ऐसा है ये थाना
इस थाने के बारे में बताया गया है कि ये थाना वीरान मरुस्थल क्षेत्र में बना है। यहां आसपास कोई इंसान शायद ही नजर आता है। ऐसे में यहां के पुलिसकर्मियों के पास कोई काम ही नहीं होता। पुलिसकर्मियों का कहना है कि जब वह गश्त पर निकलते हैं, तो उनको सिर्फ एक या दो लोग ही मिलते हैं। कई बार तो ऐसा होता है कि पूरा साल निकल जाता है और एक मुकदमा भी दर्ज नहीं होता।
इसलिए खोला गया था ये थाना
इस थाने को पिछले 23 सालों से हेड कांस्टेबल ही संभालता आ रहा है। वहीं अब जाकर कहीं इस थाने को एक थानेदार मिला है। अब थाने की कमान एक सब इंस्पेक्टर को सौंपी गई है। पुलिसिया सूत्रों की मानें तो 1993 में सीमा पार से जबरदस्त तस्करी होती थी। इस तस्करी को रोकने के लिए यहां शाहगढ़ थाना खोला गया। उसके बाद यहां तारबंदी कर दी गई।
बीते तीन सालों में ऐसा है मुकदमे का स्तर
तारबंदी के बाद तस्करी पर लगाम लग गई। बताया गया है इस थाने पर करीब 200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जिम्मेदारी है। इसके अंडर में दो पंचायतों की 10 हजार की आबादी आती है। इस साल तो अब तक एक भी मुकदमा यहां दर्ज नहीं हुआ है। 2015 में भी सिर्फ दो ही मामले दर्ज हुए। वह भी सड़क दुर्घटना के थे। उससे पहले 2014 में तीन मामले आए। इनमें से एक मारपीट का था और दूसरा चोरी का। तीसरा मुकदमा सड़क दुर्घटना का था।
ऐसा बताया अधिकारी ने
इसको लेकर राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग ने बताया कि यहां बिजली का इंतजाम भी बहुत अनोखा है। यहां की बिजली सौर ऊर्जा से मिलती है। इसके अलावा पानी बाहर से लाया जाता है। यहां काम के तरीके के बारे में उन्होंने बताया कि कभी साल भर मुकदमा न भी दर्ज हो, लेकिन अंत में अगर एक मुकदमा भी दर्ज हुआ और उसका निस्तारण न हो तो भी साल के आखिर में पेंडेंसी का प्रतिशत 100 आता है। 23 साल बाद थाने में नियुक्त होने पर पुलिस उपाधीक्षक नरेंद्र कुमार दवे ने कहा कि एएसआई स्तर का अधिकारी थाने का प्रभारी रहा है। बता दें कि यहां इंस्पेक्टर की नियुक्ति थाने में दर्ज होने वाले मामले, इंस्पेक्टर लेवल के अधिकारी की मौजूदगी और कार्य सम्पादन के आधार पर की जाती है।
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