आगरा. साल 2020-2021 में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस)-5 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में इंफैंट मोर्टिलिटी रेट(आईएमआर) 50.4 (एक हजार प्रति शिशु)है। साल 2015-2016 में हुए एनएफएचएस-4 के अनुसार 64 शिशु प्रति हजार थी। एनएफएचएस-5 के अनुसार 70 प्रतिशत नवजात शिशु को जन्म के 48 घंटों के भीतर गृह आधारित नवजात देखभाल की सुविधा मिली है।

एचबीएनसी पर अधिक ध्यान
चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ। अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि नवजात देखभाल सप्ताह के दौरान आशाओं द्वारा किए जा रहे गृह आधारित नवजात देखभाल पर अधिक जोर दिया जाता है। इसके लिए आशाओं को निर्देशित भी किया गया है कि वह गृह भ्रमण के दौरान नवजातों में होने वाली समस्याओं की अच्छे से पहचान करें एवं जरुरत पडऩे पर उन्हें रेफर भी करें।

मां को भी देती हैैं ट्रेनिंग
एसीएमओ डॉ। संजीव वर्मन ने बताया कि आशाएं गृह भ्रमण के दौरान ना सिर्फ बच्चों में खतरे के संकेतों की पहचान करती हैं, बल्कि माताओं को आवश्यक नवजात देखभाल के विषय में जानकारी भी देती हैं। डॉ। वर्मन ने बताया कि गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल कार्यक्रम 2015 से यूनिसेफ तकनीकी सहयोग प्रदान कर रहा है।


किए जाते हैं सात भ्रमण
नगला पदी क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता अर्चना गौड़ ने बताया कि एचबीएनसी कार्यक्रम के कारण जन्म के बाद शिशुओं में होने वाली जटिलताओं का भी पता चलता है। इसका समय पर इलाज संभव हो पाता है। कार्यक्रम के तहत आशाएं संस्थागत एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में गृह भ्रमण कर नवजात शिशु की देखभाल करती है। एचबीएनसी के दौरान आशा सात बार (जन्म के 1, 3, 7,14, 21, 28 एवं 42 वें दिन) गृह भ्रमण करती हैं।

बच्चे की देखभाल की दी जानकारी
लाभार्थी मनीषा ने बताया कि आशा बहन ने हमें नवजात शिशु की देखभाल करने के बारे में बताया। उन्होंने मेरे प्रसव के बाद नवजात को घर पर आकर हमें जरूरी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बच्चे की नाभि पर कोई तेल इत्यादि नहीं लगाना है। उन्होंने बताया कि बच्चे को कैसे सर्दी से बचाना है। उन्होंने बताया कि हाथों को साफ करने के बाद ही स्तनपान करने के बारे में बताया।

तबियत बिगडऩे पर एसएनसीयू में किया जाता है रेफर
एसीएमओ डॉ। वर्मन ने बताया कि यदि शिशु की तबियत खराब होती है तो आशा शिशु को सिक न्यू बॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में रेफर किया जाता है। उन्होंने बताया कि शिशु का वजन जन्म के समय 1800 ग्राम से कम, समय से पूर्व जन्में शिशु, छूने पर ठंडा या गरम लगे, आंख और शरीर पीला या शरीर नीला दिखता हो, सांस लेने में परेशानी हो, स्तनपान में कठिनाई, त्वचा पर दस से अधिक फुंसियां या फिर एक बड़ा फोड़ा दिखाई दे, सांस तेज चलती हो, या छाती धंसी लगे, नवजात सुस्त-बेहोश लगे, दौरा पड़ता हो, पेट फूला लगे, दस्त या पेचिश हो, किसी अंग से रक्तस्राव, कटा-फटा होंठ, चिपका तालू, सर में गांठ दिखे तो उन्हें तुरंत एसएनसीयू रेफर करना और उनकी अधिक देखभाल करने की आवश्यकता होती है।

ये है एचबीएनसी का उद्देश्य
- सभी नवजात शिशुओं को अनिवार्य नवजात शिशु देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराना एवं जटिलताओं से बचाना
- समय पूर्व जन्म लेने वाले नवजातों एवं जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर उनकी विशेष देखभाल करना
- नवजात शिशु की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल करना एवं रेफर करना
- परिवार को आदर्श स्वास्थ्य व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करना एवं सहयोग करना
- मां के अंदर अपने नवजात स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता को विकसित करना

वर्जन
शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए विभाग द्वारा एचबीएनसी कार्यक्रम चलाया जाता है। इसमें आशा शिशु के जन्म के बाद घर पर जाकर सात बार विजिट करती हैैं और शिशु के स्वास्थ्य का फॉलोअप करती हैैं। -डॉ। अरुण श्रीवास्वत, सीएमओ