ये हैं आप्रवासी भारतीय. इन आप्रवासी भारतीयों के पास विदेश से मतदान करने की कोई सुविधा नहीं है. इन लोगों के पास भारत का पासपोर्ट है. लेकिन भारत में वोट डालने के लिए अपने मतदान केंद्र पर होना ज़रूरी होता है.
प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों की संख्या तक़रीबन ढाई करोड़ है. मंत्रालय की तरफ़ से 2012 में जारी आंकड़ों के अनुसार 1,00,37,761 ऐसे भारतीय हैं जो विदेशों में रह रहे हैं.
यानी एक करोड़ से भी ज़्यादा भारतीय नागरिक ऐसे हैं, जो विदेश पढ़ने, नौकरी करने या किसी और वजह से गए हैं.
वोट के लिए भूख हड़ताल
भारत में अनुपस्थित मत यानी ऐबसेंटी बैलेट की कोई सुविधा नहीं हैं. नॉन रेज़िडेंट इंडियन्स यानी एनआरआई तबके के कुछ लोगों ने ये सुविधा पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिनमें प्रवासी भारत नाम के एक संगठन के कुछ सदस्य भी शामिल हैं.
प्रवासी भारत के सदस्य नागेंद्र चिंदम ने इसी साल जनवरी में इस मुद्दे पर लंदन में तीन दिन भूख हड़ताल भी की थी. जो लोग विदेश से मतदान करने के हक़ की मांग कर रहे हैं, उनमें आईटी इंजीनियर, डॉक्टर, बैंकर, लेखक सहित तमाम अलग-अलग पेशों के लोग शामिल हैं.
याचिकाकर्ता अमित मुखर्जी लंदन में डॉक्टर हैं. वो बताते हैं कि कई लोग उनसे सवाल पूछते हैं कि जब वो विदेश में रहते हैं तो फिर भारत के चुनावों में मतदान करने के लिए इतनी कवायद क्यूं कर रहे हैं? वो पलट कर पूछते हैं, "क्यों नहीं?" उनके मुताबिक वो सिर्फ अपना संवैधानिक हक़ मांग रहे हैं. वो लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव में हिस्सा लेना चाहते हैं.
लंदन में सात साल से रह रहे सृजन रेड्डी ने भी ऐबसेंटी वोट के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. वो बताते हैं कि इस मांग के लिए इससे पहले भी वो कई कोशिशें कर चुके हैं, लेकिन जब किसी और तरीके से बात नहीं आगे बढ़ी तो उन्होंने प्रवासी भारत संगठन के अन्य साथियों के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
वो बताते हैं कि भारत में कुछ भी होता है, चोट सात समंदर पार उन्हें भी लगती है. चाहे इन्वेस्टमेंट हो या चैरिटी, विदेश में बसे भारतीय हमेशा आगे बढ़कर उसमें हिस्सा लेते हैं. लेकिन जब वोट की बात आती है, तो उन्हें भुला दिया जाता है. उनका दिल धड़कता है भारत के लिए. जब वो अपने देश से इतने जुड़े हैं, तो फिर विदेश से वोट डालने की सुविधा क्यों नहीं.
मतदान की सुविधा
उनका कहना है कि अगर वो अपनी पत्नी और बच्ची के साथ भारत वोट डालने के लिए जाएं, तो उनके कम से कम एक से डेढ़ लाख रुपए तो हवाई जहाज के टिकट में ही ख़र्च हो जाएंगे.
प्रवासी भारत की ट्विशा चंद्रा कहती हैं कि उन्हें बहुत तक़लीफ है इस बात से कि वो वोट नहीं डाल सकतीं. उन्हें महसूस होता है कि जैसे कोई उनके देश उनके बारे में नहीं सोचता.
उनके मुताबिक़ विदेश में रहने के चलते उनके पास अलग तरह के अनुभव हैं, कि दूसरे देश समस्याओं से कैसे निपटते हैं.
वो कहती हैं कि अगर उनके पास वोट डालने की सुविधा होती तो वो देश से दूर रहने की वजह से तमाम राजनीतिक दलों के प्रचार से दूर, निष्पक्ष तरीके से वोट डाल सकती हैं.
हालांकि 2010 के बाद से आप्रवासी भारतीय मतदाता सूची में नाम तो दर्ज करा सकते हैं, लेकिन फिर भी, वोट डालने के लिए उनका भारत आना ज़रूरी है. शायद यही वजह है कि अब तक तक़रीबन 11 हज़ार आप्रवासी भारतीयों ने ही मतदान के लिए पंजीकरण कराया है.
लंदन में मिनी इंडिया नाम से मशहूर इलाके साउथहॉल में कुछ लोगों का कहना था कि इस बार के चुनाव बेहद अहम हैं, और इस बार वोट नहीं डाल पाना उन्हें ज़्यादा खल रहा है.
वोट न देने की कचोट
तीस साल से लंदन में रह रहे एक दुकानदार ने बताया कि भारत से लगाव के चलते उन्होंने अब भी भारत का पासपोर्ट रखा है और ब्रितानी नागरिकता भी नहीं ली है. लेकिन वोट नहीं डाल पाना उन्हें बहुत कचोट रहा है. एक और महिला ने बताया कि जब हर वोट मायने रखता है तो विदेश में बसे भारतीयों के लिए कुछ तो सुविधा होनी चाहिए.
दुनिया के कई देशों में ऐबसेंटी बैलेट का सिस्टम है यानी बगैर निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचे हुए भी वोट डाला जा सकता है. अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी के अलावा आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में ग़ैर मौजूदगी में वोट डालने की सुविधा है. थाइलैंड और फिलीपींस में भी खास स्थिति में डाक के ज़रिए वोट डाला जा सकता है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई क़ुरैशी कहते हैं कि भारत में चुनाव का स्तर इतना बड़ा है कि सभी प्रत्याशियों, पार्टियों और निर्वाचन क्षेत्रों के लिए विदेश से वोटिंग मशीन के ज़रिए मतदान कराना बहुत मुश्किल कवायद होगी.
वैसे मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने के बाद चुनाव आयोग ने कहा है कि वो ऑनलाइन वोटिंग की दिशा में और काम करेगा. आयोग ने कहा है कि वो यह समझने की भी कोशिश करेगा कि इस दिशा में आगे क्या कार्रवाई संभव है?
चुनाव आयोग इसका कोई हल जब तक नहीं खोज लेता तब तक परदेस में बसे भारतीयों को इस कसक के साथ ही जीन होगा कि वो लोकतंत्र के इस सबसे बड़े उत्सव का हिस्सा नहीं बन सकते.
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