Agra। दुष्परिणामों में बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग, विभिन्न बीमारियां, प्राकृतिक आपदाएं, तापमान में वृद्धि आदि समस्याएं बढ़ रही हैं। गुरुवार (आज) वल्र्ड नेचर कंजरवेशन डे पर प्राकृतिक संरक्षण के लिए हर किसी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी, तभी वल्र्ड नेचर कंजरवेशन डे सार्थक हो सकेगा। जिले में पिछले पांच वर्षों मेें लाखों की संख्या में पौधरोपण किया गया है। लेकिन हरियाली का ग्राफ बजाय बढऩे के घट रहा है। फोरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 में जिले में हरित क्षेत्र 6.78 प्रतिशत था। 273 किमी। मेें वन एरिया फैला हुआ था। इसके बाद 2019 में हरित क्षेत्र 6.69 में रह गया है। वहीं वन एरिया 262.6 किमी रह गया। 2021 में भी स्थिति यथावत बना हुआ है। वहीं जिले में पौधरोपण की बात करें वर्ष 2018 में जिले में 20 लाख पौधे रोपे गए। 2019 में 28 लाख पौधे, वर्ष 2020 में 38 लाख और वर्ष 2021 में 45 लाख पौधे रोपे गए। इस बार जिले में 51 लाख पौधे रोपे गए हैं।

सूख रही जमीन की कोख
जिले में लगातार अंडरग्राउंड वाटर लेवल का ग्राफ गिर रहा है। जिले मेें 10 ब्लॉक डार्क जोन में है। इसके बाद भी अंधाधुंध तरीके से जल दोहन किया जा रहा है। जिले के भूजल सर्वेक्षण के आंकड़ों की बात करें तो जिले मेें 88.70 फीसदी के हिसाब से भूजल दोहन किया जा रहा है। इसके चलते 69-70 सेमी प्रतिवर्ष वाटर लेवल का ग्राफ गिर रहा है। शहर के कई इलाको में तेजी से अंडरग्राउंड वाटर लेवल में गिरावट दर्ज की गई है। इसमें कमलानगर में 40 मी, दहतोरा में 22.10 मी, टेढ़ी बगिया में 7.46 मी, कालिंदी विहार में 8.76 मी, टीपी नगर में 11.33 मी, बल्केश्वर में 18.25 मी की गिरावट दर्ज की गई है। यमुना किनारे के एरिया में भी वाटर लेवल में गिरावट दर्ज की गई है। जिले में जो तालाब हैं उनको प्रशासन अभी तक अतिक्रमण से मुक्त नहीं करा पाया है। सरकारी और निजी भवनों में लगे वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बदहाल पड़े हैं। इसके चलते जिले में जल संचयन को पलीता लग रहा है। इसके चलते शहर और देहात में कई स्थानों पर पानी की गुणवत्ता खराब हो गई है।

जमीन भी हो रही प्रदूषित
जिले में जमीन की मिट्टी भी प्रदृषित हो रही है। इसके पीछे मुख्य वजह खेती में अंधाधुंध कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना। इससे मृदा की उवर्रक क्षमता कम हो रही है। मृदा ऊसर होती जा रही है। इसके चलते मृदा से उपजाऊ होने का गुण कम होता जा रहा है। इसके अलावा फैक्ट्री से निकलने वाला कचरा, सीमेंट, कांच, लकड़ी, घरों व होटलों से निकलने वाले कचरे का सही से निस्तारण नहीं होने मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है। इसके अलावा प्लास्टिक और पॉलीथिन को भी फेंक दिया जाता है। ये वर्षों तक गल नहीं पाती है। जमीन के ऊपर एक लेयर बना लेती है। नगर निगम द्वारा अभी तक पॉलीथिन के निस्तारण के लिए कोई प्लांट स्थापित नहीं किया जा सका है। वहीं सीमेंट और बिल्डिंग मेटेरियल के निस्तारण के लिए भी लगाया गया सीएंडडी प्लांट का संचालन शुरूनहीं हो सका है।

सूखती नदियां घटती हरियाली
जिले में नदियां सूखती जा रही है। इसके चलते हरियाली का स्तर भी घटता जा रहा है। वर्षो से बहुप्रतीक्षित बैराज भी मूर्तरूप नहीं ले सका है। अगर बैराज का निर्माण हो जाता तो नदियों में जलस्तर का ग्राफ भी बढ़ता यमुना की बात करें तो इसमें 67 नाले गिर रहे हैं। जो यमुना को प्रदूषित कर रहे हैं। हरियाणा से यूपी तक 95 मील के दायरे मेें फैली हुई यमुना नाला बनकर रह गई है। जिले में सात नदियों में से अब दो तीन नदियां भी शेष बची हैं। अन्य नदियां विलुप्त हो चुकी हैं या अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं। जो नदिया अब गायब हो चुकी हैं, उनमें वाण गंगा, किवाड़ नदी, उंटगन नदी शामिल हैं। जो बची है। उनमें चंबल, पार्वती, खारी नदी और यमुना रह गई है।


जिले में नहरों की स्थिति

- नहरों का नेटवर्क: 1874 किमी
- आगरा नहर की मुख्य लम्बाई 160 किमी
- एफएस ब्रांच 93 किमी
- आगरा नहर की जल क्षमता 2100 क्यूसेक
- जिले में कुल तालाब: 3687

वन्य जीवों में आ रही कमी
जिले में कीठम सेंचुरी में विदेशों से आने वाले पक्षियों की संख्या में कमी आयी ग्लोबल वार्मिग के चलते पहले की अपेक्षा विदेशी पक्षियों का कलरव कम हुआ है। बता दें, कीठम बर्ड सेंक्च्युरी में 10 हजार पक्षियों का डेरा हर समय रहता है। इसके अलावा सर्दियों के गुलाबी मौसम में 100 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी हर बार आते हैं। इसमें पैराडाइज, फ्लाईकेचर, इंडियन पिट्टा, गोल्डल ओरिऑल, पेंटेड स्टॉर्म, व्हाइंट वेटगेल, व्हाइट ब्राउडेड वेटगेल आदि पक्षी आते हैं। इसके अलावा जोधपुर झाल पर भी साइबेरिया समेत यूरोप एशिया से पक्षी आते हैं।

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