आगरा(ब्यूरो)। याचिकाकर्ताओं ने स्थानीय अधिकारियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर यमुना में बिना उपचारित सीवेज डालने का आरोप लगाया था।
आगरा में सीवेज प्रबंधन के संबंध पर पीठ ने कहा कि नालों में बहने वाले 286 एमएलडी सीवेज में से केवल 58.25 एमएलडी का दोहन किया गया। सीवेज नेटवर्क में अपशिष्ट जल के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। हालांकि नौ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता 220.75 एमएलडी थी, लेकिन इसकी उपयोग क्षमता 175 एमएलडी रही। खंडपीठ ने कहा कि उपचारित सीवेज अभी भी इसके उपयोग के बजाए यमुना में छोड़ा जा रहा है। चेयरपर्सन जस्टिस एके गोयल की पीठ ने ट्रिब्यूनल के पहले के आदेशों के अनुसरण में कहा, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) ने मथुरा में यमुना नदी के प्रदूषण को स्वीकार करते हुए अलग-अलग रिपोर्ट दायर की थी और 131 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) अनुपचारित सीवेज का निर्वहन किया था। इसमें और आगरा में आवश्यक उपचारात्मक कार्रवाई करने में अधिकारी विफल रहे। कहा कि पीठ, इसमें न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल और अफरोज अहमद भी शामिल हैं। इन लोगों ने मथुरा में अप्रयुक्त नालों और नदी में अनुपचारित सीवेज के निर्वहन पर ध्यान दिया और कहा कि आगरा में सीवेज प्रबंधन में भारी कमियां थीं। कहा कि रिपोर्ट के अनुसार, मथुरा में तीन अप्रयुक्त या आंशिक रूप से टैप किए गए नाले थे, जबकि वृंदावन में 13 नालों में से दो अभी भी अप्रयुक्त थे, और ऐसे नालों के अवरोधन के लिए कोई समय निर्धारित नहीं था। इसके अलावा, प्रदूषित पानी को उन नदियों में छोड़ा जा रहा है, जो पीने योग्य पानी ले जाने वाली हैं।
मुख्य सचिव को दिए ये निर्देश
एनजीटी ने राज्य के मुख्य सचिव को एक माह के भीतर संबंधित अधिकारियों की बैठक बुलाकर दोनों शहरों में उपचारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। एनजीटी ने कहा कि आगरा में बैठक में इस बात पर विचार किया जाए कि मौजूदा नौ एसटीपी का पूरी तरह से उपयोग किया जाता है। चार महीने के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश देते हुए अधिकरण ने मामले को आगे की कार्यवाही के लिए 23 अगस्त को सूचीबद्ध किया।
यमुना को स्वच्छ बनाना बहुत जरूरी है। यमुना सिर्फ पर्यावरण के लिए ही नहीं बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। यमुना की बदहाली दूर होने से शहर का भी विकास हो सकेगा।
ब्रज खंडेलवाल, पर्यावरणविद्
यमुना की दशा सुधारने के लिए सबसे जरूरी है कि इसमें पानी रहे। इसके लिए जल्द से जल्द यमुना पर बैराज का निर्माण शुरू होना चाहिए। जिससे नदी में हमेशा पानी बना रहे।
डॉ। देवाशीष भट्टाचार्य, पर्यावरणविद्