एक्ट के तहत होता है कंपनी का गठन
फाइनेंशियल एक्सपर्ट दीपिका मित्तल बताती हैं कि कोई भी चिटफंड, निजी कंपनी या फिर एनबीएफसी बनती है तो वह किसी न किसी एक्ट के तहत बनती है। इसमें कहीं भी कुछ गलत नहीं है। लेकिन जब रूल्स और रेग्युलेशन का वायोलेशन शुरू हो जाता है तो वहां गलत हो जाता है। मान लीजिए अगर बैंक की ओर से एफडी पर 7-7.50 परसेंट तक का ब्याज दिया जा रहा है और कोई चिट फंड या प्राइवेट कंपनी इंवेस्टेड अमाउंट पर 9 से 9.50 परसेंट तक का ब्याज दे रहा है तो इस निवेश को सुरक्षित माना जा सकता है। लेकिन अगर इससे अधिक इंट्रेस्ट देेने के बारे में बताया जा रहा है तो वो रिस्क की कैटेेगिरी में है। चिट फंड या प्राइवेट कंपनियों के लिए बने एक्ट में भी दो परसेंट ब्याज के वेरीएशन की अनुमति सरकार भी देती है। यानी बैंक में सेविंग अकाउंट और एफडी पर मिलने वाली ब्याज से दो परसेंट अधिक ब्याज चिट फंड और प्राइवेट कंपनियां ऑफर कर सकती हैं। इससे अधिक ब्याज देने पर सरकार की ओर से प्रतिबंध है।

4 वर्ष में पैसा डबल कैसे?
तहसील परिसर में चिट फंड कंपनियों के फॉर्म जमा करने पहुंच रहे अधिकतर पीडि़तों को तीन से चार वर्ष में पैसा डबल करने का झांसा दिया गया। लेकिन कुछ वर्ष पैसा जमा करने के बाद ही कंपनी गायब हो जाती है। फाइनेंशियल एक्सपर्ट दीपिका मित्तल बताती हैं कि इस तरह के झांसे से व्यक्ति खुद बच सकता है। वह प्राइवेट कंपनी की स्कीम को सरकारी संस्थाओं की स्कीम से कंपेयर करे। मान लीजिए अगर पोस्ट ऑफिस की कोई स्कीम 9 से 10 वर्ष में पैसा डबल कर रही है तो तीन से चार वर्ष में पैसा किस तरह डबल हो सकता है। यानी इस तरह की स्कीम में रिस्क अधिक या कहें इंवेस्टमेंट डूबने की पूरी आशंका रहती है। बाद में होती भी यही है।

टारगेट ग्रुप पर करते हैं फोकस्ड
चिट फंड कंपनियां अधिकतर टारगेट ग्रुप फोकस्ड वर्क करती हैं। इसके लिए वह एजेंट को मोटा कमीशन देती हैं। इस तरह के क्षेत्र को तलाशती हैं, जहां कम पढ़े-लिखे लोग रहते हैं या फिर ग्रामीण क्षेत्र होता है। जहां बैंकिंग सिस्टम की एप्रोच अच्छी नहीं होती, वह क्षेत्र भी इन कंपनियों के टारगेट पर होता है। यहां एजेंट को भेजकर लुभावनी स्कीम का प्रचार प्रसार कराया जाता है। बाद में लोगों से अमाउंट कलेक्शन भी एजेंट द्वारा घर-घर जाकर कराया जाता है। घर बैठे अमाउंट जमा होने और लुभावनी स्कीम, सहूलियत और लालच इन दोनों के झांसे में आकर लोग इन कंपनियों में पैसा लगाना शुरू कर देते हैं।

क्या होता है चिट फंड
चिट फंड स्कीम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का समूह या पड़ोसी आपस में वित्तीय लेन देन के लिए एक समझौता करें। इस समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाती है। मैच्योरिटी पीरियड पूरा होने पर ब्याज सहित लौटा दी जाती है। चिट फंड को कई नामों जैसे चिट, चिट्टी, कुरी से भी जाना जाता है। चिट फंड के माध्यम से लोगों की छोटी सेविंग को इकट्ठा किया जाता है। चिट फंड अक्सर माइक्रोफाइनेंस संगठन होते हैं। देश में चिट फंड का रेगुलेशन चिट फंड अधिनियम, 1982 के द्वारा होता है।

एमएलएम की तर्ज पर कार्य
चिट फंड की सफलता का राज यह है कि इन कंपनियों का बिजनेस ऐसे एजेंटों के माध्यम से चलता है जो कि अपने आस-पास के लोगों, रिश्तेदारों को जानते हैं। इसलिए इन लोगों से पैसा निवेश करवाने में आसानी होती है। कंपनियां ग्रामीण और टाउन इलाकों में ज्यादा सक्रिय रहती हैं। बाजार में फैले उनके एजेंट साल, महीने या फिर दिनों में जमा पैसे पर दोगुने या तिगुने मुनाफे का लालच देते हैं। अर्थात चिट फंड कंपनियों द्वारा लुभावनी योजनाओं (पॉन्जी स्कीम) के जरिए कम समय में बहुत अधिक मुनाफा देने का दावा किया जाता है। कंपनियां निवेश की रकम का 25 से 40 फीसदी तक एजेंट को कमीशन के तौर पर देती हैं। जिसके कारण ये एजेंट अपने सगे सम्बन्धियों का पैसा भी इनमें लगवा देते हैं। धीरे-धीरे चिट फंड कंपनियां इस काम को मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) में तब्दील कर देती हैं। इन चिट फण्ड कंपनियों में अक्सर मौजूदा एजेंटों को इस स्कीम में अन्य लोगों को जोडऩे पर और भी अधिक कमीशन दिया जाता है, जिससे इनका नेटवर्क दिन रात बड़ा होता जाता है।


पैसा कहां इंवेस्ट करती हैं चिट फंड कंपनियां

- शेयर बाजार
- रियल एस्टेट
- होटल
- मनोरंजन और पर्यटन कारोबार
- माइक्रोफाइनेंस

चिट फंड में पैसा क्यों फंस जाता है?
हर चिट फंड कंपनी अपने एजेंटों का नेटवर्क तैयार करने के लिए पिरामिड की तरह काम करती है। जमाकर्ता और एजेंट को लालच दिया जाता है। ताकि वो नया सदस्य लाएं और उसके बदले में कमीशन लें। इस प्रक्रिया में आरंभिक निवेशकों को परिपक्वता राशि या भुगतान नए निवेशकों के पैसे से किया जाता है। यही क्रम चलता रहता है। समस्या तब आती है, जब पुराने निवेशकों की संख्या (अर्थात देनदारियां) नए निवेशकों (नए निवेश) से ज्यादा हो जाती है। जब कैश फ्लो में असंतुलन या कमी आ जाती है और कंपनी लोगों को उनकी मैच्योरिटी पीरियड पर पैसे नहीं लौटा पाती है, तो चिट फ ंड कंपनी पैसा लेकर गायब हो जाती है।


लोग कैसे बचें?
किसी चिट फंड कंपनी में पैसा लगाना हो तो सबसे पहले यह चेक करें कि जिस राज्य में वह कंपनी है क्या वह कंपनी उस राज्य रजिस्ट्रार के पास रजिस्टर्ड है या नहीं? जब भी किसी एजेंट के संपर्क में आएं तो उसके झूठे और बड़े-बड़े रिटर्न के लालच में न आएं। जिस स्कीम में मेम्बर बनाकर कमीशन दिलाने की बात हो उससे तो बिल्कुल सतर्क ही रहें।


सरकार ने चिट फंड और प्राइवेट कंपनियों के लिए अधिकतम रिटर्न तय किया है। इससे अधिक वह निवेशकों को ऑफर कर रही हैं तो उस इंवेस्टमेंट के रिस्क में और असुरक्षित होने की अधिक आशंका रहती है। इसको लेकर अवेयर रहने की जरूरत है।

सीए दीपिका मित्तल, फाइनेंशियल एक्सपर्ट


निवेश के दौरान अधिक लालच में न आएं। जिस कंपनी या स्कीम में निवेश करें, उसके बारे में अच्छी से पड़ताल कर लें। जिससे निवेश सुरक्षित रहे।

सीए विवेक अग्रवाल