गार्जियन का दावा
गार्जियन ने यह दावा अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडेन द्वारा मुहैया कराए गए दस्तावेजों के आधार पर किया है. स्नोडेन ने ही अमेरिकी और ब्रिटिश जासूसी कार्यक्रम का सनसनीखेज ब्योरा पहली बार प्रेस को लीक किया था. अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, ‘अमेरिका ने इंटरनेट पर जारी गतिविधियों पर निगरानी के लिए पूरी दुनिया में डेढ़ सौ जगहों पर करीब 700 सर्वर लगा रखा था. इन्हीं सर्वर के जरिये पूरे विश्व भर में इंटरनेट जासूसी के काम को अंजाम दिया जाता था.’
स्नोडेन के हवाले से खबर
स्नोडेन से हासिल दस्तावेजों के हवाले से अखबार का कहना है कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) ने इस काम के लिए एक्सकीस्कोर कंप्यूटर कार्यक्रम संचालित कर रखा था. दस्तावेज के मुताबिक इस कार्यक्रम के लिए 2008 में एक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था. जिसमें ट्रेनिंग के लिए जो प्रिंट सामग्री दी गई थी, उसमें वह नक्शा भी शामिल था, जिसमें दुनिया भर में लगे जासूसी सर्वर का ब्योरा था. उस नक्शे के मुताबिक इनमें से एक अमेरिकी जासूसी सर्वर भारत की राजधानी नई दिल्ली के किसी समीपवर्ती इलाके में लगा हुआ प्रतीत होता है.
कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए नजर
गार्जियन में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि एनएसए अपने एक्सकीस्कोर कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिये ही दुनिया भर में इटरनेट पर जारी किसी भी किस्म की गतिविधियों पर नजर रखती है. इसी प्रोग्राम के माध्यम से ही करोड़ों इंटरनेट यूजर्स के ईमेल, ऑनलाइन चैटिंग और ब्राउजिंग की जासूसी की जाती है. इसी के चलते एनएसए को इंटरनेट यूजर्स के पूरे इतिहास, भूगोल के बारे में पता रहता है.
अमेरिकी कंपनियों पर शक
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारतीय सर्वर बाजार पर आइबीएम, एचपी और डेल जैसी अमेरिकी कंपनियों का एकाधिकार है. मार्केट रिसर्च एंड एनालिस्ट फर्म आइडीसी के हवाले से अखबार ने कहा है कि कोई भी भारतीय कंपनी सर्वर निर्माण के लिए अहम कंप्यूटर या इलेक्ट्रानिक चिप्स नहीं बनाती है. रिपोर्ट में इशारों ही इशारों में इस बात के पर्याप्त संकेत दे दिए गए हैं कि जासूसी सर्वर के भारत में लगे होने के पीछे इन कंपनियों का हाथ होने से इन्कार नहीं किया जा सकता है.
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