आगरा(ब्यूरो)। ऐसे में वह एग प्रिजर्व करने की प्रक्रिया को अपना रहे हैैं। इससे वह समय रहते अपने कैरियर पर भी फोकस कर पा रहे हैैं और बाद में सेटल होने के बाद में अपने अनुसार बेबी भी प्लान कर पा रहे हैैं। आगरा में आईवीएफ (इंट्रो-विट्रो फर्टिलाइजेशन) का कारोबार भी तेजी से पनपा है।


रेनबो आईवीएफ की डायरेक्टर डॉ। जयदीप मल्होत्रा ने बताया कि 1998 में एक अगस्त को यूपी का पहला आईवीएफ बेबी जन्मा। इसके बाद से इंफर्टिलिटी से परेशान लाखों कपल्स को इस तकनीक से पैरेंट्स बनने का सपना पूरा हुआ है। इंदिरा आईवीएफ आगरा की डॉ। रजनी पचौरी ने बताया कि आईवीएफ तकनीक से पत्नी के अंडे और पति के शुक्राणु को निकालकर आईवीएफ लैब में फर्टिलाइज कराया जाता है। इसके बाद बने एंब्रयो को पत्नी के गर्भाशय में डाला जाता है। इसके बाद में नॉर्मल प्रेग्नेंसी की तरह ही गर्भवती बच्चे को जन्म देती है। यह पूरी तरह से नॉर्मल प्रक्रिया है।

गायनोकोलॉजिस्ट और इंफर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ। महिमा उपाध्याय ने बताया कि अब फीमेल करियर ओरिएंटेड हो गई हैैं। वह अपनी रिप्रोडक्टिव हेल्थ के कारण करियर में पीछे नहीं रहना चाहती है। ऐसे में महिलाएं 20 से 25 साल की उम्र में ही अपने एग्स को प्रिजर्व करा रही हैैं। इससे वह अपने करियर गोल को अचीव करने के बाद में शादी करके हेल्दी बेबी को जन्म दे सकती हैैं। उन्होंने बताया कि जिन महिलाओं को स्वास्थ्य कारणों से अपनी ओवरी को हटवाना पड़ता है उनके लिए यह एग प्रिजर्व करने की प्रक्रिया वरदान के समान है। उन्होंने बताया कि यदि कोई महिला कैंसर से पीडि़त है, खासकर ओवेरियन कैंसर या यूटरिन कैंसर होने पर महिलाओं की ओवरी तक को निकालना पड़ जाता है। ऐसे में वह एग को प्रिजर्व करा लेती हैैं और बाद में वह मां बन सकती हैैं। यह चलन तेजी से बढ़ रहा है।

कैसे और कहां कर सकते हैैं एग प्रिजर्व
डॉ। रजनी पचौरी ने बताया कि 2022 में एआरटी (असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेग्यूलेशन) बिल लागू होने के बाद में आईवीएफ की प्रक्रिया में नियम बन गए हैैं। इसके अनुसार प्रत्येक आईवीएफ सेंटर को दो तरह के लाइसेंस दिए जाते हैैं। लेवल वन लाइसेंस के तहत कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है। जबकि लेवल-2 लाइसेंस के तहत एग को प्रिजर्व किया जा सकता है। लेवल-2 लाइसेंस वाले सेंटर पर एग को प्रिजर्व किया जाता है। डॉ। रजनी ने बताया कि एग प्रिजर्वेशन की प्रक्रिया में फीमेल को बेहोश किया जाता है। यह प्रक्रिया ओटी में होती है।

क्या खर्चा आता है?
डॉ। महिमा उपाध्याय ने बताया कि एग प्रिजर्व करने की प्रक्रिया में 80 हजार से एक लाख रुपए तक का खर्चा आता है। इसमें छह महीने तक एग को प्रिजर्व करने का रेंट शामिल है। आगे इसे अलग-अलग सेंटर अलग-अलग रेट पर समय को बढ़ाते हैैं।

एग-स्पर्म डोनेशन भी
आपने विक्की डोनर मूवी देखी होगी। कई आईवीएफ सेंटर्स पर युवा महिलाएं अपने एग और युवा पुरुष अपना सीमन डोनेट भी करते हैैं। यह बिजनेस भी तेजी से बढ़ा है। एक्सपर्ट बताते हैैं कि पहले तो युवा अपनी कमाई के तौर पर देखते थे और कई बार अपने एग और सीमन डोनेट करने के बदले मोटी रकम लेते थे। लेकिन एआरटी कानून आने के बाद में अब एक महिला या एक पुरुष पूरे जीवन में एक बार ही अपने एग या सीमन डोनेट कर सकते हैैं।

अफवाहों से रहें दूर
डॉ। रजनी पचौरी बताती हैैं कि आईवीएफ में नॉर्मल प्रेगनेंसी की तरह ही बच्चा जन्म लेता है। इसमें केवल एंब्रयो आईवीएफ लैब में फर्टिलाइज होता है। इसमें भी नॉर्मल या सिजेरियन दोनों तरह से सिचुएशन के अनुसार डिलीवरी हो सकती है। ऐसी भी अफवाह होती है कि डॉक्टर्स शुक्राणु या अंडा बदल देते हैैं। जबकि यह पूरी तरह से असत्य है। डॉक्टर्स बिना पति-पत्नी की सहमति के शुक्राणु या अंडा नहीं बदल सकते। डीएनए के जरिए आराम से पता किया जा सकता है कि बच्चा किसका है। आईवीएफ प्रेगनेंसी में भी गर्भवती घर का काम कर सकती है। बच्चे भी पूरी तरह से नॉर्मल पैदा होते हैैं। नई तकनीक के कारण आईवीएफ 80 से 90 परसेंट तक सफल हैै।

आईवीएफ से ट्विंस ज्यादा होते हैैं
डॉ। रजनी ने बताया कि आईवीएफ में ट्विंस ज्यादा होते हैैं इसका कारण है कि आईवीएफ एक्सपर्ट एंब्रयो में दो बच्चे बनाते हैैं एक फेल हो तो दूसरा बरकरार रहे। लेकिन ज्यादातर दोनों ही सफल हो जाते हैैं ट्विंस बच्चे ज्यादा पैदा होते हैैं।

छिपाते हैैं कपल्स
आईवीएफ एक्सपट्र्स बताते हैैं कि आईवीएफ तकनीक इंफर्टिलिटी से परेशान लोगों के वरदान की तरह है, लेकिन आज भी इसे लोग छिपाते हैैं। वह आईवीएफ प्रेगनेंसी को भी नॉर्मल प्रेगनेंसी ही बताते हैैं।

विदेश से भी आ रहे मरीज
दुनियाभर में भारत में आईवीएफ की सुविधाएं अन्य देशों की अपेक्षा सस्ती हैैं। इसलिए भारत में आईवीएफ कराने के लिए लोग विदेश से आते हैैं। आगरा उत्तर भारत में आईवीएफ का बड़ा केंद्र बनकर उभरा है इस कारण यहां पर भी यूएई, कतर, साउदी जैसे देशों से इंडियन ओरिजिन के मरीज आते हैैं और अपना उपचार कराते हैैं।

यह लोग कर रहे एग प्रिजर्व
-ओवेरियन कैंसर की मरीज
-यूटेरिन कैंसर की मरीज
-करियर ओरिएंटेड महिलाएं

महिलाओं जो आईवीएफ से हो सकती है प्रेगनेंट
- मीनोपॉज हो गया हो
- एंड्रोमेट्रोसियोसिस की मरीज
- नसबंदी हो गई हो वह महिला
- उम्र अधिक होने से प्रेगनेंसी न हो रही हो
- नले बंद हो गए हों
- अंडे नहीं बन रहे हों
- अंडे की कमी हो गई हो

इन पुरुषों को पड़ती है जरूरत
- जिनकी नसबंदी हो गई हो
- शुक्राणु कम हों
- शुक्राणु में चाल न हो
- शुक्राणु निल हों

15 आईवीएफ सेंटर हैैं आगरा में

26 साल पहले आगरा में जन्मा था यूपी का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी
15 परसेंट लोगों में हो रही इंफर्टिलिटी की समस्या
200 आईवीएफ तकनीक से जन्म हो रहा आगरा में

इन देशों से भारत में आ रहे उपचार कराने
- यूएई
- कतर
- साउदी अरब

एग प्रिजर्व का चलने तेजी से बढ़ा है। जो महिलाएं करियर पर फोकस करने के कारण देर से शादी करना चाहती हैैं या फिर किसी बीमारी के कारण अंडे खत्म होने का खतरा है वह एग प्रिजर्व कर रही हैैं।
- डॉ। महिमा उपाध्याय, इंफर्टिलिटी एक्सपर्ट, अनुराम हेल्थ केयर

भारत में देर से शादी करने का चलन बढ़ा है। देर में शादी करने से महिलाओं में एग की संख्या कम होती है। आईवीएफ और एग प्रिजर्वेशन से इंफर्टिलिटी की समस्या का उपचार संभव है।
- डॉ। रजनी पचौरी, आईवीएफ एक्सपर्ट, इंदिरा आईवीएफ आगरा

आगरा में ही यूपी का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा हुआ था। तब से अब तक आगरा में आईवीएफ की आधुनिक तकनीक बढ़ी हैैं। यहां पर विश्वस्तरीय आईवीएफ लैब हैैं। यहां पर नि:संतानों को संतान प्राप्त करने का सुख मिल रहा है।
- डॉ। जयदीप मल्होत्रा, डायरेक्टर, रेनबो आईवीएफ