रामायण की असली कहानी तो संस्कृत में लिखी गई थी लेकिन समय के साथ उसकी ज़ुबान बदलती रही है।
लेकिन फ़रीदाबाद की विजय रामलीला कमेटी के आयोजकों ने उस स्क्रिप्ट को नहीं छोड़ा है जो उनके बुजुर्ग बंटवारे के समय पाकिस्तानी पंजाब से साथ लेकर आए थे।
कमेटी प्रमुख विश्व बंधु शर्मा मंझे हुए संगीतकार हैं। वे कहते हैं, "हमारे बुज़ुर्ग जब बंटवारे के बाद पाकिस्तानी पंजाब से यहां आए तो उर्दू भाषा की यह स्क्रिप्ट अपने साथ लाए थे। तब से हमने इसमें मामूली बदलाव किए हैं लेकिन आधार वही है। हम इस परंपरा को बनाए रखना चाहते हैं।"
मुश्किल उर्दू की जगह अब आसान ज़ुबान ने लेनी शुरू कर दी है, लेकिन पूरी तरह नहीं।
रामलीला के अभिनेता कहते हैं, "शुरू में तो हमें कुछ कठिनाई हुई थी, लेकिन अब नहीं, हमने अपने बुज़ुर्गों से सीखा है और अब उर्दू के शब्द अपने दैनिक जीवन में भी इस्तेमाल करते हैं।"
इस रामलीला में उर्दू के इस्तेमाल की कहानी पुरानी भी है और दिलचस्प भी।
विश्व बंधु शर्मा कहते हैं कि भाषा सब की समझ में आए इसकी कोशिश भी की गई है। "मौत का तालिब हूँ मैं, मेरी लबों पे जान है, दो घड़ी का यह मुसाफ़िर अपका मेहमान है... तो इसमें ऐसी कौन सी बात है जो समझ में नहीं आती, हमारी कोशिश है कि यह परंपरा जीवित रहे और इस स्क्रिप्ट में ज्यादा बदलाव न हो।"
नई पीढ़ी उर्दू लिखना और पढ़ना नहीं जानती, लेकिन इस रामलीला की अनोखी पहचान बनाए रखने के लिए आयोजक कमर कसे हैं।
फ़रीदाबाद के पूर्व मयर अशोक अरोड़ा उन लोगों में शामिल हैं जिनके बुज़ुर्गों ने पाकिस्तान से आने के बाद उर्दू में रामलीला शुरू की थीं।
वे कहते हैं, "उर्दू बहुत प्यारी भाषा है, लगती बहुत मुश्किल है लेकिन है बहुत आसान।"
विश्व बंधु शर्मा और उनके साथी अपनी परंपरा को क़ायम रखने के लिए नई पीढ़ी को उर्दू और संस्कृत की शिक्षा देने के बारे में सोच रहे हैं।
वो कहते हैं, "हम चाहते हैं कि यहां ऐसे विद्वान लाएं जो स्थानीय लोगों को उर्दू और संस्कृत की शिक्षा दें, यह दोनों भाषाएँ भारत को जोड़कर रखती हैं।"
International News inextlive from World News Desk