आगरा.(ब्यूरो ) शहर में दसवीं के एक स्टूडेंट्स ने कैंट रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट को उड़ाने की धमकी दी। इससे हरकत में आई पुलिस ने एक्शन लिया और स्टूडेंट्स के घर पहुंच गई। स्टूडेंट्स ने धमकी देने के लिए फर्जी आईडी का प्रयोग किया था। पुलिस जब उसके घर पहुंची तो पेरेंट्स को इसकी जानकारी हुई। पेरेंट्स ने बताया कि वो अधिकतर मोबाइल पर व्यस्त रहता है।
नींद मेें ऐसे शब्द सुन घबरा जाते हैं पेरेंट्स
स्टूडेंट््स का अधिकतर समय मोबाइल पर बीतता है। स्टूडेंट्स एफपीएस कमांडो सीक्रेट घरों मिशन गेम खेलने की लत ऐसी लगी कि वह अब नींद में ऐसे-ऐसे शब्द बोलता है कि पेरेंट्स घबरा जाते हैं। नींद में वह धांय धांय या आई बिल किल यू मार डालो जैसे शब्द बोलता है। ऐसी आवाजें सुनते ही माता-पिता उसे नींद से जगा देते हैं। तब जाकर वह सामान्य होता है, लेकिन यह समस्या अकेले एक स्टूडेंट्स की नहीं है, एसएन मेडिकल कॉलेज में दस में से आठ बच्चे ऑनलाइन गेमिंग का शिकार हो रहे हैं।
अधिकतर मोबाइल गेम हिंसक
बच्चों का अक्सर नींद में बड़बड़ाना सामान्य हो गया है। ऐसे मामले कोरोना महामारी के बाद तेजी से बड़े हैं। महामारी के दौरान बच्चों के हाथों में लैपटॉप और मोबाइल फोन पकड़ा दिया गया। उन पर नजर भी नहीं रखी गई। ऐसे में बच्चों को गेम की लत लग गई। इसमें ज्यादातर गेम हिंसक हैं। ये उनके दिमाग पर अलग-अलग तरीके से असर कर रहे हैं। बच्चे नींद में बड़बड़ा रहे हैं। जब भी पेरेंट्स को मोबाइल उनके हाथ लग जाता है, वे गेम को डाउनलोड कर खेलने लगते हैं, पेरेेंट्स को पता न लग सके, वे गेम को डिलीट भी कर देते हैं।
बच्चों के दिमाग पर हावी ड्रीम वर्क
एमएन मेडिकल कॉलेज के एचओडी, मनोरोग विभाग, डॉ। विशाल सिन्हा के अनुसार, मनोरोग विभाग में आठ से 10 बच्चों की काउंसिलिंग मनोचिकित्सक कर रहे हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि किसी भी चीज की लत दिमाग पर हावी हो जाए, तो उसे मनोचिकित्सक की भाषा में ड्रीम वर्क कहते हैं। यह ड्रीम वर्क दिमाग में इस कदर बैठ जाता है। कि बच्चा हर समय उन्हीं बातों को सोचता है। डॉ। विशाल सिन्हा ने बताया कि गेम की लत बच्चों के दिमाग पर हावी होती जा रही है, जो उनके भविष्य के लिए ठीक नहीं है।
बच्चों का अकेलापन एक बड़ा कारण
मनोवैज्ञानिक डॉ। पूनम तिवारी ने बताया कि इस तरह के मामलों में प्रमुख कारण अकेलापन होता है। बच्चों ने खुद बताया कि मम्मी-पापा घर में नहीं रहते हैं। कोई बुजुर्ग भी नहीं हैं, जो उनसे बात करें। सवालों का जवाब दे। यही कारण है कि बच्चों का ज्यादा समय मोबाइल फोन पर गुजर रहा है। पेरेंट्स की काउंसिलिंग की जा रही है कि वे बच्चों को ज्यादा समय दें। उनसे बातचीत करें। उनके साथ घूमने-टहने जाएं। इस वजह से बच्चे व्यस्त रहेंगे तो मोबाइल फोन पर ज्यादा समय नहीं गुजार सकेंगे।
गेम की लत से बच्चों की सेहत पर असर
एसएन मेडिकल कॉलेज, मनोरोग विभाग के डॉ। विशाल सिन्हा गेम की लत से बच्चों की सेहत भी प्रभावित हो रही है। वे डिप्रेशन और एंजाइटी का शिकार हो रहे हैं। ऐसे बच्चों की काउंसिलिंग की जा रही है। अभी केवल तीन से चार फीसदी बच्चों को दवा की जरूरत पड़ रही है। पेरेंट्स को भी समझाया जा रहा है कि बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखें। लेकिन अचानक नहीं, धीरे-धीरे एक नियम बनाएं और उन्हें मोबाइल फोन के इस्तेमाल से रोकने की जरूरत है।
रुक जाता है हैपी होर्मोंस का रिसाव
डॉक्टरों के अनुसार, ऑनलाइन गेम या अन्य मनोरंजक साधनों के इस्तेमाल से बच्चों के मस्तिष्क में न्यूरो केमिकल का रिसाव होता है जिसे हैपी हार्मोंस कहते हैं। इस बीच अचानक उसे गेम खेलने से रोक दिया जाए तो हैप्पी हार्मोस का रिसाव रुक जाता है। इसकी वजह से बच्चे डिप्रेशन में आने लगते हैं। ऐसे बच्चों को काउंसिलिंग और दवाओं की जरूरत पड़ रही है।
90 फीसदी बच्चे खेलते हैं गेम
चाइनीज गेम पब-जी के बैन होने के बाद भी कई ऐसे गेम है, जो बच्चों के दिमाग पर ज्यादा असर डाल रहे हैं। ऐसे में दर्जन भर गेम हैं। जो बच्चों के लिए लोकप्रिय हो रहे हैं। गेम ज्यादा हिंसक है। यह मारधाड़ वाले गेम हैं। अधिकतर बच्चे इन्हीं गेम को खेलते हैं।
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रोजाना आठ से दस बच्चे ऐसे आते हैं, जो ऑनलाइन गेमिंग के आदी हैं। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग कराई जाती है, इसके साथ ही पेरेंट्स को भी सलाह दी जाती है कि वे धीरे-धीरे बच्चे को मोबाइल की लत से दूर रखे। उसको समय दें।
डॉ। विशाल सिन्हा, मनोरोग विभाग, एसएन मेडिकल कॉलेज
घंटों मोबाइल फोन पर रील देखने, गेम खेलने से बच्चों की आंखें खराब होने, व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने से हम डॉक्टर, मनोचिकित्सक के पास तो दौड़े जा रहे हैं, मगर मूल वजह पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इससे सोशल एक्सपर्ट भी चिंतित हैं।
डॉ। रचना सिंह सोशल एक्सपर्ट
समय रहते तेजी से गहराती इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो बहुत जल्द बच्चे किताबों की महत्ता के साथ ही धर्म, संस्कृति, परंपरा और संस्कार को भी पूरी तरह भूल जाएंगे। उन्हीं को आत्मसात कर बच्चे भी वैसा ही व्यवहार करते हैं।
डॉ। कविता रायजादा
ऑनलाइन गेमिंग के आदी बच्चे
90 फीसदी
-काउंसलिंग के लिए रोजाना आ रहे बच्चे
8 से 10
-अधिकतर किशोर हो रहे प्रभावित
14 से 19 तक