11 चांदी की श्रृंगियों से किया रुद्राभिषेक
उन्होंने मंदिर में अपनी धर्मपत्नी प्रीति उपाध्याय के साथ पहुंचकर शाम पांच बजे भगवान शिव का जल और दुग्ध से अभिषेक किया। उनके साथ लघु उद्योग निगम के उपाध्यक्ष राकेश गर्ग, पीक गुप्ता, एके ङ्क्षसह, राजेश मंगल, राजीव बंसल भी थे। मेले के उद्घाटन की पूजा मंदिर महंत गौरव गिरि, चंद्रकांत गिरि और केशव गिरी ने 11 चांदी की शृंगियों से रुद्राभिषेक कराकर की। शिवङ्क्षलग पर फूलों का मुकुट, वस्त्र आदि भेंटकर महाआरती की गई।
घेवर, पेड़े और बेलपत्र का लगाया भोग
मंदिर महंत गौरव गिरी ने बताया कि रविवार रात्रि 12 बजे से भगवान शिव का अभिषेक प्रारंभ हुआ। दो बजे आरती के बाद भगवान शिव का भांग से शृंगार कर उन्हें घेवर, पेड़े और बेलपत्र का भोग लगाया गया। तीन बजे कांवड़ से लाए गए जल से उनका अभिषेक करने के बाद अभिषेक प्रारंभ हो गए। सोमवार सुबह छह बजे भगवान का भव्य श्रृंगार कर आरती की गई। श्रद्धालु दिनभर उन्हें जल और दुग्ध अर्पित करेंगे। शाम छह बजे भव्य फूल बंगला और शृंगार के बाद आरती होगी। रात्रि 10 बजे की आरती के बाद रात्रि 12 बजे शयन आरती होगी, जिसके बाद मंदिर के पट बंद कर दिए जाएंगे। सोमवार को मंदिर के पट रात्रि 12 बजे तक खुलेंगे।
अर्पित की जाएंगी 1500 से अधिक कांंवड़
कैलाश महादेव मंदिर पर सर्वाधिक कांवड़ अर्पित की जाती है। इस बार भी रविवार रात्रि दो बजे से सोमवार सुबह 11 बजे तक 1500 से अधिक कांवड़ पहुंचने की उम्मीद है। खंदारी से सिकंदरा और फरह तक के विभिन्न क्षेत्रों और गांवों के युवाओं की टोली सामान्य कांवड़ के साथ डाक कांवड़, खड़ी कांवड़, दांडी कांवड़ लेकर मंदिर पर पहुंचना रात्रि से प्रारंभ हो गई। भगवान शिव पर पहली कांवड़ सोमवार सुबह तीन बजे अर्पित की गई। इसके बाद मंदिर के गर्भगृह के पांच द्वारों में से एक द्वार से सिर्फ कांवडिय़ों को 10-10 की संख्या में बुलाकर पंक्ति से अभिषेक कराया गय। पांच में से दूसरे द्वारा से महिलाएं, तीसरे द्वार से पुरुष गर्भगृह में प्रवेश और शेष दो द्वार से निकासी व्यवस्था रहेगी।
शाम से मेले की बढ़ी रौनक
रविवार शाम को उद्घाटन के बाद से मेले की रौनक बढऩे लगी है। हालांकि बारिश के कारण कुछ देर के लिए तैयारियां प्रभावित हुई, लेकिन लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। बारिश थमने के बाद दोबारा से मेले की रौनक बढ़ गई। बच्चों और महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में लगाए गए छोटे-बड़े झूलों को झूला। खाने-पीने के सामान के साथ खरीदारी भी की। वहीं विभिन्न स्थानों पर लगाए गए भंडारों के पंडाल भी सज गए। शाम से ही सोमवार को होने वाले मेले के लिए विभिन्न तरह के पकवान बनना भी प्रारंभ हो गए।