामने आए समाजसेवी
बच्ची को पाने के लिए यशोदा अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है। यशोदा ने चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस से मदद मांगी। वह उनके साथ डीएम कार्यालय में उनकी अनुपस्थिति में एसीएम तृतीय से मिली। उनसे कहा कि बाल कल्याण समिति के आदेश से बच्चे पर मानसिक नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। उसकी पढ़ाई छूट गई है। पारस ने कहा कि पीडि़ता को स्थानीय स्तर पर न्याय नहीं मिला तो वे हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे।