फाइलों में सिमट जाती है फॉगिंग
बारिश के बाद जगह- जगह साफ पानी इक_ा हो जाता है। इस साफ पानी में ही डेंगू के मच्छर पनपते हैं। इसीलिए इस मौसम में डेंगू का खतरा बढ़ जाता है। अधिकांश जगह इस दौरान कई अलग अलग विभागों द्वारा फॉगिंग की जाती है। दावा किया जाता है कि फॉगिंग से डेंगू का मच्छर नहीं पनपता, लेकिन बदलते परिवेश में फॉगिंग का डेंगू के लार्वा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि नगर निगम और अन्य संबंधित विभाग इसको भी ठीक से नहीं कर पाते और फॉगिंग महज फाइलों में सिमट कर रह जाती है। शहर में नगर निगम और कलेक्ट्रेट में हर रोज लगभग 30 से 35 शिकायतें फॉगिंग न किए जाने की पहुंचती हैं। दूसरी तरफ विभाग लगातार फॉगिंग किए जाने का दावा करते हैं।
फॉगिंग से नहीं मरते डेंगू के लार्वा
सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट के अनुसार फॉगिंग को हवा और तापमान की वजह से जरूरी कॉन्संट्रेशन नहीं मिल पाता, जिससे यह बेअसर हो जाती है। इसके अलावा डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस भी डेंगू से बचाव में फॉगिंग के रोल पर सवाल उठाए हैं। एक रिसर्च के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में पिछले 25 सालों से फॉगिंग की जा रही है लेकिन यह मच्छरों से होने वाली बीमारियों को रोकने में सफल नहीं हो पाई। इसका मतलब है कि फॉगिंग डेंगू पर असरदार नहीं है। वहीं नेशनल मलेरिया रिसर्च सेंटर की एक रिसर्च के अनुसार फॉगिंग से डेंगू मच्छर कुछ देर के लिए अचेत हो जाता है। पूरी तरह से मरता नहीं है। इसका असर सिर्फ सामान्य या मलेरिया के कारक क्यूलेक्स मच्छर पर ही होता है। जर्नल ऑफ वेक्टर बॉर्न डिसीज में प्रकाशित दो प्रमुख शोध पत्रों में एडीज मादा से मुकाबले के लिए नए रसायनों के इस्तेमाल की बात कही गई है। रिसर्च में बताया गया है कि फॉगिंग की जगह लेटेक्स मेनेथॉल और बॉरिक एसिड का उपयोग एडीज पर सीधे असर करता है।
फॉगिंग में ये केमिकल होते हैं यूज
एक प्रेशर पंप की मदद से कुछ लिक्विड को तरल पदार्थ टैंक के अंदर डाल कर हीट एक्सचेंजर के माध्यम से ट्रैवल करने के लिए मजबूर किया जाता है। जब हीट एक्सचेंजर 400 डिग्री फ ारेनहाइट के अधिकतम तापमान तक पहुंचता है तो तरल पदार्थ भाप में कनवर्ट हो जाता है। इस भाप को मशीन के नोजल के माध्यम सेे छोड़ा जाता है। जब यह छोड़ी गई भाप ठंडे वातावरण के संपर्क में आती है तो यह अक्रॉसदर्शी एयरोसोल में बदल जाती है जिसे हम कोहरे या धुएं के रूप में देख पाते हैं इसे हम फॉगिंग के रूप में जानते हैं। नगर निगम के अधिकारियों के अनुसार फॉगिंग वाहनों में जो टैंक लगे हैं। इन टैंक में फॉगिंग मशीन लगी रहती है। फॉगिंग में डीजल को केमिकल में मिक्स किया जाता है। 45 लीटर डीजल में 2.25 लीटर मालाथाइन 95 परसेंट केमिकल मिलाया जाता है। इसके साथ ही मशीन में वाटर टैंक भी लगा होता है। जो फॉगिंग मशीन के लिए कूलेंट का काम करता है। पानी केमिकल और डीजल का मशीन के जरिए धुआं उठता है। इसके अलावा सायफेनोथ्रिन केमिकल को डीजल के साथ मिलाकर फॉगिंग की जाती है। जो इनडोर-आउटडोर दोनों होती है।
इस तरह बदला जा सकता है फॉगिंग के तौर तरीकों को
हर साल नगर निगम फॉगिंग के नाम पर लाखों खर्च करता है, लेकिन फिर भी मच्छरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि कई बार संबंधित विभागों को फॉगिंग के तौर तरीके ही नहीं पता होते। इससे फॉगिंग असरदार नहीं हो पाती है। एसएन हॉस्पिटल के डॉ मनीष बंसल बताते हैं कि डेंगू का मच्छर आमतौर पर साफ पानी में पनपता है। ये बहुत ही कम पानी में अपना ठिकाना बना लेता है। इसीलिए आम तौर पर घर के प्लांट या खाली बर्तन इसकी पसंदीदा जगह होते हैं। जिस समय फॉगिंग होती है। उस समय लोग घरों के गेट बंद कर लेते हैं। खिड़की बंद कर लेते हैं। सरकारी विभाग जब फॉगिंग करते हैं तो वे घरों के बाहर करते हैं इससे मच्छर मर ही नहीं पाता है।
ये भी किए जा सकते हैं बदलाव
डेंगू के मच्छरों व लार्वा को खत्म करने के लिए सुबह साढ़े छह बजे से साढ़े आठ बजे का समय सबसे अच्छा माना जाता है इसलिए फॉगिंग इसी समय की जानी चाहिए।
-सुबह के समय हवा का बहाव कम रहता है और लोगों की आवाजाही कम रहती है इससे दवा अधिक असरदार रहती है।
-दिन में फॉगिंग नहीं की जानी चाहिए क्योंकि दोपहर में दवा दूर तक फैलती है और उसका प्रभाव कम हो जाता है।
-फॉगिंग की सूचना भी पहले दी जानी चाहिए, ताकि लोग घर के खिड़की-दरवाजे खोल सकें।
-आमतौर पर लोग घरों के खिड़की दरवाजे फॉगिंग के समय बंद कर लेते हैं ये नहीं करना चाहिए।
-लोगों को घरों के अंदर फॉगिंग के लिए जागरूक करना चाहिए, जिससे लोग घरों के अंदर फॉगिंग करें।
-डीजल की जगह मिट्टी तेल में केमिकल मिलाकर फॉगिंग की जाएगी। तो अधिक असरदार होगी।
वर्जन
सभी विभागों को फॉगिंग के निर्देश जारी कर दिए गए हैं अलग अलग विभाग इसके लिए जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं जिससे इस पर अंकुश लगाया जा सके।
डॉ। अरुण श्रीवास्तव सीएमओ
बरसात में संचारी रोगों की रोकथाम के लिए फॉगिंग की जा रही है। इसके अलावा एंटीलार्वा का छिड़काव भी किया जा रहा है। पतली गली जहां गाड़ी नहीं जा सकती। वहां फॉगिंग के लिए बाइक का इंतजाम किया गया है।
डॉ संजीव वर्मा
नगर स्वास्थ्य अधिकारी
-फॉगिंग में डीजल में केमिकल मिलाया जाता है। डीजल मिट्टी के तेल की अपेक्षा जल्दी वाष्प बन जाता है। अगर इसकी जगह मिट्टी के तेल में केमिकल मिला कर फॉगिंग की जाए तो अधिक असरदार होगी।
डॉ मनीष बंसल मेडिसन डिपार्टमेंट एसएन मेडिकल कॉलेज
-सप्ताह में एक बार फॉगिंग की गाडी आती है, जिससे फॉगिंग कराई जाती है। इसके अलावा अभी तक एंटी लार्वा का छिड़काव हमांरे यहां अभी तक नहीं हुआ है।
वेद प्रकाश गोस्वामी पार्षद वार्ड 88
-4 जोन में बांटा गया है फॉगिंग के लिए शहर को
-14 क्षेत्रों में रोज होती है फॉगिंग
-12 मोटरसाइकिल हैं फॉगिंग के लिए शहर में
-100 वार्ड हैं शहर में
-14 फॉगिंग वाहन हैं शहर में
25 पोर्टेबल फॉगिंग मशीन हैं आगरा में
-20 टैंकर करीब हर महीने की डीजल की खपत हर माह होती है
-1 टैंकर में आता है 12 हजार डीजल