आगरा.(ब्यूरो) आज के डिजिटल युग में हर किसी को लाइफ में स्पेस चाहिए। सेपरेट स्पेस की चाह में आज किसी को भी लाइफ में किसी दूसरे का इंटरफियरेंस करना बिल्कुल पसंद नहीं है फिर चाहे वे उनके खुद के पेरेंट्स ही क्यों न हो। हर पेरेंट अपने बच्चों को प्यार करते हैं। जरुरत से अधिक बंदिशों से बच्चों का व्यवहार रिबैलियस हो रहा है। ये पेरेंट्स का सिर दर्द बन गया है।

बच्चों की बेहतरी के लिए लगाते हैं डांट
लाइफ में बच्चे पेरेंट्स से सेपरेट स्पेस की डिमांड कर रहे हैं। सेपरेट स्पेस की चाह में बच्चों को अपनी लाइफ में पेरेंट्स का इंटरफियरेंस पसंद नहीं है फिर चाहे वे बच्चों के टीचर्स या बड़े बुजुर्ग ही क्यों न हों।
हर पेरेंट अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए प्रयास कर रहे हैं। वे लाइफ में उन्हें कुछ बनते हुए देखना चाहते हैं। जिसके चलते बच्चे वे अपने पेरेंट्स को अक्सर उन्हें डांटते-फटकारते है, लेकिन इस डांट-फटकार का अर्थ कई बार कुछ बच्चे गलत निकाल लेते हैं।

बच्चों के व्यवहार में आ रहा परिवर्तन
पेरेंट्स की टोका-टाकी बस कारण से होती है कि उनके बच्चों के साथ कुछ गलत न हो जाए। वहीं कई बच्चे इसे अपने ऊपर लगाई गई बंदिश मानने लगते हैं। कई बार उनकी यह ही सोच उन्हें विद्रोही बना देती है। उन्हें लगने लगता है कि उनके मम्मी-पापा उन्हें प्यार नहीं करते, उनकी केयर नहीं करते, पर वास्तविकता यह नहीं है। 9 से 13 वर्ष के बीच बच्चों के साथ इस तरह की समस्या है। जरुरत से अधिक बंदिशों से बच्चों का व्यवहार रिबैलियस हो रहा है।

बच्चों को पेरेंट्स लगते हैं दुश्मन
एसएन मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के एचओडी डॉ। विशाल सिंहा ने बताया कि आज के टाइम में उनके पास कई ऐसे केस अ रहे हैं। जिनमें पेरेंट्स यह कंप्लेन करते हैं कि उनका बच्चा उनसे दूर-दूर रहता है। कभी-कभी गुस्सा भी आता है। कई बार पेरेंट्स का यह भी कहना होता है कि उनका बच्चा उन्हें अपना दुश्मन मान बैठा है। यही कारण है जो पेरेंट्स और बच्चों के बीच डिस्टेंस बना देता है। बच्चा गलत संगत में भी पड़ जाता है।

सख्त पेरेंटिंग से शुरू प्रॉब्लम
मनोवैज्ञानिक प्रिया श्रीवास्तव के अनुसार जब पेरेंट्स सख्त पेरेंटिंग करनी शुरू कर देते हैं। तब से ही प्रॉब्लम शुरू हो जाती है। यानि हर समय सिर पर चढ़े रहना, बात-बात पर टोका-टाकी करना, इससे बच्चे उकता जाते हैं। पेरेंट्स को लगता है कि वे उन्हें गलत रास्ते पर जाने से रोक रहे हैैं, लेकिन कई बार हर चीज में बार-बार रोक-टोक बच्चों को बंदिश लगने लगती है। इस तरह की समस्या से निपटने के लिए पेरेंट्स को भी अपने व्यवहार को चेंज करना होगा। बच्चों के साथ समय बिताना उनकी बातों को समझना, बिना कारण रोक, टोक नहीं करना।


बच्चों के हो रहे हार्मोनल चेंज
टीनएज आते-आते बॉडी में कई तरह के चेंजेज हो रहे होते हैैं। इनमें से ही एक होता है हार्मोनल चेंज। पहले जहां 12 से 13 साल के बीच बच्चे ये सब महसूस करते थे। वहीं अब नौ से 10 साल के बीच में ही यह महसूस होने लगता है। अब तो नौ से दस साल की उम्र में ही कई सारे बदलाव महसूस करने लगते हैं।


सोशल मीडिया का भी पड़ रहा असर
सोशल मीडिया ने भी लोगों की लाइफ में बहुत सारे बदलाव लाए हैं। उसमें से ही एक है पेशेंस लेवल। बच्चों में पेशेंस लेवल बहुत ही कम हो गया है। इसके अलावा बच्चों में अभी से एक हैबिट देखी जा रही है, वह है वर्चुअल वल्र्ड में रहना।


बच्चों की समस्या को सुनें
पेरेंट्स को थोड़ा सा ओपन माइंडेड होना चाहिए। अपने बच्चे के साथ फ्र ंडली नेचर रखना चाहिए, जिससे वे अपने साथ हो रही चीजों को आपके साथ शेयर करें न कि हिचकिचाएं कि अगर पता चल गया तो क्या होगा। कहीं घर में डांट या मार न पड़ जाए।


बुधवार की घटना केस- 1
कमला नगर में रहने वाले एक किशोर ने पांच दिन पहले खुद ही अपने अपहरण की कहानी बना ली। पेरेंट्स ने जब पुलिस की मदद ली तो मामले का खुलासा हुआ, इसके बाद मामला पता चला कि पेरेंट्स अपने बच्चे को मोबाइल फोन को लेकर रोक-टोक करते थे। काउंसलर्स ने बताया कि ऐसे में दोंनो को अपने नेचर में बदलाव लाने की सलाह दी गई।


रविवार की घटना केस-2
राजपुर चुंगी सदर मार्केट में रहने वाली एक किशोरी ने पेरेंटस की बंदिश के चलते घर छोड़ दिया। अपनी सहेली से फोन करा दिया कि उसका किडनैप हो गया है। पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि बेटी ने पेरेंट्स की बंदिश के चलते घर छोड़ा था।


टीनएज एक ऐसी एज होती है, जिसमें बच्चे का ओवरऑल डवलेपमेंट हो रहा होता है। ऐसे में जब उन्हें जरुरत से अधिक रोक लगाई जाए तो बच्चे आउट ऑफ कंट्रोल हो जाते हैैं। ऐसे में उन्हें पेरेंट्स की कंसर्न के साथ-साथ उनके सपोर्ट की भी नीड होती है।
डॉ। विशाल सिंहा, एचओडी, मनोरोग विभाग


जो बच्चे टीवी या मोबाइल पर समय अधिक बिताते हैं, उनमें हिंसक एवं उत्तेजित व्यवहार देखा जा सकता है। अत्याधिक स्क्रीन समय होने के अन्य नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं, जैसे डिप्रेशन, मूड स्विंग और गुस्सा, लो सेल्फ, एस्टीम, स्क्रीन की लत, नींद में गड़बड़ी। ऐसे में वह अपनी बातें किसी के आगे रख ही नहीं पा रही थी, इसलिए बच्चे घर छोडऩे का निर्णय लेते हैं।
डॉ। प्रिया श्रीवास्तव, साइकेट्रिस्ट


बच्चे अक्सर मोबाइल में बिजी रहते हैं, अगर उनको रोको तो वो चिड़चिड़े हो जाते हैं। ऐसा अक्सर देखने को मिलता है। इससे नाराज होकर दोस्तों के साथ समय बिताते हैं।
चंचल शर्मा


बच्चे अक्सर मनमानी करते हैं, अगर उनको रोका जाए तो हिंसक व्यवहार करते हैं, ऐसे में टीचर्स से कंप्लेन करो तो घर छोडऩे की धमकी देते हैं।
कल्पना उपाध्याय