आगरा(ब्यूरो)। न्यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एनएसआई) का जेपी होटल में आयोजित अधिवेशन रविवार को संपन्न हुआ। अधिवेशन के अंतिम दिन सोसाइटी ने सरकार से सिफारिश की कि ड्रॉवजी ड्राइविंग यानि उनींदेपन में गाड़ी चलाने के खिलाफ देश भर में एक कैंपेन शुरू किया जाए। सोसाइटी इसके लिए कदम बढ़ाने को तैयार है। सोसाइटी के अध्यक्ष रहते हुए डॉ। वरिंदर पाल सिंह ने कहा कि 100 मीटर की रफ्तार पर चलने वाला व्यक्ति तीन से पांच सेकेंड में ही 100 मीटर तक आगे जा सकता है। नशा दुर्घटना कराता है क्योंकि नशे में गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति प्रतिक्रिया देने में समय लगाता है। वहीं गाड़ी चलाते वक्त अगर नींद आ जाए तो यह और भी खतरनाक है क्योंकि ऐसा ड्राइवर प्रतिक्रिया दे ही नहीं पाएगा।

फॉल्स कॉन्फिडेंस कराता है दुर्घटनाएं
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक एक महीने में 25 में से एक वयस्क 18 या इससे अधिक आयु का गाड़ी चलाते समय सो जाने की सूचना देता है। जबकि अधिकांश सूचना ही नहीं देते है। खर्राटे लेने वाले या सात घंटे से कम नींद लेने वाले लोगों में गाड़ी चलाते वक्त झपकी लगने की संभावना अधिक रहती है। डॉक्टर्स ने कहा कि वर्ष 2017 में 91 हजार दुर्घटनाओं में उनींदापन ही कारण था, इनमें 50 हजार को चोटें आई थीं और 800 मौत हुई थीं। 2020 की पुलिस रिपोर्टों के आधार पर 633 मौत हुईं।


लापरवाही बना सकती है शिशु को शिकार
आयोजन सचिव व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ। अरविंद कुमार अग्रवाल ने बताया कि सभी कहीं न कहीं एक स्वस्थ बच्चे की कामना करते हैं और उसके लिए किसी तरह के जतन में कमी नहीं रखते हैं लेकिन कहीं न कहीं गर्भावस्था के दौरान हुई लापरवाही के कारण शिशु जन्म दोष स्पाइना बाइफिडा का शिकार हो सकता है। इस बीमारी के कारण बच्चा चलने-फिरने में लापरवाह हो सकता है, मौत भी हो जाती है। इसमें रीढ़ की हड्डी और मेरूदंड सही तरह नहीं बन पाते हैं। इस दोष को न्यूरल ट्यूब दोष की श्रेणी में शामिल किया गया है। सोसाइटी सरकार से यह भी सिफारिश करती है कि फॉलिक एसिड की कमी को पूरा कर इस बीमारी को होने से रोका जा सकता है। प्रेग्नेंसी में फॉलिक एसिड दिया जाता है, लेकिन कई बार देर हो चुकी होती है। ऐसे में अगर प्रेग्नेंसी प्लान करते समय ही इस पर ध्यान दिया जाए तो इसे रोका जा सकता है। एक बेहतर तरीका आयोडीन में मिलाकर फॉलिक एसिड देना भी हो सकता है। सरकार के साथ इस दिशा में विचार के लिए सोसाइटी कदम बढ़ाने को तैयार है।

अंतिम दिन हुए 82 तकनीकी सत्र
अधिवेशन के अंतिम दिन 82 से अधिक तकनीकी सत्र, शोधपत्र और कार्यशालाएं हुईं। हॉल ए में डॉ। वीएसएसआर प्रसाद, डॉ। एमपी सिंह, डॉ। मल्ला भास्करा राव, डॉ। मनमोहन सिंह, डॉ। आदित्य गुप्ता, डॉ। शीरो हॉरीशावा, हॉल बी में डॉ। अनीता जगेटिया, डॉ। आरएन पटनी, डॉ। शशांक एस काले, डॉ। वरनॉन वेल्हो, डॉ। कंवलजीत गर्ग, डॉ। केआर सुरेश बापू, डॉ। चिन्मय दास, डॉ। मयंक बंसल, हॉल सी में डॉ। अनिल पांडे, डॉ। अरूण श्रीवास्तव, डॉ। सुबोध राजू, डॉ। दिलीप पानीकर, डॉ। अनिरबन डी बनर्जी, डॉ। रमाकांत यादव डॉ। नमित सिंघल, डॉ। जतिन बजाज, हॉल डी में हितेश गुर्जर, डॉ। स्कंधेश्वरन पी, डॉ। अक्षय बेड, डॉ। गौरव पुरोहित, डॉ। विकास माहेश्वरी, डॉ। अरूनव शर्मा, डॉ। दीपक शर्मा समेत काफी संख्या में व्याख्यान हुए।

डॉ। वाईआर यादव बने एनएसआई प्रेसिडेंट
अधिवेशन के अंतिम दिन सर्वश्रेष्ठ शोधपत्रों के प्रस्तुतीकरण के लिए पुरस्कार वितरण हुआ। वहीं बाहर से आए अतिथियों और चिकित्सकों को स्मृति चिह्न प्रदान किए। न्यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद की कमान संभाल रहे डॉ। वरिंदर पाल सिंह ने अध्यक्ष पद का दायित्व जबलपुर के डॉ। वाईआर यादव को सौंपा। सोसाइटी के सचिव डॉ। केश्रीधर के साथ ही आयोजन अध्यक्ष डॉ। आरसी मिश्रा और आयोजन सचिव डॉ। अरविंद यादव भी मंचस्थ रहे। अगला अधिवेशन वर्ष 2023 में भुवनेश्वर में होगा। इसी के साथ एक-दूसरे को अलविदा कहकर सभी चिकित्सकों ने आगरा से विदा ली।


भारत में बढ़ रही तकनीक
न्यूरोसर्जरी के क्षेत्र में बहुत तेजी से विकास हो रहा है। भारत दवा निर्माताओं की श्रंखला में सबसे अग्रणी देश है लेकिन अब मेक इन इंडिया के नारे के साथ उपकरणों के निर्माण में भी आगे बढ़ा रहा है। पहले जो उपकरण विदेशों से मंगाने पड़ते थे वे अब यहीं उपलब्ध हैं।
- डॉ। दीपू बनर्जी, मुंबई से आए न्यूरोलॉजिस्ट

दिमाग में कीड़ा दे रहा झटका
दिमाग में घूमता कीड़ा (न्यूरो सिस्टी सरकोसिस) यंग एडल्ट्स और बच्चों को शिकार बना लेता है। यह खाने से ट्रांसमेट होकर पेट में और फिर दिमाग में पहुंचता है। इससे भी मिर्गी के दौरे शुरू हो जाते हैं। इससे बचा जा सकता है जब हम अपनी आदतों पर थोड़ा ध्यान दें। खाने से पहले हाथ धोना, सब्जियों को धोकर अच्छे से पका कर खाना और बच्चों को समय-समय पर पेट के कीड़े मारने वाली दवा देना जरूरी है। न्यूरो सिस्टी सरकोसिस के एक तिहाई से ज्यादा मामले भारत, अफ्र का और दक्षिणी अमेरिका जैसे देशों में हैं।
- डॉ। गगनदीप सिंह, लुधियाना से न्यूरोलॉजिस्ट

न्यूरोसर्जरी का क्षेत्र तेजी से आगे बढ़ रहा
आज न्यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया देश को न्यूरोसर्जरी के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। न्यूरोसर्जन कंप्यूटर गाइडेड इंट्रा ऑपरेटिव टेक्नोलॉजी, सर्जिकल माइक्रोस्कोप, लेजर, थ्री-डी, फ्लूरोस्कोपी इमेजिंग जैसे आधुनिक यंत्रों के उपयोग से जटिल से जटिल सर्जरी को सफल अंजाम दे रहे हैं।
- डॉ। आरसी मिश्रा, वरिष्ठ न्यूरोसर्जन