इसे बनाया है कंज़र्वेटिव पार्टी का समर्थन करनेवाले भारतीयों के एक समूह कंज़र्वेटिव फ़्रेंड्स ऑफ़ इंडिया ने.
इसके को-चेयरमैन रंजीत बक्शी को लगता है कि ब्रिटेन के अधिकतर प्रवासी भारतीय लेबर समर्थक रहे हैं, मगर अब समय के साथ-साथ ये वोटर भी बदल रहे हैं.
भारतीय मूल की उम्मीदवार प्रीति पटेल के साथ सामंथा कैमरन
वे कहते हैं,"ये सही है कि आज से 40-50 साल पहले लोगों को सिर्फ़ लेबर पार्टी नज़र आती थी, लेकिन 20-25 साल से कंज़रवेटिव पार्टी ने हमारे साथ जुड़ने की कोशिश की है."
वे कहते हैं, "और सबसे बड़ी बात ये कि जो नई पीढ़ी है भारतीयों की, जो यहीं जन्मे हैं, वो अपनी आवाज़ रखना चाहते हैं, और कंज़रवेटिव पार्टी ने इसे समझा है."
कंज़र्वेटिव ख़ेमे में उत्साह क्यों?
कंज़र्वेटिव ख़ेमे में भारतीय वोटरों को लेकर उमड़े उत्साह का कारण भी है.
ब्रिटेन के तीन बड़े विश्वविद्यालयों के एक साझा सर्वेक्षण में कहा गया है कि 1997 में जहाँ 77 प्रतिशत भारतीय वोटर ख़ुद को लेबर समर्थक मानते थे, वो संख्या घटकर 2014 में केवल 18 प्रतिशत रह गई है.
2010 में हुए ब्रिटेन के पिछले चुनाव में भारतीयों के 61 प्रतिशत वोट लेबर पार्टी के खाते में गए थे.
पत्नी जस्टिन के साथ एक मंदिर में लेबर पार्टी नेता एड मिलिबैंड
मगर लेबर पार्टी के टिकट पर लंदन असेंबली के सदस्य बननेवाले पहले ब्रिटिश एशियाई नवीन शाह भी मानते हैं कि स्थिति बदल रही है.
वे कहते हैं,"परिवर्तन ज़रूर आ रहा है और वो आना ही चाहिए, क्योंकि जैसे-जैसे लोग यहाँ रच-बस रहे हैं, जैसे-जैसे उनके मूल्य बदल रहे हैं, वैसे ही उनके वोटिंग के तरीक़े में भी बदलाव आता है, और वो इस चुनाव में भी है ."
टकराव नहीं
ऐसा समझा जाता है कि विदेशों में बसा भारतीय समुदाय दक्षिणपंथी बीजेपी को पसंद करता है, और इसकी एक झलक मिल भी रही है नरेंद्र मोदी के विदेशी दौरों में.
मगर यही वोटर ब्रिटेन में दक्षिणपंथी कंज़र्वेटिव पार्टी को कम और वामपंथी रूझान वाली लेबर पार्टी को ज़्यादा पसंद करते रहे हैं.
लंदन के एक मंदिर में लेबर नेता एड मिलिबैंड
लंदन से छपनेवाले अख़बार गुजरात समाचार के संपादक सीबी पटेल प्रवासी भारतीयों के लेबर समर्थक होने को स्वाभाविक मानते हैं.
वे कहते हैं,"1960 में इस देश में पाँच हज़ार भारतीय भी नहीं थे, आज उनकी संख्या 15 लाख से ऊपर हो चुकी है, तो ये हक़ीक़त है कि उस वक़्त लेबर ने हमारे जैसे आप्रवासियों का साथ दिया, जबक कंज़रवेटिव ने ऐसा नहीं किया. अब कंज़रवेटिव भी बदल रहे हैं.
"बीजेपी और लेबर में कोई टकराव भी नहीं है. लेबर कोई सोशलिस्ट पार्टी नहीं है, वो भी मुक्त बाज़ार की अर्थव्यवस्था का हिमायत करती है."
गुरूद्वारे में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन
ब्रिटेन में पिछले साल हुए एक शोध में कहा गया था कि 2050 तक ब्रिटेन की 20 से 30 फ़ीसदी आबादी एंगलो-सेक्सन या गोरी नहीं रह जाएगी.
और इस आप्रवासी आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा होने के कारण भारतीय वोटर ब्रिटेन की राजनीतिक पार्टियों के लिए लगातार महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं.
International News inextlive from World News Desk