आगरा(ब्यूरो)। इसके लिए आगरा को सबसे पहले चुना गया है। आगरा में एक पायलट प्रोजेक्ट के चलाया जाएगा। इसके तहत प्रत्येक टीबी मरीज की यूडीएसटी (यूनिवर्सल ड्रग ससेप्टिबिलिटी टेस्टिंग) की जाएगी।

सैैंपल को लैब तक पहुंचाया जाएगा
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ। सुखेश गुप्ता ने बताया कि इस पायलट प्रोजेक्ट में टीबी डिपार्टमेंट का सहयोग फाइंड संस्था स्ट्राइड अभियान के तहत करेगी। इस पायलट प्रोजेक्ट में प्रत्येक टीबी मरीज का सैैंपल उपचार स्थल पर संस्था के सहयोगियों द्वारा लिया जाएगा और सैैंपल को लैब तक पहुंचाया जाएगा। इससे हमें प्रत्येक टीबी मरीज की यूडीएसटी की जांच कराने में कामयाबी हासिल होगी। डॉ। सुखेश गुप्ता ने बताया कि किसी भी रोग की सही पहचान करने के लिए विभिन्न जांच की जाती हैैं। इसमें नई तकनीकों का विकास होता है। जैसे- एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, सीटी-स्कैन और एमआरआई। ठीक वैसे ही टीबी की जांच के लिए स्पुटम की जांच, एनएटी(न्यूक्लिक एसिड एंप्लिफिकेशन टेस्टिंग) और एलपीए जांच की जाती हैैं। ऐसे ही यूडीएसटी की जांच की जाएगी। इससे टीबी मरीज को ट्रीटमेंट देने में एक्यूरेसी आएगी। उन्होंने बताया कि अभी तक हम सभी मरीजों की ही यूडीएसटी जांच कर पाते थे लेकिन अब 100 परसेंट मरीजों की जांच हो पाएगी।

बैक्टीरिया को भी समाप्त किया जा सकेगा

डीटीओ ने बताया कि टीबी दो तरह की होती है। एक पल्मोनरी टीबी और दूसरी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी। पल्मोनरी टीबी में ट्यूबरकुलोसिस के बैक्टीरिया फेफड़ों को प्रभावित करते हैं। टीबी के 90 परसेंट से ज्यादा मामलों में फेंफड़ों में संक्रमण होता है। जब टीबी के बैक्टीरिया फेफड़ों के अलावा शरीर के दूसरे अंग जैसे ब्रेन, लिवर, पेट, गले आदि को प्रभावित करते हैं तो इन्हें एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। कई मरीजों को डीआरटीबी (ड्रग रजिस्टेंट टीबी) होता है। उन मरीजों पर साधारण ट्रीटमेंट असर नहीं करता है। यूडीएसटी कराने से पता चल सकेगा कि मरीज में डीआरटीबी की शिकायत तो नहीं है। यह पता चलने पर मरीज को एक्यूरेट ट्रीटमेंट देने में आसानी होगी। इससे डीआरटीबी के बैक्टीरिया को भी समाप्त किया जा सकेगा।

वरदान साबित हो सकेगा
एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ। संतोष कुमार ने बताया कि सभी मरीजों का यूडीएसटी होना टीबी मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकता है। इससे टीबी मरीजों को कौन-सी दवा असर करेगी और कौन-सी दवा असर नहीं करेगी। यह पता चल जाएगा। इससे मरीज को जिस दवा की जरूरत होगी वही दवा दी जाएगी। जिस दवा से मरीज को रजिस्टेंट है वह उसे नहीं दी जाएगी। इससे दवा से होने वाले साइड इफेक्ट से भी बचाव हो सकेगा। अभी आगरा में यह प्रोजेक्ट शुरू हो रहा है। बाद में फाइंडिग्स के बाद में इसे पूरे देश में भी शुरू किया जा सकता है।

शहरी क्षेत्र में इस प्रोजेक्ट को संचालित किया जाएगा। फाइंड संस्था इसमें सहयोग करेगी। इससे टीबी मरीजों का अधिक एक्यूरेसी के साथ उपचार किया जा सकेगा।
- डॉ। अरुण श्रीवास्तव, सीएमओ

आगरा में टीबी मरीजों की यूडीएसटी जांच करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जा रहा है। इससे मरीजों के ट्रीटमेंट में एक्यूरेसी आएगी।
- डॉ। सुखेश गुप्ता, डीटीओ

100 परसेंट टीबी मरीजों की यूडीएसटी की जांच हो जाएगी तो यह वरदान साबित होगा। इससे मरीज को होने वाले दवा के रजिस्टेंट का पता चल सकेगा।
- डॉ। संतोष कुमार, प्रोफेसर, एसएनएमसी

प्रोजेक्ट स्ट्राइड हुआ लॉन्च
प्रोजेक्ट स्ट्राइड को शनिवार को होटल भावना क्लार्क इन में लॉन्च किया गया। इसमें डीटीओ डॉ। सुखेश गुप्ता, एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ। जीवी सिंह, प्रोफेसर डॉ। संतोष कुमार, स्टेट टीबी एंड डेमोस्टे्रेशन सेंटर के डायरेक्टर डॉ। संजीव लवानियां, आरटीपीएमओ डॉ। गोपाल गर्ग ने वक्तव्य दिए। स्टेट टीबी सेल के ज्वॉइंट डायरेक्टर डॉ। शैलेंद्र भटनागर ने ऑनलाइन प्रतिभाग करके एड्रेस किया। इस दौरान फाइंड संस्था से डॉ। सरबजीत चड्ढा, अक्षया, मिर्जा आदिल, सीफार की डिवीजनल कोऑर्डिनेटर राना बी., डीटीसी से कमल सिंह, अरविंद यादव, शशिकांत पोरवाल व अन्य मौजूद रहे।

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