गुजरात और कोलकाता से मंगाए
भगवान टॉकिज से सुल्तानगंज की पुलिस स्थित सर्विश रोड मिट्टी के बर्तनों का मार्केट सजा है। आधुनिक तरीके से तैयार किए गए ये मिट्टी के मटके, बोतल और मिल्टॉन गुजरात और कोलकाता से मंगाए गए हैं। व्यापारी सर्वेश पचौरी ने बताया कि हर साल लाखों रुपए का कारोबार होता है, इस बार महंगाई होने के कारण तेजी है। लेकिन लोगों को क्रेज पहले से अधिक है। उन्होंने बताया कि कोविड के दौरान अचानक मिट्टी के बर्तनों का क्रेज बढ़ गया। लोग मंहगे रेट में भी पानी पीने के लिए बर्तन खरीदने को तैयार हैं।
अचानक बदला मौसम का मिजाज
मौसम का मिजाज दिनों दिन बदलने लगा है। लोगों को पीने के पानी की अधिक आवश्यकता रहती है, जिसके चलते लोगों ने मिट्टी के घड़े और मटके खरीदने शुरू कर दिए हैं। प्रदीप पचौरी और सर्वेश कुमार ने बताया कि आज भी लोगों में पारंपरिक मटके का क्रेज बना है। हालांकि पहले के समय में मटकों की बिक्री हजारों में होती थी। अब इसकी बिक्री में जरूर अंतर आया है। जो मटके पहले 200 से 390 रुपए में तक आ जाते थे। उनकी कीमत अब बढ़ गई है, 250 से 750 रुपए तक पहुंच चुकी है।
कच्चा माल हुआ महंगा
कारोबारी सुरेश पचौरी ने बताया कि पिछले साल की तुलना में इस बार मिट्टी की कीमत में बढ़ोत्तरी हुई है। मिट्टी की ट्रॉली का भाव 5 हजार से 6 हजार तक पहुंच गया है। वहीं मजदूरों की मजदूरी भी अधिक हो गई हैं। इसके चलते मटके की कीमत में वृद्धि हुई है। वहीं दूसरी ओर ट्रांसपोर्ट में भी कॉफी खर्च होता है। मजबूरन बढ़े रेटों में माल को सेल करना पड़ता है, हर साल नया माल आता है, क्योंकि डिमांड अधिक है।
कम होने लगा व्यापारियों का जुड़ाव
मटका व्यापारी ने बताया कि मिट्टी से बने बर्तनों, मटका और दीपक बनाने वाले परिवारों का रुझान अब पैतृक व्यवसाय से हटता जा रहा है। इसका मुख्य कारण आधुनिक युग के साथ आधुनिक वस्तुओं की अधिक मांग और सरकार से किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिलना है। इसके कारण जहां एक समय में करीब चालीस से पचास परिवार इस काम में लगे हुए थे। वहीं शहर में आज मात्र 10 परिवार ही इस उद्योग से जुड़े हुए हैं।
नए डिजाइन के मटकों का ट्रेंड
बाजार में 150 रुपए से लेकर 750 रुपए तक के मटके मौजूद हैं। इनमें टोंटी वाले मटकों की मांग ज्यादा है। वहीं गोल और सुराहीदार, डिजाइन, पेंटेंड वाले मटकों की भी बहुत वैरायटी मौजूद है। इस बार मिट्टी का मिल्टॉन आकर्षण का केन्द्र हैं। जो दिखने में मिट्टी का नहीं लगता है। उसको कैरी करना भी आसान है।
हर साल गुजरात और कोलकाता से मटका का आयात किया जाता है, इस बार मिट्टी कम सप्लाई हुई है, जिससे मिट्टी के बर्तनों के रेट में भी इजाफा हुआ है।
सर्वेश पचौरी, व्यापारी
मिट्टी का मटका खरीदने आया हूं, इससे काफी फायदे होते हैं। इम्यूनिटी भी मजबूत होती है। फिर कोई नुकसान भी नहीं करता है। इस बार थोड़े महंगे हैं।
विष्णु शर्मा, ग्राहक
सुबह से ग्राहक आना शुरू हो जाते हैं, कुछ ग्राहकों के सामने समस्या रहती है कि वो मिट्टी के बर्तन को सेफ घर कैसे ले जाएंगे। जबकि कुछ पहले से इंतजाम कर लाते हैं।
प्रदीप, सेल्समैन
मिट्टी के बर्तन में एक अलग से सुगंध आती है, पीने के लिए भी काफी अच्छा है। मैं फ्रिज का पानी नहीं पीती, हर बार नए मटके की खरीद करती हूं।
पल्लीवी महाजन