बढ़ रही बच्चों में मोटापे की समस्या
भारत का हर तीसरा बच्चा मोटापे का शिकार है। 2003-2023 तक 21 अलग-अलग स्टडीज की एनालिसिल रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में करीब 8.4 प्रतिशत बच्चे मोटापे की चपेट में हैं, जबकि 12.4 प्रतिशत ओवरवेट यानी अधिक वजन के साथ जी रहे हैं। दुनिया में मोटे बच्चों की संख्या में भारत का दूसरा स्थान है। लांसेट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में भारत में 5-19 वर्ष की आयु के लगभग 1.25 करोड़ बच्चे मोटापे का शिकार हुए हैं। इस साल ये संख्या और बढ़ गई है इसकी वजह से बच्चे कम उम्र में ही कई प्रकार की बीमारियों का शिकार बन सकते हैं।
कोरोना के बाद तेजी से बढ़ी समस्या
कोविड के बाद ही तेजी से पैक्ड फूड का यूज तेजी से बढ़ गया है। इसकी वजह से बच्चे ओबेसिटी का शिकार हो रहे हैं। इसके अलावा जंक फूड भी ओबेसिटी के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है इसके अलावा ऑन स्क्रीन टाइम भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
ओबेसिटी से ये हो सकती हैं समस्या
हार्ट से संबंधित बीमारियों की शुरुआत ही मोटापे से होती है। इसके अलावा ओबेसिटी से हाई ब्लड प्रेशर, टाइप 2 डायबिटीज, गॉल स्टोन, अस्थमा, लड़कियों में पॉलीसिस्टिक ओवरी, घबराहट और तनाव, नींद में बार-बार रुकावट, कॉन्फिडेन्स की कमी और सामाजिक गतिविधियों से हटना आदि चीजें हो सकती हैं। बचपन का मोटापा आगे बढ़कर डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल का कारण बन सकता है। मोटापे से ग्रस्त बच्चों और किशोरों में स्लीप एप्निया जैसे रोग और सामाजिक व मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके अलावा आगे जा कर हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, कब्ज का खतरा बना रहता है.
अंचल क्षेत्रों में भी बढ़ रही समस्या
एक दौर था जब ओबेसिटी की समस्या सिर्फ एक विशेष वर्ग के बच्चों में ही होती थी। क्योंकि शहर में पैकेट बंद फूड बच्चे अधिक खाते थे। लेकिन कोविड के बाद ये समस्या अंचल क्षेत्रों में भी अधिक हो गई है। क्योंकि अब बच्चे वहां भी तेजी से पैक्ड फूड और जंक फूड का सेवन कर रहे हैं। सरकार के पोषण ट्रैकर के आंकड़ों के अनुसार देश के 764 शहरों के अंचल क्षेत्रों में 0 से पांच साल तक के बच्चों में 6 प्रतिशत बच्चे मोटापे का शिकार हैं।
इन वजहों से बढ़ता है वजन
-पैक्ड फूड का अधिक उपयोग
-फिजिकल एक्टिविटी का कम होना
-स्क्रीन टाइम का अधिक होना
-डाइट पैटर्न में बदलाव
-दिनचर्या का खराब होना
-आनुवंशिक वजह से
इन बातों का रखें ध्यान
-बच्चों में शुरुआत से ही हेल्दी खाने की आदतों को डालें
-बच्चों को कैलोरी युक्त और उच्च वसायुक्त जैसै खाद्य पदार्थ से दूर रखें
-कड़वे और मीठे फल मिलाकर खाएं जैसे आलू, मटर की जगह आलू मेथी।
-बच्चों को अधिक से अधिक शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए करें।
-एक दिन में 80 एमएल से ज्यादा सॉफ्ट ड्रिंक न दें
-30 प्रतिशत से ज्यादा चीनी वाली मिठाइयां न दें।
-बच्चों के बाहर के पैक्ड फूड आइटम्स की जगह हेल्दी फूड्स खिलाएं जिसमें साबुत अनाज, फल, सब्जियां आदि को शामिल करें।
-बच्चों को फिजिकली एक्टिव रखने के लिए उन्हें घर के कामों में शामिल करें और बाहर खेलने के लिए भेजें
-बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करवाएं कोशिश करें कि वे कम से कम स्मार्ट फोन और कंप्यूटर का इस्तेमाल करें।
पेरेंट्स नहीं हैं अवेयर
एसएन कॉलेज में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ नीरज यादव बताते हैं कि अधिकतर पेरेंट्स ओबेसिटी के लिए अवेयर ही नहीं हैं। उनको लगता है कि उनका बच्चा हेल्थी और गोल मोल हो तो इस पर ध्यान भी नहीं देते। असल में बच्चों को आउटडोर एक्टिवटी भी अब कम हो गईं हैं। एक्टिविटी हैं नहीं जितनी एनर्जी ले रहे हैं ये स्टोर हो रही है जब एनर्जी खर्च ही नहीं होगी तो वजन बढऩा स्वभाविक है। पेरेंट्स को भी फूड को लेकर अवेयर होना पड़ेगा।
प्रिजर्वेटिव फूड के अलावा बर्गर चॉकलेट जैसे फूड एनर्जी रिच फूड हैं इसके अलावा जो बच्चे तली चीजें अधिक खाते हैं। उनको ये समस्या अधिक होती है।
डॉ। नीरज यादव चाइल्ड रोग एक्सपर्ट एसएन मेडिकल कॉलेज
-1.25 करोड़ बच्चे मोटापे से ग्रसित थे 2022 में
-90 प्रतिशत अभिभावक अनजान हैं इससे