आगरा.( ब्यूरो) पुराने आलू को नए आलू के भाव बेचकर मुनाफाखोर अधिक मुनाफा कमा रहे है, इस आलू को खाने के बाद खाने वालों की बॉडी ऑर्गन डैमेज हो रहे हैं। डॉ। राजेश माथुर का कहना है कि जहरीले आलू से लीवर, किडनी आंत तक डैमेज हो जा रही है। अधिक रुपए कमाने के लालच में पुराने आलू को केमिकल्स से धोकर नया कर रहे हैं। इसके बाद इस आलू में नए जैसी चमक दिखाई देती है। इसके बाद इस आलू को नए आलू के नाम पर अधिक मुनाफा कमाने के लिए बेचा जा रहा है।


ऐसे होता है ठेके पर तैयार होता है जहरीला आलू
सब्जी मंडी के आड़तिया आगरा के आलू को लखनऊ का बताकर मुनाफा कमाने के लिए ठेके पर आलू को तैयार कराते हैं, इसके अधिक मुनाफे में मार्केट में बेच देते हैं। इस प्रक्रिया में कोल्ड स्टोर से पुराना आलू धोकर उसको सुखाया जाता है। इसके बाद जमीन खोदकर पानी में डाला जाता है। उसमें पीला या लाल, गहरा पीली मिट्टी घोली जाती है। साथ में अभ्रक युक्त बालू मिट्टी उस पर डाली जाती है। एक बोतल तेजाब युक्त केमिकल डाला जाता है। इस कारण आलू की ऊपरी परत झुलस जाती है। आलू का छिलका झुलसने से अंदर का भाग नजर आने लगता है। आलू के ऊपरी परत पर रंग के रूप में मिट्टी और बालू चिपक जाता है। इसको पानी से निकालकर साफ किया जाता है और छानकर सुखाने के बाद बोरा में भरकर बाजार में बेच दिया जाता है।

सिकंदरा मंडी में 8 से 10 ट्रक की खपत
आलू के आड़तिया मास्टर रफीक अहमद बताते हैं कि सिकंदरा सब्जी में आठ से दस ट्रक तक प्रतिदिन खपत है। इस मंडी से आसपास की मंडियों में आलू की सप्लाई की जाती है, इसमें बमरौली कटारा, मथुरा, हाथरस, एटा, टूंडला, फिरोजाबाद शामिल है। मंडी में नए आलू की डिमांड अधिक है, शादियों के सीजन में भी नए आलू को पसंद किया जा रहा है, ऐसे में अधिक मुनाफा कमाने के लालच में मुनाफाखोर नए को केमिकल की मदद से नया कर रहे हैं।

नया बोलकर बेच रहे पुराना आलू
सिकंदरा सब्जी मंडी बड़ी मंडियों में गिनी जाती है। नए आलू की तरह नजर आने वाला आलू पुराना है। मुनाफाखोर मिट्टी, केमिकल और बालू से पुराने को नया आलू बनाकर शहर की बड़ी सब्जी मंडियों में आलू के रूप में जहर बेच रहे हैं। इसमें शहर के साथ-साथ बड़े आलू कारोबारी भी शामिल है। इस काम को हर वर्ष सितंबर और अक्टूबर के महीने में किया जाता है। यहां से दूसरे जिलों में आलू को भेजा जाता है। खरीदारों को नया आलू बोलकर अधिक रेट में बेचते हैं।

खरीदारों के सामने नहीं विकल्प
बारिश के बाद, इस तरह के खेल शुरू होते हंै। जिसका कारण मार्केट में सब्जियों की कमी है। लोग पुराना आलू खाकर ऊब चुके होते हैं और उसके स्वाद में मीठापन आने लगता है। ऐसे में लोगों के सामने नया आलू खरीदना मजबूरी बन जाता है। इस तरह के आलू को खाने के लिए डॉक्टर्स मना करते हैं। इसको खाने बीमार होने की आशंका बनी रहती है।

सब्जी मंडी मेंं आलू विक्रेता से बातचीत.
रिपोर्टर, आलू चाहिए नया, पुराना नहीं चाहिए
विक्रेता, अभी नया आलू नहीं आया है मार्केट में
रिपोर्टर, रेट जो भी हों देंगे आपको, देखलो बेचने के लिए चाहिए
विक्रेता, ठीक है, 28 रुपए कि लो मिलेगा, हल्का लाल है, मिट्टी से निकला है।
रिपोर्टर, हमको आठ बोरे चाहिए। कार्यक्रम के लिए, नया ही चाहिए।
विक्रेता, सैंपल दिखाता हंू, आपको मेरे साथ आओ
रिपोर्टर, ये आलू ताजा नहीं लग रहा है, देखो इसको
विक्रेता, आपको बेचने के लिए चाहिए, सस्ता करा दुंगा
ये कोल्ड से तैयार होकर आता है। वहां केमिकल से साफ होता है।
रिपोर्टर, ठीक है, आप मुझे सैंपल दे दो, मैंं चैक कराने के बाद खरीदूंगा।
विक्रेता, चेक कहां कराओगे, नहीं फिर नहीं है, आपको बेचने लिए चाहिए था, चैक के चक्कर मेें हमको नहीं पडऩा।


मार्केट में आलू को केमिकल से तैयार करने के बाद लोगों के बेचा जाता है, इसको खाने के बाद वे तरह-तरह की बीमारी का शिकार हो जाते है, ऐसे लोगों पर कानूनी कार्यवाई करनी चाहिए।
कप्तान सिंह चाहर


मंडी में जिस आलू की खपत अधिक होती है, कुछ लोग अधिक मुनाफा कमाने के लालच में लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं। ऐसे लोगों को चिन्हित किया जाना चाहिए।
चौधरी दिलीप सिंह


नवंबर के बाद मंडी में नया आलू आता है। इसके पहले जो भी इस तरह के आलू दिखे, समझ जाएं वह नया आलू नहीं है। देखने पर भी वो आलू मिट्टी में लगा नजर आता है।
चौ। बाबू लाल, पूर्व प्रधान



पुराना और सफेद आलू को ही केमिकल की मदद से नया तैयार कराया जाता है। जिस आलू पर अधिक मिट्टी लगी हो तो समझे कि वो आलू नया नहीं बल्कि तैयार किया गया है। इसे खाने से किडनी, लीवर और आंत भी हो सकती है डैमेज, एक्सपर्ट्स के बाद ही मंडी में नया आलू सप्लाई किया जाता है।
डॉ। गीतम सिंह, डीन श्री विनायक कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर


केमिकल युक्त आलू खाने से लीवर, किडनी और आंतों के खराब होने का खतरा है। इस तरह के आलू को नहीं खाना चाहिए। क्योंकि से अंदर से बॉडी के पार्टस का जला देता है। अल्सर, उल्टी होना इसकी पहचान है।
डॉ। जितेन्द्र दौनेरिया, फिजीशियन