आगरा(ब्यूरो)। हमने इसकी पूरी कहानी जानी है पंजाब की रहने वाली लाजवंती से। जो इन दिनों आगरा के ताज महोत्सव में अपनी फुलकारी की कला को लोगों तक पहुंचा रही हैं।

देश-विदेश में फुलकारी की डिमांड
फुलकारी का चलन सातवीं सदी से माना जाता है। पंजाब की फुलकारी आर्ट की डिमांड देश-विदेशों में है। इसकी शुरूआत पाकिस्तान के मुल्तान से की गई थी। यह कढ़ाई मुख्य रूप से भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाकों में की जाती थी। इसके बाद देश-विदेश में बड़े स्तर पर इस आर्ट को पसंद किया जाने लगा।

कपड़ों पर उतारे जाते हैं 52 डिजाइन
भारतीय संस्कृति में पंजाब का योगदान अधिक माना जाता हैं। चाहे यहां का संगीत हो या खानपान, सभी को पसंद किया जाता है। इसी परंपरा का हिस्सा है पंजाब की यह कढ़ाई है, जिसे फुलकारी आर्ट कहा जाता है। फुलकारी वो कला है जिसके बिना पंजाब का जिक्र अधूरा है। पंजाब में लाजवंती कंचन, पराठा बूटी, चोप, सूरजमुखी जैसे फुलकारी के 52 डिजाइन कपड़ों पर उतारे जाते हैं।

पंजाब में महिलाएं रख रहीं दशकों से जिंदा आर्ट
फुलकारी दो शब्दों से मिलकर बनी है। फूल और कारी यानी फूलों की कलाकारी। फुलकारी में दुपट्टे या सादे सूती के कपड़े पर फूलों की कलाकारी की जाती है। पंजाब में महिलाएं दशकों से इस कला को जिंदा रखे हैं। वहीं महिलाओं और युवतियां इसे काफी पसंद करती है, पंजाब में कुर्ता, सलवार और दुपट्टा पहनने का चलन है।

फुलकारी में सिल्क के धागों का प्रयोग
फुलकारी की उत्पत्ति सातवीं सदी से मानी जाती है। पंजाब की फुलकारी पूरी दुनिया में मानी जाती है। इसकी जड़ें पाकिस्तान के मुल्तान से जुड़ी हैं। यह कढ़ाई मुख्य रूप से विभाजन से पहले पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाकों में इस आर्ट को बनाया जाता था, फुलकारी में सिल्क धागों का प्रयोग किया जाता है और इसमें ज्यादातर लाल, पीले नारंगी रंगों का प्रयोग किया जाता है। पंजाब में शादी कार्यक्रम पर महिलाएं अपनी बेटियों को फुलकारी आर्ट के गिफ्ट देती हैं।

लाजवंती ने फुलकारी आर्ट से पद्मश्री
पंजाब स्थित पटियाला के त्रिपड़ी इलाके में रहने वाली लाजवंती का कहना है कि विभाजन के बाद भारत आई मेरी नानी के साथ यह कला पाकिस्तान से भारत आई थी। पांच वर्ष की उम्र में नानी को देखकर मेरे भी हाथ में क्रोशिया पर चलने लगे। शुरू मेें बहुत अच्छा नहीं, लेकिन कुछ समय के बाद बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।

महिलाओं के लिए लाजवंती बनी नजीर
लगातार हार्डवर्क के बाद शौक जुनून में बदल गया। डेढ़ साल में ही इतनी माहिर हो गई कि फुलकारी आर्ट के अलग-अलग डिजाइन बनाने लगी। मेरे डिजाइन देख लोग दंग रह जाते। यकीन नहीं करते कि इतनी छोटी उम्र में कोई ऐसी कसीदाकारी कर सकता है। इसी कला की बदौलत मैंने न केवल पद्मश्री अवार्ड पाया बल्कि देश की लाखों में महिलाओं के लिए नजीर बनी है। महिलाओं को आत्मनिर्भर रहने का संदेश दिया।

रोजी-रोटी का जरिया बनी आर्ट
लाजवंती बताती हैं कि फुलकारी की कला को हजारों महिलाओं को सिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी हूं। वर्तमान में भी मेरे साथ पंजाब, हरियाणा, यूपी व राजस्थान तक की करीब 700 महिलाएं जुड़ी हैं। ज्यादातर जरूरतमंद हैं, जिनका गुजारा मुश्किल से होता था। आज इस कला की बदौलत वह अच्छी रोजी-रोटी तो कमा ही रही हैं, अन्य महिलाओं को भी सिखा रही हैं।

फुलकारी को नए कलेवर में लाने की कोशिश
पदम श्री अवार्डेड लाजवंती बताती हैं कि लड़कियां सूट व साड़ी पहनना ज्यादा पसंद नहीं करती हैं। उन्हें स्टॉल, क्रॉप टॉप व शार्ट कुर्ती ज्यादा पसंद है। इसलिए उनके हिसाब से इन कपड़ों पर फुलकारी के नए नए डिजाइन बना रही हूं। पहले केवल रेशम के धागों से फुलकारी की कढ़ाई होती थी, लेकिन अब इसमें स्टोन, मोती, जरकन और गोटा वगैरह का इस्तेमाल भी होने लगा है।

फुलकारी विदेशी महिलाएं भी खूब पसंद करती हैं। मैं अर्जेंटीना, कोलंबिया, चिली, जर्मनी में अपने कपड़ों की प्रदर्शनी लगा चुकी हूं। वहां इसे काफी पसंद किया गया। फुलकारी वाले कपड़ों की आज भी अच्छी खासी मांग है।
लाजवंती, पद्मश्री अवार्डेड


लाजवंती मेरी मां है ये उन्हीं से सीखा है, अभी काम को बहुत अच्छी तरह तो नहीं लेकिन धीरे-धीरे संभाल रही हंू, मां के साथ उनका सहयोग कर रही हूं, वो अब बुजुर्ग हो चुकी है, उनको सहारे की जरुरत है।
संध्या, लाजवंती की बेटी