आगरा(ब्यूरो)। बच्चों में लगातार इंटरनेट के इस्तेमाल का क्रेज बढ़ता जा रहा है। पिछलेे छह महीने में एक दर्जन से अधिक ऐसे मामले में सामने आए हैं, इसमें ज्यादातर पेरेंट्स ने कंप्लेंट की है कि उनके बच्चों को सोशल मीडिया चलाने, वीडियोज देखने और ऑनलाइन गेम खेलने की लत लगी है। इन बच्चों की उम्र 11 से 16 साल के बीच है। मंडलीय मनोविज्ञान केन्द्र पर इस तरह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं।
हर रोज 4 घंटे इंटरनेट पर बच्चे
मंडलीय मनोविज्ञान प्रयोगशाला के संदीप कुमार के अनुसार बीस फीसदी पेरेंट्स कंप्लेंट लेकर आते हैं, उनके 11 से 16 साल के बच्चे हर रोज 4 घंटे से अधिक इंटरनेट पर देते हैं। वहीं, कुछ पेरेंट्स ने बताया कि उनके बच्चों को सोशल मीडिया, वीडियोज और ऑनलाइन गेमिंग की बुरी तरह लत लगी है। उधर, पेरेंट्स का कहना है कि 4 घंटे से अधिक स्मार्टफोन चलाते हैं। पेरेंट्स का कहना है कि उनके बच्चे इंटरनेट पर अधिकतर गेमिंग के आदी हो चुके हैं। छोटे बच्चे भी अपने बड़े भाई, बहन को कॉपी कर फोन चलाने के आदी बन रहे हैं।
ऑनलाइन क्लास ने बढ़ाई लत
पेरेंट्स का कहना है कि उनके बच्चे सारा दिन स्मार्टफोन में व्यस्त रहते हैं,
पेरेंट््स बच्चों की शरारतों से बचने के लिए उनको मोबाइल फोन पकड़ा देते हैं। ऐसे बच्चों पर पेरेंट्स की रोक-टोक नहीं है वे कभी भी उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। पेरेंट्स का कहना है कि कोविड काल में ऑनलाइन क्लास ने बच्चों में स्मार्ट गैजेट्स की लत को बढ़ाया है। लेकिन वे इस लत को छोडऩे को तैयार नहीं हैं।
फोन के इस्तेमाल से एंग्जाइटी, डिप्रेशन
मनोवैज्ञानिक डॉ। रचना सिंह ने बताया कि सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से आजकल बच्चे मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स के शिकार हो रहे हैं। उनमें स्ट्रेस, एंग्जाइटी और डिप्रेशन बढ़ रहा है। साथ ही आत्मविश्वास, फोकस और अच्छी नींद की कमी होती जा रही है। टीनएजर्स के व्यवहार में भी तेजी से बदलाव हो रहे हैं। वे ज्यादा चिड़चिड़े और गुस्सैल होते जा रहे हैं।
क्या कहते हैं पेरेंट.
माता-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे सही रास्ते पर चलें, लेकिन कहीं ना कहीं जाने अंजाने में वे खुद ही बच्चों को फोन पकड़ा देते हैं, जिसके वे आदी हो जाते हैं।
उपासना शर्मा, पेरेंट्स
सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स की गाइडलाइंस का सख्ती से पालन होना चाहिए। बच्चे 15 साल से कम होने पर अपना अकाउंट न बना सकें। तभी इसके बच्चों से दूर रखा जा सकता है।
मुस्कान, पेरेंट्स
बच्चे जब घर में शरारत करते हैं तो पेरेंट्स के पास एक मात्र विकल्प होता है, मोबाइल फोन के जरिए उनको शांत कराना, बाद में बच्चों को इसकी लत लग जाती है।
स्वाति मगरानी, पेरेंट्स
पेरेंट्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे बच्चों को किस तरह का कंटेंट दे रहे हैं, वे बच्चों को स्टोरी की बुक्स, समान्य ज्ञान की जानकारी भी दे सकते हैं। बच्चों को लेकर गंभीरता बरतने वाले पेरेंट्स उनको लेकर टेंशन फ्री रहते हैं।
डॉ। पूनम तिवारी, मनोवैज्ञानिक आरबीएस कॉलेज
स्थिति पर एक नजर
-इस उम्र के बच्चे हो रहे गेमिंग का शिकार
11 से 16 साल के बच्चे
-पेरेंट्स ने लिया मनोवैज्ञानिक से परामर्श
20 फीसदी
-रोजाना बच्चों के फोन इस्तेमाल का समय
4 घंटे