आगरा: कमिश्नरेट में कानून व्यवस्था के तमाम दावे ढेर हो गए। गठन के दो साल बाद आगरा कमिश्नरेट कानून व्यवस्था के इम्तिहान में जीरो नंबर पर आ गया। 75 जिलों वाले प्रदेश में ताज के शहर की पुलिस को आखिरी नंबर मिला है। सीएम डेश बोर्ड पर जिलों की रैंङ्क्षकग में आगरा 75 वें स्थान पर है तो सीएम की प्राथमिकता वाले मथुरा को 73 वां नंबर मिला है। प्रदेश में रामपुर जिला पहले स्थान पर है। आगरा जोन के एटा जिले को 67 वां स्थान मिला है।
कमिश्नरेट में कानून व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए तमाम दावे किए जाते रहे हैं। पुलिस आयुक्त की अधिकारियों के साथ जनसुनवाई को लेकर साप्ताहिक बैठक होती है। एसीपी से लेकर एसएचओ तक शामिल होते हैं। कानून व्यवस्था के मानकों के आधार पर प्रतिमाह सीएम डेश बोर्ड से जारी होने वाली अक्टूबर की रैङ्क्षकग ने दावों की पोल खोल दी। 10 अंकों के मानक पर होने वाली रिपोर्टिंग में कमिश्नरेट को 5.06 अंक मिले हैं। जबकि मथुरा को 6.02 अंक मिले हैं। एटा को कानून व्यवस्था के मामले में 6.24 अंक मिले हैं। अक्टूबर की रैंङ्क्षकग जारी होने के बाद स्थानीय स्तर पर खलबली मची है।
कई मानकों के आधार पर तय होती है रैंक
सीएम डेश बोर्ड पर रेंङ्क्षकग सात-आठ मानकों के आधार पर तय की जाती है। क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैङ्क्षकग एंड नेटवर्किंग सिस्टम (सीसीटीएनएस) पर फीड डाटा के भी इसमें अंक दिए जाते हैं। सूत्रों का कहना है कि आगरा में गिरफ्तारी पर भरा जाने वाला प्रपत्र थानों से नहीं भरा गया। इससे रैङ्क्षकग पर असर पड़ा है। रैंङ्क्षकग नीचे गिरने के बाद अब पुलिस लाइंस में थानों के कंप्यूटर आपरेटरों को ट्रेङ्क्षनग दी जा रही है।
सवाल, जब बेलगाम हो वर्दी तो कैसे बने व्यवस्था
एक तरफ अधिकारी जनसुनवाई और त्वरित कार्रवाई के दावे करते हैं, दूसरी तरफ बेलगाम वर्दी वालों में सुधार की स्थिति नजर नहीं आती। जगदीशपुरा जमीन कब्जा कांड, ट्रांसयमुना का जुआ लूटकांड, शाहगंज का टप्पेबाजों से वसूली प्रकरण जैसी घटनाएं कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं। हालांकि अक्टूबर की रैङ्क्षकग के मानकों में यह शामिल नहीं है। यदि ये मामले शामिल होते तो स्थिति ज्यादा बिगड़ती।