आधी से ज्यादा दुकानें खाली पड़ीं
आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा पंचकुइयां स्थित नॉर्मल कंपाउंड में बनाई गई जूता मंडी का वर्ष 2010 में लोकार्पण हुआ था। 6870 वर्ग मीटर में बनी जूता मंडी पर 21 करोड़ रुपए की लागत आई थी। यहां 280 दुकानें जूता दस्तकारों के लिए बनाई गई थीं। जूता दस्तकारों ने जूता मंडी में रुचि नहीं ली। यहां अब भी 147 दुकानें और 22 गोदाम खाली पड़े हैं। एडीए ने वर्ष 2021 में इनकी बिड खोली थी, लेकिन किसी ने रुचि नहीं ली। एडीए की खाली पड़ी दुकानों को अब ओडीओपी योजना में शामिल लेदर प्रोडक्ट््स के लिए आवंटित करने की योजना है। बुधवार को लखनऊ में अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव आवास एवं नियोजन नितिन रमेश गोकर्ण के समक्ष प्रेजेंटेशन भी दिया गया था। जूता मंडी में ग्राउंड फ्लोर जूता दस्तकारों के लिए रिजर्व रहेगा। फस्र्ट व सेकेंड फ्लोर लेदर प्रोडक्ट््स के लिए रहेंगे। इसमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग का सहयोग भी लिया जाएगा, इससे कि इच्छुक कारोबारी यहां आए।
ओडीओपी से किस तरह फायदा
शहर में तैयार किए जाने वाले लेदर प्रोडक्ट्स को ओडीओपी में शामिल किया गया है। इनमें लेदर से तैयार होने वाले शू के साथ अन्य प्रोडक्ट्स भी शामिल हैं। इनमें लेदर बेल्ट, पर्स, बैग आदि शामिल हैं। अब इनसे जुड़े व्यापारियों को भी जूता मंडी में दुकान आवंटित की जा सकेगी।
ओडीओपी में शामिल लेदर प्रोडक्ट््स को जूता मंडी में शामिल किए जाने का प्रस्ताव तैयार कराया जा रहा है। शासन से इस पर सैद्धांतिक सहमति मिल गई है।
- चर्चित गौड़, उपाध्यक्ष, एडीए
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जूूता मंडी पर नजर
21 करोड़ से कराया गया निर्माण
6870 स्क्वायर मीटर एरिया में बनाया गया
280 दुकानें हैं
147 दुकानें अब तक जूता मंडी में पड़ी हैं खाली
6-18 लाख तक दुकान की कीमत
01 रेस्टोरेंट
01 बैंक कार्यालय
22 गोदाम
01 प्रदर्शनी हॉल
06 फूड कोर्ट
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नहीं लग सके पंख
आगरा के जूता को देश विदेशों तक पहुंचाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 2008 में जूता मंडी की नींव रखी थी। जूता प्रदर्शनी का इस्तेमाल शहर के बिल्कुल सेंटर में किया गया, जहां से आसानी से दूसरे शहरों व राज्यों से व्यापारी जूता मंडी तक पहुंच सके। इस प्रदर्शनी को आगरा में स्थापित करने का उद्देश्य इतना था कि छोटे और बड़े जूता कारोबारी एक छत के नीचे आकर व्यापार कर सके। हर वैरायटी हर क्वॉलिटी का जूता व्यापारियों को एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो। इस वजह से आगरा को एक नई पहचान मिले लेकिन जूता मंडी का ये उद्देश्य साकार नहीं हो सका। निर्माण पूरा होने के 13 वर्ष बाद भी सभी दुकानों का आवंटन नहीं हो सका।