1. फ्लाइट लेफ्टिनेंट परीक्षित हस्तेकर :
भारतीय वायुसेना में फ्लाइंग लेफ्टिनेंट परीक्षित हस्तेकर की जिंदगी काफी सामान्य थी। तभी वो दिन आया जिसने परीक्षित को पूरा बदल दिया। बात 8 नवंबर 2010 की है, सियाचिन में भारतीय सैनिकों को रसद पहुंचाने के लिए परीक्षित चीता हेलिकॉप्टर में बैठे। हेलिकॉप्टर जैसे ही टेकऑफ हुआ थोड़ी देर में ही वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 22 हतार फीट की ऊंचाई से नीचे गिरे हस्तेकर के सिर में गंभीर चोट आई और वह कोमा में चले गए। करीब महीने भर बाद उन्हें होश आया लेकिन उनकी जिंदगी पहले जैसी नहीं रही। दिमाग में चोट लगने के कारण उनका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका था। इसके बावजूद परिवार की मदद से 8 महीने बाद परीक्षित खड़े हो गए और अपना सारा काम खुद ही करने लगे।
2. मेजर डी.पी. सिंह :
साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में कई भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी। इस युद्ध में हिस्सा ले रहे मेजर डीपी सिंह की जान तो बच गई लेकिन मोर्टार लगने से उन्हें गंभीर चोटें आईं थीं। अस्पताल में डॉक्टरों ने मेजर सिंह को मृत घोषित कर दिया था लेकिन भगवान की कृपा से वह जिंदा तो हो गए लेकिन अपना दायां पैर खो दिया। मेजर डीपी सिंह अब एक ब्लेड रनर के तौर पर अपनी पहचान बना चुके हैं। वह तीन मैराथन में हिस्सा भी ले चुके हैं। मेजर सिंह कृत्रिम पैर से दौड़ लगाते हैं। इस ब्लेड से हॉफ मैराथन दौड़ने वाले वह पहले भारतीय बने।
3. फ्लाइंग अफसर एम.पी. अनिल कुमार :
फ्लाइंग अफसर एम.पी. अनिल कुमार भारतीय वायुसेना में मिग 21 के पायलट थे। 1988 में मोटरसाइकिल से हुए एक हादसे में 24 साल की उम्र में उनके शरीर में गर्दन से नीचे के हिस्से को लकवा मार गया। इसके बाद उन्हें पूरी जिंदगी व्हील चेयर पर बिताई। अनिल कुमार ने अपनी नई ज़िन्दगी मीडिया में कमेंटेटर के तौर पर शुरू की। इसके साथ ही वह मुंह में पेंसिल रखकर लिखने भी लगे। 26 साल वीलचेयर पर बिताने के बाद अनिल कुमार का 2014 में निधन हो गया। हाल में उनकी ज़िन्दगी पर आधारित एक किताब बॉर्न टु फ्लाई आई, जिसके लेखक एयर कमोडोर नितिन साठे का मानना है कि एम.पी. अनिल कुमार की ज़िन्दगी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही और आगे भी रहेगी।
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