आगरा(ब्यूरो)। ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी, एडीजे एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव ने बताया कि समत्यमेव जयते व संसस्थ के सहयोग से बंदियों की काउंसलिंग की पहल शुरू की गई है। डिपे्रशन के चलते बंदियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि जेल प्रशासन ने अब सप्ताह में दो बार काउंसलिंग अनिवार्य कर दी है। ताकि तनाव के शिकार बंदियों का पूरी तरह से उपचार किया जा सके। जिसमें कुछ बंदियों को ट्रीटमेंट भी दिया जाएगा। जबकि कुछ को योग करने की भी सलाह दी जाएगी।
बंदियों में क्यों बढ़ रही समस्या
आरके मिश्रा, डीआईजी सेंट्रल जेल ने बताया कि जेल में बंद बंदी और कैदी मानसिक तौर पर इसलिए बीमार हो जाते है कई बार घरेलू हिंसा और जानलेवा हमले के मामले में कुछ लोग मुकदमे में नाम लिखवा देते हंै, जिस पर पुलिस जांच पड़ताल बाद में करके पहले आरोपियों को जेल भेज देती है। जांच में चार्जशीट में जब दोषी पाए जाते है तो कुछ लोग इस में बच जाते है और बाद में उनकी जमानत हो जाती है। ऐसे में वह मानसिक तौर पर बीमार हो जाते है। इनको डिप्रेशन से निकालने के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था शुरू की गई है। जब कोई अधिक तनाव में चले जाता है तो उनको डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए दवाईयां भी दी जाती है ताकि उनका पूरी तरह से उपचार किया जा सके।
हर महीने कराई जाती है काउंसलिंग
जेल में डिप्रेशन के शिकार बंदियों और कैदियों की काउंसलिंग हर सप्ताह कराई जाती है। काउंसलिंग करने के बाद तनाव से पीडि़त बंदी और कैदी अपनी समस्या काउंसलर को बताते है और उपचार भी पूछते है। जेल में आने के बाद कुछ बंदियों की तो नींद भी उड़ जाती है, जिससे वह डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। कुछ लोग ऐसे होते है वह शराब पीने-सिगरेट पीने के आदि होते है। उनको जेल में सिगरेट और शराब कुछ नहीं मिलती है, इसके चलते वह डिप्रेशन में आ जाते है।
विहेवियर साइंटिस्ट करेंगे काउंसलिंग
कार्यक्रम के अंत में आरके मिश्रा, डीआईजी सेट्रल जेल ने बताया कि विशिष्ठ अतिथि डॉ। नवीन गुप्ता, विहेवियर साइंटिस्ट डिप्रेशन में चल रहे बंदियों की काउंसलिंग करेंगे, इसके लिए दो दिन तय किए गए हैं।
इन मुकदमों के सबसे ज्यादा डिप्रेशन के शिकार
दहेज एक्ट
घरेलू हिंसा
जानलेवा हमला
धोखाधड़ी
गैंगस्टर
जेल में बंदियों और कैदियों का आंकड़ा
-सेंट्रल जेल में बंदियों की संख्या 2700 कैदी
जेल में बंदी अक्सर किसी न किसी बजह से डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं, काउंसलिंग के जरिए उनकी समस्याओं को समझना और उनकी सोच में पॉजीटिव बदलाव लाना, जिससे उनके मन में व्याप्त आपराधिक प्रवृति को दूर किया जा सके।
ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी, एडीजे एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव
जेल में आने के बाद कुछ बंदी मायूस हो जाते है और वह मानसिक तौर पर बीमार हो जाते है। ऐसे बंदी है जो तनाव में है, जिनके लिए मनोवैज्ञानिक के जरिए काउंसलिंग की पहल शुरू की गई है.जिससे वह तनाव से बाहर आ सके।
आरके मिश्रा, डीआईजी सेट्रल जेल