बच्चे के इंटरेस्ट को समझें, करें मोटिवेट
आज जबरदस्त कॉपटीशन के बीच बच्चों के लिए सबसे पहला प्रेशर उनके पियर्स की तरफ से है। अपने फ्रेंड्स से बेहतर दिखने, उनसे ज्यादा बेहतर परफॉर्म करने समेत और भी कई तरह के कॉप्टीशंस हैं, जो बच्चों पर हावी रहते हैं। डॉ। पूनम तिवारी कहती हैं कि उनपर इस प्रेशर को हावी करने की रिस्पॉन्सेबिलिटी भी पेरेंट्स को जाती है। जो उनके फ्रेंड्स से ही उनका कम्पैरिजन करते हैं। इस जगह उन्हें ये समझना होगा कि अपने बच्चे से उन्हें कम्पेयर करने के बजाए, अपने बच्चे के इंटरेस्ट को समझने पर जोर दें मोटिवेट करें।
बच्चों पर सोशल प्रेशर
ज्यादातर देखा गया है कि बच्चे किसी पार्टी में भी जाते हैं, तो सामने से मिलने वाले गेस्ट भी सबसे पहले बच्चों की स्टडीज को डिस्कस करने लग जाते हैं। इस बीच अगर किसी पेरेंट्स के सामने उनके बच्चे के फ्रेंड की ज्यादा तारीफ हो गई, तो वहीं से हो जाती है। शुरुआत बच्चे पर प्रेशर बनने की।
बच्चा डिजिटल वल्र्ड में एक्टिव
डिजिटली स्मार्ट होती सोसायटी में आज लगभग हर बच्चा डिजिटल वल्र्ड में भी खूब एक्टिव है। जहां किसी भी बच्चे की अचीवमेंट सेकेंड्स में वायरल होती है। सोशल मीडिया पर वायरल होती उनकी अचीवमेंट्स को अगर बच्चे और उनके पेरेंट्स दोनों पॉजिटिव वे में लें, तो ये उनके और उनके बच्चे के लिए भी फायदेमंद होगा, पर बात उस वक्त बिगड़ जाती है जब उस अचीवमेंट को दो, उसे हासिल करने के लिए पेरेंट्स बच्चों पर प्रेशर बनाने लगते हैं। वो अचीवमेंट, जो प्रेशर को फेस कर रहे बच्चे के इंटरेस्ट एरिया में ही नहीं आती।
प्रेशर का बच्चों पर निगेटिव असर
इन सभी चीजों को लेकर जब पेरेंट्स बिना कुछ सोचे-समझे बच्चों पर उन सब्जेक्ट्स या चीजों में एक्सपर्ट बनने का प्रेशर डालते हैं, जिनमें बच्चों का इंटरेस्ट नहीं होता, वो प्रेशर बच्चों पर निगेटिव असर डालता है।
बच्चों को न करें आपस में कंपेयर
डॉ। पूनम तिवारी कहती हैं कि आज के समय में बच्चों में मेंटल स्ट्रेस एक्स्ट्रा एक्टिविटीज का प्रेशर डालने से भी हो सकता है। पेरेंट्स में बच्चों की परवरिश से जुड़ी एक आम धारणा बन गई है कि बच्चा जितनी तरह की एक्सट्रा एक्टिविटीज में भागीदार होगा, उसका फ्यूचर उतना ही अच्छा होगा। इसमें कोई दो राय भी नहीं कि बच्चे को पढ़ाई के अलावा दूसरी एक्टिविटीज में भाग लेने को उत्साहित करने से उनके साइकोलॉजी में बदलाव आता है, लेकिन, बच्चे के शेड्यूल में स्कूल, ट्यूशन और होमवर्क करने में ही उसका समय निकल जाता है।
बच्चों की मेंटल हेल्थ पर फोकस जरूरी
जब खाने-पीने और नींद की रूटीन गड़बड़ा जाती है, ऐसे में बॉडी का शुगर लेवल कम हो जाता है, परिणामस्वरूप बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। अपनी बातों को व्यक्त करने के लिए वो ओवर एक्साइटेड हो जाते हैं, धीरे-धीरे उन्हें अपनी फीलिंग्स को एक्सप्रेस करने के लिए गुस्सा और चिड़चिड़ापन का सहारा लेना पड़ता है। बच्चों में मेंटल स्ट्रेस को कम करने के लिए उसे पौष्टिक आहार खिलाएं और साथ ही फिक्स्ड टाइम पर डेली सुलाएं।
बच्चों में स्ट्रेस पैदा करता है टेलीकास्ट
पेरेंट्स को अपने बच्चों के टीवी और मोबाइल के एक्सेस पर भी निगरानी रखनी होगी। सोशल मीडिया, न्यूज व दूसरे टेलीकास्ट बच्चे के मन में स्ट्रेस पैदा कर सकते हैं। कुछ बच्चे हिंसक हो जाते हैं। तो वहीं कुछ कठोर भाषा का यूज करने लगते हैं। टीवी और मोबाइल के साइड इफैक्ट्स से बचने के लिए बच्चों को इनकी लत न लगने दें।
पेरेंट्स स्पेंड करें क्वालिटी टाइम
आज कल ज्यादातर पेरेंट्स वर्किंग हैं, जिस वजह से वे अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं, लेकिन अपने टाइमटेबल में बच्चों के लिए भी टाइम फिक्स करें। उनके लिए एक कफर्टेबल एन्वॉयरमेंट बनाएं, जहां वे अपनी किसी भी परेशानी के बारे में चर्चा करने में संकोच न करें। बच्चे अपनी हर टेंशन के बारे में आपसे खुलकर बात करें। बच्चे की परेशानी को समझें और उसे दूर करने की कोशिश करें।
इंडियन इंटेलीजेंट्स टेस्ट के जरिए पेरेंट्स अपने बच्चों के करियर को लेकर कन्फ्यूजन को दूर कर सकते हैं। आज के समय में बच्चों पर ऑलरेडी बहुत प्रेशर है और इस तरह के प्रेशर उनकी मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर सकते हैं। टेस्ट के पता किया जा सकता है कि बच्चा किस फील्ड में बेहतर कर सकता है।
सोनिका चौहान, होली पब्लिक स्कूल जूनियर, आवास-विकास