आगरा। इस प्रतिमा को मूर्त रूप देने में दो लाख रुपए से अधिक का खर्च आया है, यह प्रतिमा प्रदेश की सबसे ऊंची और अधिक वजनी प्रतिमा है। बुधवार को गणेश प्रतिमा दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ खासी भीड़ रही।

महाराष्ट्र की तर्ज स्थापित गणेश प्रतिमा
महाराष्ट्र की तर्ज पर अब आगरा में भी गणेश चतुर्दशी के अवसर पर
प्रदेश की सबसे बड़ी ईको फ्रेंडली मूर्ति की बल्केश्वर में स्थापना की गई। इस मूर्ति की ऊंचाई 22 फुट है। सबसे खास बात यह है कि इसमें किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं किया गया है। इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। इसे मिट्टी, बीज और हर्बल रंगों से बनाया गया है जो कि पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।


मूर्ति के अंदर डाले गए हैं फलदार पेड़ों के बीज
कमेटी के अध्यक्ष संजय उर्फ पोला भाई ने बताया कि यह मूर्ति पूरी तरह से ईको फ्रेंडली है। जो पानी में आसानी से घुल जाती है। खासतौर पर एक मूर्ति के अंदर आम, नीम, जामुन जैसे पेड़ों के बीज डाले गए हैं। वो इसलिए कि जब इस मूर्ति का विसर्जन किया जाए तो विसर्जन के बाद ये बीज कहीं न कही अंकुरित होकर पेड़ बन जाएंगे ताकि वह पर्यावरण को संरक्षित करने का संदेश दें न कि नुकसान पहुंचाने का।


गुजरात से मंगाई ख़ास मिट्टी
गणेश चतुर्थी पर 22 फुट से भी ज्यादा की ऊंचाई वाली प्रतिमा बनाई जा रही है। इस प्रतिमा को बनाने में लगभग दो लाख रुपए से अधिक लागत लगी है। कमेटी के उपाध्यक्ष राजा शर्मा ने बताया कि इस मूर्ति को बनाने के लिए उन्होंने जून से तैयारी करना शुरू कर दिया था। गुजरात से खास तरह की मिट्टी मंगाई गई है। इस मूर्ति में दो तरह की मिट्टी का इस्तेमाल किया गया है। एक सफेद मूसली और गुलाबी दोनों का इस्तेमाल मूर्ति को फाइनल टच देने और लेप के तौर पर प्रयोग किया जाता है।

मूर्ति से नहीं पहुंचेगा नुकसान
इस मूर्ति में प्लास्टर ऑफ पेरिस का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इससे बनी प्रतिमा से पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुंचता है। इसी को ध्यान में रखते हुए बप्पा की प्रतिमा में पीओपी से नहीं बनाया गया है।

भारतीय परंपरा का रखा ध्यान
मूर्ति बनाने में रखा जाता है हिंदू रीति रिवाज का विशेष ध्यान इस मूर्ति को डिजाइन करने के लिए खास तौर पर महाराष्ट्र से कारीगर बुलाए जाते हैं। मूर्ति तैयार करते समय भारतीय संस्कृति का भी ध्यान रखा गया है। मूर्ति तैयार करने के दौरान कारीगर वेज खाने का प्रयोग करते हैं। इस मूर्ति को मंगल मूर्ति सेवा समिति के द्वारा तैयार कराया गया है।


गणेश जी की यह मूर्ति पूरी तरह से ईको फ्रेंडली है। जो पानी में आसानी से घुल जाती है। खासतौर पर एक मूर्ति के अंदर आम, नीम, जामुन जैसे पेड़ों के बीज डाले गए हैं।
संजय उर्फ पोला, अध्यक्ष कमेटी



इस मूर्ति को बनाने के लिए उन्होंने जून से तैयारी करना शुरू कर दिया था। गुजरात से ख़ास तरह की मिट्टी मंगाई गई है। इस मूर्ति में दो तरह की मिट्टी का इस्तेमाल किया गया है।
राजा शर्मा, कमेटी के उपाध्यक्ष



मूर्ति तैयार करते समय भारतीय संस्कृति का भी ध्यान रखा गया है। मूर्ति तैयार करने के दौरान कारीगर वेज खाने का प्रयोग करते हैं। वहीं मंत्रों और विधि-विधान से मूर्ति की स्थापना की गई है।
रविन्द्र सिंह महेंद्र, कमेटी सदस्य



इस मूर्ति में सबसे खास बात यह है कि मूर्ति पूरी तरह से ईको फ्रेंडली है। इससे पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचेगा। मूर्ति में मिट्टी के साथ फलदार बीज भी मिलाए गए हैं।
मनोज तोमर, कमेटी सदस्य