आगरा(ब्यूरो)। एसएन मेडिकल कॉलेज के ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट ने तीन साल तक इस पर अध्ययन किया है। इसमें सामने आया है कि लोग अपने घुटने की चोट को नजरअंदाज कर देते हैैं और बाद में उन्हें तकलीफ होती है। मेडिकल कॉलेज के ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के डॉ। रजत कपूर ने बताया कि सड़क हादसा होने या स्पोर्ट्स इंजरी के दौरान घुटने में चोट लगने पर लोग उसे मामूली चोट समझ बैठते हैैं। यह आगे चलकर काफी रिस्की हो सकता है।

रोजाना लगभग 350 मरीज आते हैैं फ्रैक्चर के

उन्होंने बताया कि मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में रोजाना लगभग 350 मरीज फ्रैक्चर इत्यादि के आते हैैं। इनमें से 30-40 मरीज घुटनों की चोट वाले होते हैैं। हर महीने लगभग 35 मरीजों के घुटने की सर्जरी की जाती है। इनमें से इनमें से महीने भर में आठ से नौ मरीजों की लिगामेंट सर्जरी की जाती है। इस हिसाब से एक साल में करीब 100 और तीन साल में 300 मरीजों की लिगामेंट सर्जरी की गई। डॉ। कपूर ने बताया कि इनमें से अधिकतर की हड्डी नहीं टूटी थी। यानि सिर्फ हादसों के बाद दर्द हुआ, कुछ दिन बाम लगाया, गर्म पट्टी बांधी और ठीक हो गए। लेकिन उन्हें लिगामेंट के बारे में जानकारी नहीं थी। छह माह से लेकर तीन साल के बीच घुटनों में लचक आने के बाद डॉक्टरों को दिखाया। एमआरआई कराने के बाद ही लिगामेंट के टूटने की जानकारी हुई। इसके बाद उनकी सर्जरी की गई।

वाशर फटने का खतरा
डॉ। कपूर ने बताया कि छोटी-मोटी चोट को हल्के में लेने वाले लोगों के वाशर फटने का खतरा सबसे अधिक रहता है। हल्की चोट के बाद लिगामेंट टूटने पर यह अन्य हिस्सों पर भी असर डालता है। वाशर (एक तरह का आब्जर्वर) जोड़ों पर हड्डियों को आपस में टकराने से बचाता है। यह फट जाता है। ऐसा होने पर सर्जरी के जरिए झिल्ली डालकर रिपेयरिंग की जाती है।


यह है लिगामेंट
लिगामेंट्स रस्सीनुमा तंतुओं के ऐसे समूह हैं, जो हड्डियों को आपस में जोड़कर उन्हें स्थायित्व प्रदान करते हैं। इस कारण जोड़ सुचारु रूप से कार्य करते हैं। घुटने का जोड़ घुटने के ऊपर फीमर और नीचे टिबिया नामक हड्डी से बनता है। बीच में टायर की तरह के दो मेनिस्कस (एक तरह का कुशन) होता है। फीमर व टिबिया को दो रस्सीनुमा लिगामेंट (एनटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट और पोस्टेरियर क्रूसिएट लिगामेंट) आपस में बांध कर रखते हैं और घुटनों को स्थायित्व प्रदान करते हैं। साइड में यानी कि घुटने के दोनों तरफ कोलेटेरल और मीडियल कोलेटेरल लिगामेंट और लेटेरल कोलेटरल लिगामेंट नामक रस्सीनुमा लिगामेंट्स होते हैं। इनका कार्य भी क्रूसिएट की तरह दोनों हड्डियों को बांध कर रखना है।


हादसे के बाद कराएं एमआरआई
डॉ। कपूर ने बताया कि कि जब चोट लगती है तो लिगामेंट टूटने पर दर्द नहीं होता लेकिन कुछ समय बाद इसके बुरे नतीजे सामने आने लगते हैं। इसलिए किसी भी हादसे के बाद डॉक्टर की सलाह लेकर एमआरआई जरूर करानी चाहिए।
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-1260 घुटने के मरीज आए तीन साल में
-300 मरीजों की करनी पड़ी लिगामेंट सर्जरी


चोट लगने पर ऑर्थोपेडिक को जरूर दिखाएं। कई बार चोट लगने पर हम खुद उपचार कर लेते हैैं और दर्द चला जाता है लेकिन बाद में काफी मुश्किल होने लगती है। मेडिकल कॉलेज में ऐसे कई केस आते हैैं।
- डॉ। रजत कपूर, स्पोट्र्स इंजरी स्पेशलिस्ट, ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट, एसएनएमसी