आगरा(ब्यूरो)। प्रवासी मेहमान यानी पक्षी हजारों किमी का सफर तय करके दूर देश से आगरा की सरजमीं पर आते हैं। यहां के कीठम, जोधपुर झाल समेत अन्य हेविटाट पर आशियाने बनाते हैं। इसके बाद मार्च की शुरूआत से पलायन करना शुरू कर देते हैं। वर्षों से ये आवागमन का सिलसिला यहां जारी है।
प्रवासियों का आना जारी
आगरा और मथुरा की सीमा से सटा हुआ जोधपुर झाल वेटलैंड विदेशी मेहमानों के कलरव और अठखेलियों का नया ठिकाना बन गया है। यूरोप और मध्य एशियाई देशों से प्रवास पर आने वाले पक्षी ब्रज क्षेत्र में आकर अपना वार्षिक चक्र पूरा करते हैं। ठंड शुरू होते ही इन पक्षियों का भारत समेत 30 देशों में प्रवास होता है। बर्ड वॉचर व पर्यावरण एक्टिविस्ट डॉ। देवाशीष भट््टाचार्य ने बताया कि साइबेरिया से आया कुरंजा फतेहपुरसीकरी के पास डेरा डाले हुए हैं। सर्दी में विदेशी पक्षियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है। जोधपुर झाल में यूरोप के कई देशों के साथ अमेरिका तक से पक्षी आते हैं।
अबकी बार लंबा होगा माइग्रेशन पीरियड
बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ। केपी सिंह ने बताया कि विदेशी पक्षियों का 10-15 सितंबर के बीच आना शुरू हो गया था। लेकिन बीच के पीरियड में टेम्प्रेचर अधिक रहने से पक्षियों का आवागमन ठहर गया। अब पिछले कुछ दिनों से टेम्प्रेचर में गिरावट दर्ज की गई है, इसके चलते एकबार फिर पक्षियों का आवागमन शुरू हो गया। जोधपुर झाल में कई देशों से आए पक्षी डेरा डाले हुए हैं। माइग्रेशन साइकिल बिगड़ गया है। इस कारण विदेशी 15 से 20 दिन देरी से लौटेंगे। जो पक्षी मार्च में लौट जाते थे, वे अब अप्रैल में अपने देशों को रवाना होंगे। इसके अलावा इस बार जिले में प्रवासियों के ठिकानों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी देखने को मिली। इसकी वजह अच्छी बारिश है। और सालों में जो नदियां सूखी रहती थीं, उनमें इस बार पानी है। यही कारण है कि इस बार प्रवासी इसके आसपास भी डेरा डाले दिखेंगे।
प्रवासी पक्षियों में पेलिकन सबसे बड़ा और लिटिल स्टंट सबसे छोटा
गतवर्षों में आगरा में 100 से अधिक प्रवासी पक्षियों की प्रजातियां रिकॉर्ड की गई हैं। सर्दियों के प्रवास पर आगरा में सबसे अधिक वेटलैंड्स पर निर्भर डक, वेडर व शोर बर्ड की प्रजातियों का माइग्रेशन होता है। गर्मी व मानसून पूर्व स्थलीय प्रजातियां रिकॉर्ड की जाती हैं। साल भर के माइग्रेशन के दौरान सबसे बड़े प्रवासी पक्षी के रूप में ग्रेट व्हाइट पेलिकन, डालमेशन पेलिकन और फ्लेमिंगो रिकॉर्ड किया जाता है। वहीं आगरा में सबसे छोटे प्रवासी पक्षियों में लिटिल स्टिंट, सेन्डपाइपर और वेगटेल रिकॉर्ड की जाती हैं।
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मेहमानों की सुरक्षा का भी रखना होगा ध्यान
हजारों किमी की दूरी तय कर आने वाले विदेशी मेहमानों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना जरूरी है। गुरुवार को फतेहपुरसीकरी के पास गांव दूरा के खेतों में सारस का झुंड डेरा डाले हुए था। अचानक से लोगों का आवागमन शुरू हुआ। खेतों में किसानों के ट्रैक्टर पहुंचे तो सारस के झुंड ने ऊड़ान भरी। इसी दौरान एक सारस की हाईटेंशन लाइन की चपेट में आकर मौत हो गई। बर्ड वॉचर व पर्यावरण एक्टिविस्ट डॉ। देवाशीष भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार को बिजली तारों को अंडरग्राउंड करना चाहिए, जिससे इस तरह की घटना को रोका जा सके।
यहां डेरा डालते हैं विदेशी पक्षी
जोधपुर झाल
कीठम
चंबल
ऊंटगन नदी के पास
विदेशी पक्षियों का आगमन तेजी से हो रहा है। कुरंजा (डेमोइसेल क्रेन) दो से ढाई हजार की संख्या में आगरा पहुंचे हैं। जबकि पूर्व में इनकी संख्या 200 से 400 रहती थी। क्लाइमेेट की वजह से माइग्रेशन साइकिल में बदलाव देखने को मिल रहा है। इस बार 15 से 20 दिन की देरी से प्रवासी पक्षी लौटेंगे।
डॉ। केपी सिंह, प्रेसिडेंट, बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसाइटी
फतेहपुर सीकरी के पास गांव में साइबेरिया से आए कुरंजा (डेमोइसेल क्रेन) डेरा डाले हुए हैं। गुरुवार को एक सारस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आकर दुर्घटना का शिकार हो गया। इस तरह की घटना को रोकना होगा। बिजली तारों को अंडरग्राउंड किया जाए।
डॉ। देवाशीष भट्टाचार्य, बर्ड वॉचर