कहानी :
इस बार पचास करोड़ का राज़ हैं और उसके पीछे है एक पुलिस वाला, दो चोर, एक अधेड़ दंपत्ति, एक लफंगा और कुछ और लोग।
रेटिंग : 1.5 STAR
समीक्षा :
हिंदी फिल्म में दो तरह की फिल्म्स होती हैं वो जिनमें दिमाग लगता है और वो जिनमे जरा भी दिमाग लगाने की जरूरत ही नही होती, ये फिल्में हर लेवल पर डम्ब हैं, चाहे वो सब्जेक्ट हो और चाहे ट्रीटमेंट हो। अगर ज़रा भी अक्ल कहीं भी धोखे से लगा लो तो बाद में खुद पे ही तरस आएगा, कि क्यों लगाई। फिल्म का फर्स्ट हाफ इन आधा दर्जन खजाना सर्च टीम्स के इंट्रोडक्शन में ही समाप्त और सेकंड हाफ ये सोचने में बीत जाता है कि ऐसी क्या मजबूरी है जो माधुरी ने इस फिल्म को क्यों साइन किया, आप ऐसे तो न थे। मेरी दूसरी बड़ी प्रॉब्लम है एडिटर से, एक स्ट्रीम से दूसरी कहानी के बीच मे कई बार भूल ही जाते हैं कि फिल्म में और भी किरदार थे। इनफैक्ट अगर एक भी कहानी अलग निकल जाए तो फिल्म को रत्ती भर भी फर्क न पड़े। डायलॉग इस फ़िल्म का हाईपॉइंट हैं, फिल्म जो भी है, जैसी भी है वो बॉलीवुड के 'बे सर पैर की कॉमेडी' की जेन्युइन फिल्म बनकर इसलिए उभरती है क्योंकि डायलॉग ठीक ठाक हैं।
अदाकारी :
जावेद जाफरी और अरशद वारसी फिल्म के आज भी कर्ता-धर्ता हैं, वहीं हैं जो जेनुइन लगते हैं बाकी सब कुछ फोर्स्ड है। अगर आपके पास माधुरी और अनिल का पेयर है तो कम से कम उसने थोड़ा मैजिक ही करवा लेते पर बेकार की स्क्रिप्ट ने ये मौका ऑडिएंस से छीन लिया, वो एक्ट तो ठीक करते हैं पर हैम बहुत करते हैं। फिल्म में अजय देवगन, संजय मिश्रा, बमन ईरानी भी हैं जो बस किसी तरह अपनी प्रेजेंस फील कराते हैं पर कहना गलत नहीं होगा कि जो भी थोड़ा मनोरंजन है वो एक्टर्स की वजह से ही है, फिल्म में ईशा गुप्ता भी हैं।
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— Total Dhamaal (@TDTheFilm) January 21, 2019
ऐसा नहीं है कि फिल्म बुरी है, बस ये बासी होने का फील देती है। बहुत सारे लोग, किरदार और बहुत लंबे लंबे सीन फील की काफी फज़ीहत करते हैं। फील काफी मेसी है और अनिल कपूर और माधुरी के नोस्टाल्जिया के अलावा फिल्म के पास कोई और सेलिंग पॉइंट नहीं है, इसलिए बहुत उम्मीद बांध के मत जाइएगा, मायूस होंगे।
Review By : Yohaann Bhaargava and Ruslaan Sayed
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