ब्रिटेन में महिलाओं का खतना गंभीर अपराध है. इसके बावजूद क़ानूनी कार्रवाई करने में मुश्किल पेश आई.
ब्रिटेन में तीन दशकों से महिलाओं का ख़तना गैरक़ानूनी है लेकिन इस दरमियां किसी पर भी सफलता से मुक़दमा नहीं चलाया जा सका है.
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ब्रिटेन की स्वास्थ्य सेवा का अनुमान है कि देश में हर साल 20 हज़ार लड़कियों को खतने के ख़तरे का सामना करना पड़ता है.
खतने का चलन ज्यादातर उत्तरी अफ़्रीका, मध्य पूर्व और एशिया में है.
इन लड़कियों की उम्र 15 साल से कम होती है.
यह बड़ा आंकड़ा है और इससे जुड़ा अपराध बेहद निजी किस्म का है.
दुनिया भर में महिलाओं का खतना सांस्कृतिक रिवायत का हिस्सा है. इसका चलन ज्यादातर उत्तरी अफ़्रीका, मध्य पूर्व और एशिया में है.
महिलाओं के खतने में उनके जननांग के बाहरी भाग के किसी हिस्से को या फिर पूरी तरह काटकर अलग कर दिया जाता है.
परिवार का सम्मान!
खतने के दौरान जननांग के बाहरी भाग के किसी हिस्से को या फिर पूरी तरह काटकर अलग कर दिया जाता है.
इस रिवाज़ को परिवार के सम्मान से जोड़कर देखा जाता है. ब्रिटेन में दुनिया के इन इलाक़ों से आए पहली या दूसरी पीढ़ी के प्रवासियों में इसका ख़तरा सबसे ज़्यादा है.
शुरुआती तकलीफ़ के अलावा भी खतने का दंश किसी लड़की को सारी उम्र सहना पड़ सकता है.
ब्रिटेन के पहले मुक़दमे का नतीजा यह निकला कि आरोपों का सामना कर रहे डॉक्टर को रिहा कर दिया गया.
हाल के सालों में ब्रिटेन में इस मसले पर जनजागरूकता बढ़ी है और सरकार पर इस समस्या से निपटने का दबाव भी.
कानूनी कार्रवाई!
महिलाओं के खतने की भुक्तभोगी ज़्यादातर कम उम्र की लड़कियां होती हैं.
मुक़दमे में दो लोगों पर की गई क़ानूनी कार्रवाई में एक डॉक्टर था.
डॉक्टर धनुसोन धर्मसेना पर जिस महिला के खतने का आरोप था, उन्होंने कुछ वक़्त पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था.
कानूनी वजहों से उस महिला का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया. सोमालिया में जब वे छोटी थीं तभी वे खतने की प्रक्रिया से गुज़र चुकी थीं.
बच्चे के जन्म के बाद डॉक्टर धर्मसेना ने महिला के जननांग से रक्तस्राव रोकने के लिए उनकी सर्जरी की थी. इससे उन्हें क़ानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा.
घिनौना रिवाज़
खतने की वजह से कई बार बच्चियों को स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
अपने बचाव में उन्होंने अदालत में कहा कि वे महिलाओं के खतने को घिनौना रिवाज़ मानते हैं पर उनकी सर्जरी से मरीज़ का रक्तस्राव रुक गया था.
डॉक्टर धर्मसेना के मामले में पीड़िता एक वयस्क थीं जबकि महिलाओं के खतने की भुक्तभोगी ज़्यादातर लड़कियां होती हैं.
सरकारी अभियोजन एजेंसी का कहना है कि पीड़ित पक्ष ज़्यादातर मामलों में सबूत देने से हिचकता है और कभी ऐसा कर भी देता है तो बयान से वापस पलट जाता है क्योंकि इसके पीछे उन्हें परिवार के दबाव का सामना करना होता है.
स्वास्थ्य सेवा
ब्रिटेन में अब तक खतने के कई मामले आ चुके हैं, मगर किसी को सज़ा नहीं दी गई है.
सवाल इसे लेकर भी है कि आखिर ब्रिटेन में अब तक कोई क्यों महिलाओं के खतने के लिए जेल नहीं भेजा गया है.
मेडिकल वीमेंस फ़ैडरेशन की डॉक्टर सैली डेविस कहती हैं, "क्योंकि कुछ परिवार ऐसा चाहते हैं. और हमारे पास मामले इसलिए दर्ज नहीं होते क्योंकि कोई इस मसले पर सोचने के लिए तैयार नहीं है."
तो फिर इससे निपटने का रास्ता क्या है. अदालतों में सबूत पेश करना एक मुश्किल चुनौती है. फिर ब्रिटेन की पुलिस और स्वास्थ्य सेवाओं के पास क्या विकल्प रह जाता है.
डॉक्टर डेविस का कहना है कि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को शिक्षित करने की ज़रूरत है. वही महिलाओं को इस रिवाज़ के घेरे से बाहर निकालने में मदद करेंगे.
वे कहती हैं, "कुछ ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्होंने ये सब झेला होगा. वे चाहेंगी कि उनकी बेटियों को इसी तकलीफ़ से न गुज़रना पड़े."
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