फिल्मी कहानी से कम नहीं है उनकी कहानी
साल 1989 में रमेश बाबू के पिता का निधन हो गया। ऐसे में घर खर्च की पूरी जिम्मेदारी रमेश की मां के ऊपर आ गई। एक महिला सैलून की दुकान पर लोगों के बाल काट नहीं सकती थी। इसलिए उन्होंने दुकान को किराए पर उठा दिया। और वह खुद घर-घर जाकर बर्तन मांजने का काम करने लगीं। हालांकि उन्होंने रमेश को अच्छी शिक्षा दिलवाई और रमेश ने इलेक्ट्रानिक्स में डिप्लोमा किया। इसके बाद रमेश ने खुद ही अपनी दुकान पर बैठने का मन बनाया और लोगों के बाल काटने शुरु कर दिए।
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अब है टूर एंड ट्रैवल्स का बिजनेस
सैलून से ही रमेश और उनके परिवार का घर-खर्च चलता था। सैलून चलाते समय उन्होंने कार खरीदने का सपना देखा और एक मारूति ओमनी खरीदी। मारूति ओमनी खरीदने के बाद उन्होंने इसे किराए पर देना शुरू कर दिया। कार से आने वाले इनकम और सैलून की दुकान से होने वाली कमाई से रमेश ने दूसरी कार खरीदने का मन बनाया। इसके बाद रमेश बाबू के कार का बिजनेस चल गया। और उन्होंने ऐसे ही करके एक के बाद एक दौ सौ कारें खरीद लीं। आज रमेश बाबू के पास रॉल्स रायॅस से लेकर मर्सिडीज तक सभी कारें हैं। रमेश बाबू इन कारों को किराए पर देते हैं और रोजाना एक हजार से लेकर पचास हजार रोजाना का किराया लेते हैं।
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रॉल्स रॉयस पर बैठकर आते हैं बाल काटने
रमेश बाबू आज भले ही अरबपतियों में शामिल हैं लेकिन वह अपने पुराने बिजनेस यानी सैलून को नहीं छोड़े। रमेश रोज सुबह दो घंटे और शाम को दो घंटे लोगों के बाल काटते हैं। और बाकी समय अपनी ट्रैवल्स का बिजनेस संभालते हैं।
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