आगरा(ब्यूरो)। इसमें 10.99 लाख लोगों की घर-घर जाकर स्क्रीनिंग की गई थी। इस दौरान 6013 टीबी के सस्पेक्ट मरीजों की बलगम की जांच की गई थी। इनमें 390 लोग टीबी से ग्रसित मिले। अब इनका उपचार शुरू हो गया है।
सीएमओ डॉ। अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि सीएमओ डॉ। अरुण कुमार श्रीवास्तव ने मरीज में टीबी पुष्टि होने पर उसके परिवार के सदस्यों की भी टीबी की जांच कराई जाती है। परिवार के अन्य सदस्यों में टीबी न निकलने पर भी उनको टीपीटी(टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी) दी जाती है।

टीबी होने की आशंका नहीं रह जाती

इससे उन्हें भविष्य में टीबी होने की आशंका नहीं रह जाती। उन्होंने बताया कि टीबी मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, इसलिए इन मरीजों की एचआईवी और डायबिटीज की भी जांच कराई जाती है। सभी मरीजों की ड्रग सेंस्टिविटी की भी जांच कराई जाती है। जो मरीज ड्रग सेंस्टिव मिलते हैं उनकी दवा छह महीने तक चलती है, जबकि ड्रग रेसिस्टेंट (डीआर) टीबी मरीजों का इलाज डेढ़ से दो साल तक चलता है। ड्रग सेंस्टिव टीबी के मरीज जब बीच में दवा बंद कर देते हैं तो उनके डीआर टीबी मरीज बनने की आशंका बढ़ जाती है, इसलिए दवा पूरा किए बिना इलाज बंद नहीं होना चाहिए।