आगरा(ब्यूरो)।गोस्वामी जी ने अवधी में काव्य रचना की, परंतु ब्रजभाषा पर भी उनका उतना ही अधिकार था। उनकी विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली आदि रचनाओं में ब्रजभाषा का साहित्यिक सौंदर्य देखने योग्य है। ब्रज भाषा के बिना हिंदी साहित्य का इतिहास लिखना नामुमकिन सा है। ये बातें ब्रजभाषा के प्रख्यात विद्वान डॉ। शैलेंद्र कृष्ण भट्ट ने कहीं। वह ब्रज संवाद केंद्र द्वारा आयोजित दो दिवसीय ब्रज साहित्य उत्सव के सेकेंड सेशन को संबोधित कर रहे थे।

इतिहास भी साहित्य का हिस्सा
इससे पहले ब्रज संवाद केंद्र द्वारा आयोजित दो द्विवसीय ब्रज साहित्य उत्सव का शुभारंभ शनिवार को कैलाशपुरी रोड स्थित भावना क्लार्क में हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्योत्सव की भूमिका प्रांत प्रचार प्रमुख केशवदेव शर्मा ने रखी। प्रथम सत्र में विषय इतिहास पुनर्लेखन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि, रायपुर के कुलपति डॉ। बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि भारत में ऋ षियों के काल से चिंतन, मंथन की परंपरा रही है। जीवन की दृष्टि का विकास चिंतनमनन से होता है। इतिहास भी साहित्य का हिस्सा है। इतिहास आंकड़ेभर या राजा महाराजाओं की कहानियां नहीं है। हमारे साथ बौद्धिक छल करके भारत, भारतीयता और भारत के महापुरुषों के बारे में भारतीय जनमानस को आत्महीनता के गर्त में धके ला गया। इतिहास को आत्महीनता से निकालकर आत्म गौरव में लाना है। औपनिवेशिक काल में अतीत के इतिहास को स्वाभिमान शून्य बनाकर लंबे समय तक विदेशी शासन करते रहे। इतिहासकार डॉ। कृष्णचंद्र पांडेय ने देश-विदेशों में भारतीय संस्कृति की विराटता की चर्चा करते हुए कहा कि इतिहास के तथ्यों को भुलाया नहीं जा सकता। भारत के इतिहास की हजारों वर्ष पुरानी परंपरा है। इतिहासकार डॉ। विशन बहादुर सक्सेना ने कहा कि भारतीय इतिहास के वास्तविक तथ्यों का दमन कर असत्य की अवधारणा स्थापित की गई। इतिहास का पुनर्लेखन देश की संस्कृति की अस्मिता और सांस्कृतिक मूल्यों को सुरक्षित करना है। उन्होंने इतिहास के परिष्कार पर बल दिया।

भक्तिकाल में निश्चित हो चुका था क्षेत्र
सेकेंड सेशन के विषय हिंदी साहित्य में ब्रजभाषा का योगदान विषय पर केंद्रीय हिंदी संस्थान की निदेशिका डॉ। वीना शर्मा ने ब्रजभाषा में दिए अपने संबोधन में कहा कि ब्रजभाषा को प्रशस्त करने में ब्रज के कविगणों, गीतकारों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भक्ति भाव से भरा हुआ अपार साहित्य नित्य नए ढंग से संवरता रहा। उन्होंने कहा कि भक्तिकाल में ही ब्रजभाषा का क्षेत्र लगभग निश्चित हो चुका था। श्रंगार तथा वात्सल्य जैसे कोमलतम भावों की विशेष सम्पे्रेषण क्षमता इस भाषा में विकसित हो चुकी थी। वृंदावन के ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के प्रकाशन अधिकारी डॉ। गोपाल शरण शर्मा ने ब्रज की प्राचीन पांडुलिपियों और ग्रंथों के संरक्षण करने की योजना पर प्रकाश डाला। तृतीय सत्र में स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रज के योगदान विषय पर चर्चा करते हुए शाहजहांपुर से आए स्तंभकार अमित त्यागी, डॉ। शशी गोयल और पत्रकार राज नारायण ने विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन साहित्य उत्सव के संयोजक मधुकर चतुर्वेदी ने किया। आभार विश्वसंवाद केंद्र के मंत्री डॉ। मुनीश्वर गुप्ता ने दिया। अतिथियों का स्वागत विभाग प्रचार प्रमुख और साहित्य उत्सव के सर्व व्यवस्था प्रमुख मनमोहन निरंकारी, कवियत्री डॉ। रूचि चतुर्वेदी, सीए अभिषेक जैन, आदेश तिवारी, विजय सामा, विजय कुमार गोयल, सुनील जैन, मणि चढ़ा, पूरन तरकर, विनीत शर्मा ने किया। कार्यक्रम में संघ के प्रांत सह प्रचार प्रमुख कीर्ति कुमार, डीजीसी राजस्व अशोक चौबे, रवि चौबे, श्रुति सिन्हा, मनोज कुमार आदि नगर के साहित्यकार, कविगण, शोधार्थी, महाविद्यालयीन छात्र/छात्राएं उपस्थित रहे।