आगरा। भूमिगत स्टेशन के निर्माण के लिए सबसे पहले स्टेशन परिसर हेतु चिन्हित भूमि पर अलग-अलग जगहों से बोरिंग कर मिट्टी के नमूने लिए जाते है। इन नमूनों की जांच के बाद स्टेशन बॉक्स (स्टेशन परिसर का कुल क्षेत्रफल) की मार्किंग की जाती है। इसके बाद स्टेशन परिसर की डायफ्रॉम वॉल (बाउंड्री वॉल) के निर्माण के लिए गाइडवॉल बनाई जाती है। गाइड वॉल का प्रयोग डी वॉल को सही दिशा देने के लिए किया जाता है, डी वॉल के निर्माण के बाद इसे हटा दिया जाता है।
डी वॉल की खुदाई की जाती है
गाइड वॉल के निर्माण के बाद एक खास मशीन से डी वॉल की खुदाई की जाती है। खुदाई पूरी होने का बाद उस जगह में सरियों का जाल (केज) का डाला जाता। इसके बाद कॉन्क्रीट डाल कर डायफ्रॉम वॉल का निर्माण किया जाता है। टॉप डाउन प्रणाली के तहत एक बार जब स्टेशन परिसर की डायफ्रॉम वॉल का निर्माण पूरा हो जाता है, तो फिर ऊपर से नीचे की ओर निर्माण कार्य प्रारंभ होते हैं। टॉप डाउन प्रणाली में सबसे पहले ग्राउंड लेवल पर भूमि को समतल कर कॉन्कोर्स की छत का निर्माण किया जाता है।
कई जगहों पर खुला छोड़ा जाता है
इस दौरान ग्राउंड लेवल की स्लैब में कई जगहों पर खुला छोड़ा जाता है। जब प्रथम तल (कॉन्कोर्स) की छत बनकर तैयार हो जाती है, तो खाली जगहों से मशीनों के जरिए मिट्टी की खुदाई शुरू की जाती है। इसके बाद कॉन्कोर्स तल की खुदाई पूरी हो जाने पर फिर मिट्टी को समतल कर प्लेटफॉर्म लेवल की छत का निर्माण किया जाता है। इस स्लैब में भी कुछ खाली जगह छोड़ी जाती हैं, जहां से फिर मशीनों के जरिए प्लेटफॉर्म लेवल की खुदाई कर स्टेशन परिसर का निर्माण किया जाता है।
29.4 किमी। के कॉरिडोर में बनेंगे 27 स्टेशन
ताजनगरी में 29.4 किमी लंबे दो कॉरिडोर का मेट्रो नेटवर्क बनना है, जिसमें 27 स्टेशन होंगे। ताज ईस्ट गेट से सिकंदरा के बीच 14 किमी लंबे पहले कॉरिडोर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। इस कॉरिडोर में 13 स्टेशनों का निर्माण होगा। जिसमें 6 एलीवेटिड जबकि 7 भूमिगत स्टेशन होंगे। इस कॉरिडोर के लिए पीएसी परिसर में डिपो का निर्माण किया जा रहा है। इसके साथ ही आगरा कैंट से कालिंदी विहार के बीच लगभग 16 कि.मी। लंबे दूसरे कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा, जिसमें 14 ऐलीवेटेड स्टेशन होंगे। इस कॉरिडोर के लिए कालिंदी विहार क्षेत्र में डिपो का निर्माण किया जाएगा।
बिछाया जा रहा है ट्रैक
आगरा डिपो में ट्रैक बिछाने का काम शुरु हो गया है। ट्रैक बिछाने का काम एल एंड टी कंपनी द्वारा किया जा रहा है। मेट्रो के लिए रुस में निर्मित हेड हार्डेड रेल ट्रैक का प्रयोग किया जाएगा। रुस के हेड हार्डेड रेल ट्रैक से आगरा मेट्रो के ट्रैक को मजबूती मिलेगी। इसके साथ ही हेड हार्डेंड रेल ट्रैक की मेंटिनेंस कॉस्ट भी काफी कम होती है। प्रॉयोरिटी कॉरिडोर के ऐलिवेटिड भाग में ट्रैक बिछाने का कार्य किया जाएगा। रेलवे की तुलना में मेट्रो प्रणाली में पटरियों पर गाडिय़ों का आवागमन अधिक होता है, यहां मेट्रो रेल औसतन पांच मिनट के अंतर पर चलती हैं। तेजी से ट्रेन की स्पीड पकडऩे और ब्रेक लगाने की स्थिति में ट्रेन के पहिये और पटरी के बीच अधिक घर्षण होता है, जिसके कारण सामान्य रेल जल्दी घिस जाती है और पटरी टूटने, क्रेक आदि जैसी समस्या आने लगती है, लेकिन हेड हार्डेंड रेल के अधिक मजबूत होने के कारण ऐसी कोई समस्या नहीं आती है।
हेड हार्डेंड रेल की विशेषताएं
-हेड हार्डेंड रेल पारंपरिक रेल की तुलना में अधिक मजबूत होती है।
-सामान्य रेल की तुलना में भार झेलने की क्षमता अधिक है।
-सामान्य रेल से मेंटिनेंस कम है।
- अधिक रेल ट्रैफिक के लिए बेहतर विकल्प।
डिपो परिसर में बैलास्टिड जबकि कॉरिडोर में होगा बैलास्टलैस ट्रैक
यूपीएमआरसी द्वारा आगरा मेट्रो डिपो परिसर में बैलास्टिड ट्रैक बिछाया जा रहा है। बैलास्टिड ट्रैक के लिए समतल भूमि पर गिट्टी एवं एवं कंक्रीट के स्लीपरों पर पटरी बिछाई जाती हैं। वहीं, आगरा मेट्रो के दोनों कॉरिडोर के मेन रूट पर बैलास्टलैस ट्रैक प्रयोग किया जाएगा। बैलास्टलैस ट्रैक के लिए कंक्रीट बीम पर पटरियों को बिछाया जाता है। इसके साथ ही पारंपरिक तौर पर प्रयोग होने वाले ट्रैक की तुलना बैलास्टलैस ट्रैक अधिक मजबूत होता है एवं इसका मेंटिनेंस भी काफी कम है।
आगरा मेट्रो के सभी भूमिगत मेट्रो स्टेशनों का निर्माण टॉप डाउन सिस्टम के तहत किया जा रहा है। टॉप डाउन सिस्टम में पहले स्टेशन के ग्राउंड लेवल की छत का निर्माण किया जाता है, इसके बाद कॉन्कोर्स लेवल एवं उसके बाद प्लेटफॉर्म लेवल का निर्माण किया जाता है। इस प्रणाली में छत की कॉस्टिंग के लिए शटरिंग का प्रयोग नहीं किया जाता।
सुशील कुमार, कार्यवाहक प्रबंध निदेशक, यूपी मेट्रो