1. योगी आदित्यनाथ :
यूपी सरकार में सीएम योगी आदित्यनाथ के अलावा चार मंत्री ऐसे थे जो फिलहाल न तो विधायक थे और न ही एमएलसी। ऐसे में उन्हें मंत्री पद पर बनने रहने के लिए 6 महीने के अंदर सूबे के किसी एक सदन का सदस्य होना लाजमी था। इन मंत्रियों का 19 सितंबर को 6 महीने पूरे हो रहे हैं, इस डेट लाइन से पहले इन्हें सदन का सदस्य बनना था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व डॉ. दिनेश शर्मा, परिवहन राज्य मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, वक्फ राज्यमंत्री मोहसिन रजा विधानपरिषद के सदस्य निर्वाचित हो गए हैं। भाजपा ने जब 2017 में विधानसभा चुनाव जीता उस वक्त किसी को नहीं पता था कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे हैं, हालांकि उन्होंने कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। ऐसे में जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो उन्हें किसी एक सदन का सदस्य बनना जरूरी था।
पिछले एक दशक में यूपी को कोई भी सीएम चुनकर विधानसभा नहीं पहुंचा
2. अखिलेश यादव :
साल 2012 में समाजवादी पार्टी को जब सबसे ज्यादा वोट मिले तो यह तय था कि अखिलेश या मुलायम इनमें से कोई एक मुख्यमंत्री बनेगा। पार्टी ने सर्वसम्मति से अखिलेश का नाम बढ़ाया और सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया। यहां भी वहीं पेंच था, क्योंकि अखिलेश भी सांसद रहे हैं उन्होंने भी कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। ऐसे में अखिलेश ने भी योगी की तरह ही विधान परिषद के जरिए सदन का रास्ता चुना।
पिछले एक दशक में यूपी को कोई भी सीएम चुनकर विधानसभा नहीं पहुंचा
3. मायावती :
पिछले एक दशक से यूपी को कोई भी मुख्यमंत्री चुनकर विधानसभा नहीं पहुंचा है। इसकी शुरुआत मायावती ने की थी। साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी को असेंबली इलेक्शन में सबसे ज्यादा वोट मिले थे। ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती का मुख्यमंत्री बनना तय था। मायावती ने भी उस वक्त विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। तब उन्होंने विधानपरिषद के जरिए एमएलसी बनकर सदन का रास्ता तय किया।
पिछले एक दशक में यूपी को कोई भी सीएम चुनकर विधानसभा नहीं पहुंचा

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