इन्होंने किए जो बड़े तीन काम
ज्ञानी जैल सिंह ने अपने प्रधानमंत्री काल में देश से जुड़कर तीन ऐसे बड़े काम किए, जिनके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है. इन कामों में पहला था स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन दिलाना. जी हां, वो ज्ञानी जैल सिंह ही थे जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन की व्यवस्था कराई. इनके द्वारा कराया गया दूसरा बड़ा काम था अपने प्रधानमंत्री काल के दौरान ही शहीद उधम सिंह की अस्थियों को लंदन से भारत मंगाना. गौरतलब है कि उधम सिंह जब लंदन में कुछ अंग्रेजों से अपने शहीद स्वतंत्रता सेनानियों की मौत का बदला लेने पहुंचे, तो बदला लेने के बाद अंग्रेजों की गोली से वह वहीं शहीद हो गए. अब उनकी भारतीय परंपरा के अनुसार उनकी अस्थियों को भारत की सरजमीं पर मंगाना बड़ा काम था. इस काम को कर के दिखाया जैल सिंह ने. इसके बाद इनके द्वारा किया गया तीसरा बड़ा काम था गुरु के गहनों और अन्य चीजों को भी मंगवाना.
विवादों से घिरा रहा राष्ट्रपति काल
सिख धर्म के विद्वान पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके ज्ञानी जैल सिंह अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, सत्यनिष्ठा के राजनीतिक कठिन रास्तों को पार करते हुए 1982 में भारत के गौरवमयी राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए, लेकिन इनका ये राष्ट्रपति काल काफी विवादित रहा. उस दौरान मीडिया के एक बड़े हिस्से का यह मानना था कि जैल सिंह के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होने के बजाए इंदिरा गांधी के वफादार होने के कारण उन्हें राष्ट्रपति चुना गया. बताया जाता है कि इंदिरा गांधी की ओर से 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' के एक दिन पहले ही जैल सिंह उनसे मिले और उन्हें इस बारे में मालूम पड़ा. इसके बाद इस ऑपरेशन ब्लू स्टार का पालन करने के आरोप में सिखों की ओर से इनपर अपने पद से इस्तीफा देने का दबाव डाला गया. उसी समय इन्हें अकाल तख्त की ओर से बुलवाया गया और हरिमंदिर साहिब की अपवित्रता व निर्दोष सिखों की हत्या में अपनी निष्क्रियता के बारे में सब कुछ बताने को कहा गया. इसके बाद 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई और इन्होंने राजीव गांधी को देश को प्रधानमंत्री बना दिया. 1987 तक के अपने कार्यकाल के दौरान इन्हें 'ऑपरेशन ब्लूस्टार' व इंदिरा गांधी की हत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से भी होकर गुजरना पड़ा. इतना ही नहीं इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने को लेकर भी वह काफी विवाद में रहे.
ऐसे मिली ज्ञानी की उपाधि
ज्ञानी जैल सिंह का जन्म संधवान के फरीदकोट जिले में एक सिक्ख परिवार में हुआ था. इनको ज्ञानी की उपाधि उस समय मिली जब अमृतसर के शहीद सिख मिशनरी कॉलेज से इन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की पढ़ाई पूरी की. आपको बता दें कि इसके अलावा इन्होंने किसी स्कूल से औपचारिक तौर पर पढ़ाई नहीं की, लेकिन गुरु ग्रंथ साहिब के बारे में पढ़ने के कारण इनको 'ज्ञानी' की उपाधी दी गई और इस तरह ये जैल सिंह से बन गए ज्ञानी जैल सिंह.
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