आगरा। शाहगंज, नरीपुरा के भीमनगरी में आर मधुराज हॉस्पिटल बेसमेंट में संचालित हो रहा था। डायरेक्टर राजन परिवार के साथ ग्राउंड फ्लोर पर रहते हंै। हॉस्पिटल के बराबर से एक दुकान है। जिसमें फोम व अन्य सामान रखा हुआ था। परिवार मेें बड़ा बेटा लवी, बेटी सिमरन उर्फ शालू, छोटा बेटा ऋषि, पत्नी राजरानी हैं। राजन मंगलवार रात अपने जन्मदिन की पार्टी मनाकर स्टाफ के साथ लौटे थे। उनकी बेटी शालू रात को 3 बजे जयपुर से लौटी थी। आसपास रहने वाले लोगों ने बताया कि वह जयपुर से परीक्षा देकर लौटी थी। हॉस्पिटल में 5 स्टाफ के कर्मचारी और 3 मरीज एडमिट थे। पिता गोपीचंद ने बताया कि वे बाहर सो रहे थे। पौने पांच बजे उन्हें शटर की आवाज सुनाई दी। उन्होंने उठकर देखा तो दुकान में रखे फोम से लपटें उठ रहीं थीं। उन्होंने शटर उठाकर शोर मचाना शुरूकर दिया। बेटा राजन को आवाज लगाई। उस समय लाइट नहीं थी। इस पर उन्होंने बेसमेंट में एडमिट मरीजों व स्टाफ के कर्मचारियों को बाहर निकाला। इसके बाद पिता ने राजन को बच्चों को बाहर निकालने को कहा। तब तक आग आग ने विकराल रूप ले लिया। घर में धुआं भर गया।


मैं राजन को अंदर नहीं जाने देता
पिता ने बिलखते हुए बताया कि मैंने राजन से बच्चों को बाहर करने को कहा, जब राजन अंदर गया, तो फिर वापस नहीं आया। मैं देखता रहा। लेकिन वो वापस नहीं आया। बेटे की बहू राजरानी सबमर्सिबल चलाने को ऊपर गई। वहीं फंस गई। पड़ोस में रहने वाले मोहित ने बताया कि वे उनके बड़े भाई थे। जब उसको जानकारी हुई तो वो अंदर गया। जब तक धुआं घर में इस कदर भर गया था कि आसपास खड़े लोग भी एक-दूसरे को नहीं दिखाई दे रहे थे। फर्श पर राजन पड़े हुए थे। सिमरन बेड पर थी। किसी की अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। काफी देर बाद फायर ब्रिगेड की दो गाड़ी पहुंची। बगल से चाहर पैलेस होटल से पाइप लेकर आग बुझाने का प्रयास किया। फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने स्थानीय लोगों की मदद से लपटों पर काबू पाने का प्रयास किया। राजन फर्श पर पड़े मिले, बेटी सिमरन बेड पर और छोटा बेटा ऋषि बाथरूम में पड़े मिले। तीनों को एसएन हॉस्पिटल ले जाया गया। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टर ने तीनों को मृत घोषित कर दिया। पत्नी राजरानी और बेटे लवी की हालत गंभीर होने पर उनको खेरिया मोड़ स्थित हॉस्पिटल में एडमिट कराया।

वर्ष 2013 में शुरूकिया था हॉस्पिटल
गोपीचंद के तीन बेटे हैं। इनमें बड़ा बेटा राजन उर्फ राजेन्द्र कुमार, मनोज और राजू हैं। राजन पहले संजय प्लेस स्थित एक निजी हॉस्पिटल में काम करते थे। इसके बाद वर्ष 2013 में जगनेर रोड स्थित भीम नगरी में प्लॉट लेकर हॉस्पिटल तैयार कराया। हॉस्पिटल के बाहर जो बोर्ड लगा हुआ था। उस पर डॉ। ईशू शर्मा, डॉ। मनोज शर्मा और डॉ। अनूप शर्मा का नाम लिखा हुआ था। एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया कि हॉस्पिटल संचालित करने को लेकर फायर विभाग की एनओसी नहीं है।


मरीजों को बचाने में परिजनों की हुई मौत
जिस समय दुकान में आग लगी हुई थी। उस दौरान राजन हॉस्पिटल के पेशेंट को बाहर निकालने में जुटे थे। जब तक आग ने बड़ा रूप ले लिया। वे घर में फंसे बच्चों को निकालने पहुंचे, उन्होंने पत्नी को तो बाहर खींचकर कर दिया। वे धुआं से बेहोश हो गई। खुद आग में घिर गए। रूम मेें धुआं भरने से तीनों का दम घुटने से मौत हो गई।

बेसमेंट में था हॉस्पिटल, ग्राउंड फ्लोर पर रहता थे हॉस्पिटल संचालक
- लपटें देख पहले मरीजों को सुरक्षित बाहर किया, परिवार लपटों में घिरा
- बड़ा बेटा और पत्नी को गंभीर हालत में किया गया हॉस्पिटल में एडमिट
- क्षेत्रीय लोग बोले, सूचना के बाद 45 मिनट देरी से पहुंची फायर ब्रिगेड
- अधिकारी बोले हॉस्पिटल के पास नहीं थी फायर विभाग की एनओसी


इनकी हुई मौत
हॉस्पिटल संचालक: राजन (42)
बेटी::::सिमरन उर्फ शालू (19)
बेटा:::ऋषि (15)


इनका चल रहा इलाज
पत्नी:::राजरानी
बेटा::::लवी