काशी में चर्चा का विषय बने रहे किन्नरों के इस पिंडदान कार्यक्रम को लेकर आचार्य लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने बताया कि महाभारत काल में शिखंडी ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। तब के बाद आज सामाजिक रूप से हमने अपने पितरों का पिंडदान किया है। हमारी कोशिश है, कि हम हर पांचवे साल यहीं आकर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करें। महाभारत काल के बाद किन्नरों द्वारा पिंडदान का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि मुगलकाल में कुछ किन्नरों ने पिंडदान किया था। आज हमने पिशाच मोचन पर जो पिंडदान किया है उससे हमारे पितृ काफी प्रसन्न हुए हैं। इसका प्रमाण है इस कार्यक्रम के दौरान लगातार बारिश का होना। मान्यता है कि जब पितृ प्रसन्न होते हैं तो पानी बरसता है।

महाभारत काल के बाद पहली बार किन्नरों ने किया अपने पितरों के लिए पिंडदान

त्रिपाठी ने यह भी बताया कि समाज में हमारे बारे में लोग सोचते हैं कि सभी किन्नरों का अंतिम संस्कार इस्लाम धर्म के अनुसार ही होता है, लेकिन ऐसा नही है। हमारी कोशिश होती है कि जो किन्नर जिस धर्म का रहा हो, उसका अंतिम संस्कार भी उसी के अनुसार किया जाए और हम ऐसा करते भी हैं।

 

 

 

 

National News inextlive from India News Desk

Weird News inextlive from Odd News Desk