आगरा (ब्यूरो)। ताज ट्रेपेजियम जोन (टीटीजेड) में मथुरा के छटीकरा और आगरा के दयालबाग में पेड़ों के अवैध कटान का सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जार्ज आगस्टीन मसीह और अभय एस। ओका की बेंच ने पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ। शरद गुप्ता की याचिका पर शुक्रवार को भारत संघ (वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) और उत्तर प्रदेश सरकार (मुख्य सचिव) समेत अन्य को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उन्हें 29 नवंबर तक जवाब दाखिल करने को कहा है। यहां पेड़ों की जिओ टैङ्क्षगग भी कराई जाएगी।
आगरा निवासी याची पर्यावरण कार्यकर्ता शरद गुप्ता की सितंबर में दायर याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की। इस याचिका में टीटीजेड में हरे पेड़ों की अवैध कटान और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश न माने जाने का मामला उठाया गया था। न्यायमूर्ति अगस्टीन जार्ज मसीह और न्यायमूर्ति अभय एस। ओका की बेंच ने शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई की। वादी अधिवक्ता आदित्य तेनगुरिया ने कहा, पेड़ों के अवैध कटान को रोकने के लिए अधिकारियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरक्ति महाधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने पैरवी की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सचिव वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश, चेयरमैन टीटीजेड अथारिटी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी आगरा और प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी मथुरा को नोटिस जारी किया है। इन्हें 29 नवंबर तक अपना जवाब दाखिल करना होगा।
करीब 10,400 वर्ग किमी में फैले टीटीजेड में सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना पेड़ नहीं काटे जा सकते हैं। इस आदेश के बाद भी मथुरा, फिरोजाबाद, आगरा सहित टीटीजेड में बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए। सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) की रिपोर्ट-17 के मुताबिक सात हजार से अधिक पेड़ सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बगैर काटे गए हैं। 16 प्रोजेक्ट ऐसे हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट से पेड़ काटने की अनुमति लेने के बाद निर्धारित शर्तों का पालन नहीं किया गया। मथुरा के छटीकरा मार्ग स्थित डालमिया फार्म हाउस में रातोंरात 454 पेड़ काट दिए गए थे। इसके बाद, दयालबाग के माथुर फार्म हाउस में कालोनी बनाने को करीब 100 पेड़ काटने का मामला सामने आया था।
सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का है मामला
याची डॉ। शरद गुप्ता ने बताया कि फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, आगरा में केवल 6.5 प्रतिशत भूमि में ही हरित क्षेत्र बचा है। वन क्षेत्र तो करीब 3.4 प्रतिशत भूमि में ही रह गया है। यह स्थिति पेड़ों के अवैध कटान की वजह से हुई है। पेड़ काटने के आरोपितों को लोक अदालत, डीएफओ और रेंजर द्वारा मामूली जुर्माना कर छोड़ दिया गया है। बिना अनुमति पेड़ काटना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है।