6 अगस्त, 1945 को जब अमेरिका के फाइटरप्लेन्स ने जापान के हिरोशिमा शहर के ऊपर चक्कर काटा और एटम बम गिरा दिया तो सुटोमु यामागुकी अपने आफिस के काम से हिरोशिमा शहर में ही थे. बम हिरोशिमा शहर के बीचों बीच गिराया गया था. पूरा शहर आग, गर्मी और रेडिएशन से भर उठा था. यामागुकी बम गिराये जाने वाली जगह से महज 2 किलोमीटर दूर ही थे और वे परमाणु हमले के सेकंड वेव से इफेक्टेड हो गये थे. इससे उनका हाथ जल गया. वह तुरंत अपने शहर नागासाकी की ओर रवाना हो गए. हिरोशिमा शहर पूरी तरह ध्वस्त हो चुका था. 1 लाख से ज्यादा लोग मर चुके थे और कई हजार मौतें मौत से जूझ रहे थे.
यामागुकी वापस अपने शहर नागासाकी पहुँचे और उन्होने सपने में भी नहीं सोंचा था कि जिस मौत के खेल को वे अभी देखकर आ रहे हैं उन्हे उसे दोबारा देखना होगा. 9 अगस्त 1945 को एक और धमाका हुआ और यामागुकी एक बार फिर रेडिएशन से घिर गये. इस बार वे धमाके वाली जगह से 3 किलोमीटर दूर थे.
यामागुकी उन चंद गिने चुने लोगों में से थे, जो इन हमलों से बच गए. लेकिन वे शायद अकेले ऐसे इंसान थे जिन्होनें अपनी जिंदगी में दो न्यूक्लियर अटैक्स का सामना किया. दुनिया में आजतक दो ही बार न्यूक्लियर अटैक्स किए गए हैं.
2006 में यामागुकी को पेट का कैंसर हो गया और उन्हें हास्पिटलाइज कर दिया गया. 2009 में उन्होने अवतार मूवी के डायरेक्टर जेम्स कैमरोन से मिलने की ईच्छा जाहिर की. जैम्स कैमरोन उनसे हास्पिटल में मिले. उन्होने न्यूक्लिअर अटैक्स पर एक मूवी बनाने की ईच्छा जताई. उनसे मिलने के बाद यामागुकी ने अपनी बेटी से कहा कि “जैम्स ने सबकुछ सुन लिया है, अब मेरा मिशन खत्म हुआ.”