आगरा(ब्यूरो)। इसमें 108 से अधिक तकनीकी सत्र, कार्यशालाएं हुईं और शोधपत्र पढ़े गए। देश-दुनिया से आए न्यूरो विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। एक-दूसरे से ज्ञान साझा किया।

न्यूरो विशेषज्ञों से सामने रहती है चुनौती
डॉक्टर्स ने चर्चा करते हुए कहा कि ब्रेन जब बिगड़ता है तो शरीर के हर अंग को अपना शिकार बना सकता है। इसलिए न्यूरो विशेषज्ञों के सामने हमेशा ही दोहरी चुनौती होती है। ब्रेन डिजीज के अधिकांश मामलों में एक चिकित्सक सबसे पहले जान बचाने के बारे में सोचता है, इसके बाद किसी तरह की शारीरिक विकलांगता को बचाने के बारे में सोचता है, यदि शारीरिक विकलांगता से बचा नहीं जा सकता तो विकलांगता को मामूली स्तर पर लाने की कोशिश करता है।

इन्होंने दिए व्याख्यान
आयोजन सचिव व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ। अरविंद कुमार अग्रवाल ने बताया कि सम्मेलन के दूसरे दिन भी मस्तिष्क से जुड़ेे गहन मुद्दों पर चर्चा हुई। हॉल ए में डॉ। एसके गुप्ता, डॉ। अरूण श्रीवास्तव, डॉ। द्वारकानाथ श्रीनिवास, डॉ। अनीता जगेटिया, डॉ। पी सरत चंद्रा, हॉल बी में डॉ। दीपक झा, डॉ। सचिन बोरकर, डॉ। अनीता महादेवन, डॉ। मंजुल त्रिपाठी, डॉ। टोसीकी एंडो, हॉल सी में डॉ। सुरेश डंगानी, डॉ। दिलीप पानीकर, डॉ। सुरेश नैयर, डॉ। दलजीत सिंह, डॉ। आरएन साहू, डॉ। विवेक टंडन, हॉल डी में डॉ। एन मुथुकुमार, डॉ। सुधीर दुबे, डॉ। आलोक अग्रवाल, डॉ। पटकर सुशील वसंत, डॉ। कार्तिकेयन एम, डॉ। विलसन पी डिसूजा आदि ने महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए। सम्मेलन के तीसरे दिन भी विशेषज्ञों द्वारा न्यूरो क्षेत्र में आधुनिक इलाज, इसके विकास और नई तकनीकों पर चर्चा होगी।

सफलता दर सावधानी पर निर्भर
शरीर के अन्य रोगों की तरह ही हम कई बार दिमागी रोगों की सफलता दर पर बात करने लगते हैं। दरअसल कोई भी रोग लाइलाज नहीं है। अगर समय रहते बीमारी की पहचान हो जाती है तो इसका इलाज मुमकिन हो जाता है। बीमारी गंभीर होने पर ठीक होने में थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है। वैसे यह लक्षणों और अवस्था पर निर्भर करता है। जैसे ब्रेन स्ट्रोक के अधिकांश मामलों में समय से अस्पताल पहुंचना जरूरी है।
-डॉ। अरविंद कुमार अग्रवाल, वरिष्ठ न्यूरोसर्जन

मरीज परिवार का हिस्सा बन जाता है
एक न्यूरो विशेषज्ञ का प्रशिक्षण बहुत अलग होता है। यह सीखने के बाद भी चलता रहता है। भारत में मस्तिष्क के रोगों की जो स्थिति है उसकी वजह से न्यूरोसर्जन्स पर भारी दबाव है। उन्हें हर वक्त मरीजों को देखते रहना है। इसलिए प्रशिक्षण काल में ही अपने आप को इस बात के लिए तैयार कर लेना चाहिए कि यहां निजी कुछ भी नहीं है। जो है मरीजों के लिए ही है। मरीज परिवार का हिस्सा बन जाता है। रिश्तेदारों का भरोसा चिकित्सक पर होता है। अगर आप इस सब में संतुलन नहीं रख पाएंगे तो आपके काम पर असर पड़ेेगा।
-डॉ। वरिंदर पाल सिंह, प्रेसिडेंट, न्यूरोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया

ब्रेन के कारण आ सकती है विकलांगता
ब्रेन में जब कोई समस्या होती है तो ऐसा नहीं है कि वह केवल ब्रेन तक ही सीमित हैं बल्कि इसका असर हमारे पूरे शरीर पर पड़ सकता है जैसे लकवा या कोमा, इसके अलावा शरीर के किसी अंग में विकलांगता आ सकती है और वह काम करना बंद या कम कर सकता है।
- डॉ। आरसी मिश्रा, वरिष्ठ न्यूरोसर्जन