आगरा(ब्यूरो)। यूनिवर्सिटी में रोजाना किसी न किसी शिक्षक और कर्मचारियों से लखनऊ की एसटीएफ यूनिट द्वारा पूछताछ कर फर्जीवाड़े की जानकारी हासिल की जा रही है, शुक्रवार को यूनिवर्सिटी परिसर में पहुंची टीम ने लेखा विभाग में कर्मचारियों से पूछताछ की। वहीं प्रो। विनय पाठक के समय किए गए भुगतान के बारे मेें भी जानकारी हासिल की। इस दौरान एजेंसी के अलावा निर्माण कार्य में लगी कंपनियों को कब और कितना भुगतान किया इसकी डिटेल मांगी गई है।
संविदा नियुक्ति पर भी सवाल
तत्कालीन प्रभावी कुलपति प्रो। विनय कुमार पाठक ने संविदा पर टीचर्स की भी नियुक्ति की थी, इस पर अब सवाल उठने लगे हैं। सूत्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी में पढऩे वाले स्टूडेंट्स को टीचर्स बना दिया गया है, इसके पीछे की वजह क्या है, इसकी जानकारी हासिल की जा रही है। बताया जा रहा है ऐसे सात मामले हैं। प्रो। अशोक मित्तल को भी नियुक्ति के मामले में राज्यपाल द्वारा कार्य से वितर रखा गया था बाद में उनके द्वारा स्वेच्छा से इस्तीफा दिया गया।
कुलपति मित्तल ने की खर्चों में कटौती
यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति प्रो। अशोक मित्तल द्वारा की गई, 92 संविदा नियुक्ति में से 88 फिर से अप्वाइंटमेंट किया गया था, जबकि विभाग की जरुरत के अनुसार चार नियुक्ति अतिरिक्त की गई थीं। इसके अलावा लाखों रुपए के वेतन भोगी लीगल सलाहकार के अलावा अन्य ऐसे पदों को खत्म किया गया था, जो वर्षों से मोटी रकम ऐंठ रहे थे। वहीं एजेंसी और प्रकाशन पर भी अतिरिक्त खर्च नहीं किया गया था।
प्रो। पाठक का रहा कमीशन पर फोकस
अंबेडकर यूनिवर्सिटी के अस्थाई कुलपति प्रो। विनय कुमार पाठक को यूनिवर्सिटी में होने वाले फर्जीवाड़े और घोटाले के अलावा शैक्षिकस्तर को बेहतर करने भेजा गया था। राज्यपाल द्वारा उनको इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन प्रो। पाठक के कार्यकाल के दौरान रिजल्ट, एग्जाम, स्टूडेंट्स की समस्या पर फोकस नहीं किया गया। जबकि बड़े निर्माण कार्य, एजेंसी को भुगतान जैसे मामलों को गंभीरता से लिया गया। इसमें संविदा पर नियुक्ति भी भ्रष्टाचार से जुड़ी एक कड़ी है। एसटीएफ प्रभारी राकेश कुमार का कहना है कि अभी इस मामले में जांच जारी है।