इस साल 25 जनवरी को हानिया मोहीब केवल एक ही जगह जाना चाहती थीं. उस दिन मिस्र की क्रांति की दूसरी वर्षगाँठ थी और वे तहरीर चौक गई थीं.
वे बताती हैं, “मैं उस दिन तहरीर पर जाने को बेकरार थी. मैंने अकेले ही जाने का फ़ैसला किया क्योंकि न जाना तो विकल्प ही नहीं था.”
मगर जब 43 साल की फ्रीलांस पत्रकार हानिया तहरीर चौक पर पहुँचीं, तो माहौल देखकर परेशान हो गईं. उन्होंने बताया, “कुछ तो गड़बड़ थी. माहौल नकारात्मक था. मैंने वहाँ से लौटने का फ़ैसला किया.”
मगर उन्हें वहाँ से निकलने का मौका ही नहीं मिला. वह बताती हैं, “अचानक मैंने ख़ुद को बहुत से मर्दों के घेरे में पाया, जो मेरे शरीर के हर अंग पर हमला कर रहे थे. उन्होंने मुझे नंगा ही कर दिया. उनके हाथ मेरे पूरे बदन पर थे. मुझे लगा कि मैं मरने वाली हूँ क्योंकि वो बहुत आक्रमक थे. शायद एक समय के बाद मैं बेहोश हो गई थी क्योंकि वो एक स्कार्फ़ के साथ मेरा गला घोंटने की कोशिश कर रहे थे.”
कई हमलावर हानिया के पीछे-पीछे एंबुलेंस तक भी आए और वहां भी उन्होंने अपनी हरकतें जारी रखीं. ये सब आधे घंटे से ज़्यादा समय तक चला. ऐसे कई हमले तहरीर चौराहे पर हुए.
हानिया को कई मर्दों ने घेर रखा था और आसपास से गुज़रते लोगों को बता रहे थे कि वे किसी की मदद कर रहे हैं.
क्रांति का बदरंग रूप
मिस्र में यौन हिंसा पुरानी समस्या मानी जाती है है लेकिन 2011 में हुस्नी मुबारक के जाने के बाद से ऐसे हमले बढ़ गए हैं. बढ़ती यौन हिंसा मिस्र की क्रांति का एक बदरंग रूप है.
संयुक्त राष्ट्र का एक अध्ययन बताता है कि मिस्र की 10 में से नौ महिलाएँ यौन हिंसा का शिकार हो चुकी हैं. ज़्यादातर घटनाएँ तहरीर चौक पर हुए प्रदर्शनों में हुई हैं.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पीड़ितों का मानना है कि यौन हिंसा महिला प्रदर्शनकारियों को चुप कराने का तरीका है. हालांकि यौन हमले का हानिया पर बुरा असर पड़ा, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी आवाज़ बुलंद की.
मिस्र जैसे रूढ़िवादी समाज में उन्होंने ख़ुद पर हमले के बारे में खुलकर बात की है. इस मामले को लेकर मौलवी साद अराफ़ात ने कहा था कि जो महिलाएँ परेशान किए जाने की शिकायत करती हैं, वो ख़ुद ही मुसीबत मोल ले रही हैं.
उन्होंने एक टीवी प्रसारण में कहा था, “मैं महिलाओं से कहता हूँ कि आप ही इस सबका कारण हैं. आप यूँ ही इस बात को बाहर लेकर आई हैं. इसलिए अल्लाह ने आपके साथ ऐसा किया.”
उस टीवी चैनल को अब बंद कर दिया गया है, लेकिन कार्यकर्ता जेनेट अब्दुल कहती हैं कि महिलाओं को ही दोष देने वालों की कमी नहीं है.
'मैं हैरेसर हूँ'
जेनेट और हानिया जैसी महिलाएँ यौन हमलों के सिलसिले में संयुक्त क़ानूनी मामला चलाने की कोशिश कर रही हैं. न्याय के लिए वे कितना इंतज़ार करने को तैयार हैं, इस पर हानिया कहती हैं, “दशकों तक.”
कुछ ने अपने समूह बना लिए हैं जैसे ‘हैरेस द हैरेसर्स’ यानी परेशान करने वालों को परेशान करो. ये लोग गलियों में घूमते हैं और संदिग्ध लोगों पर नज़र रखते हैं. ऐसे किसी व्यक्ति के मिलने पर उस पर पेंट स्प्रे किया जाता है.
हम भी इस ग्रुप के साथ गए, जिसमें कुछ युवा शामिल थे. जब एक संदिग्ध व्यक्ति नज़र में आया तो उसे घेर लिया गया. वह भले ही दोषी था या नहीं, पर उसकी पीठ पर लिख दिया गया- मैं प्रताड़ित करने वाला व्यक्ति हूँ.
International News inextlive from World News Desk