अब इन सीढ़ियों को तो बना दिया गया है, पर कोई ये बताएगा कि आखिर इनसे उतर कर हम जाएंगे कहां?
आखिर इस ट्रैक को क्या सोचकर बनाया गया था। अब ट्रेन का साइज इतना छोटा थोड़ी होता है।
इस गेट पर ताला लगाने से आखिर फायदा क्या होने वाला है।
इन्होंने गेट खोलने को कह दिया लेकिन भाई हैंडल अंदर से पकड़कर कैसे खोला जाएगा।
इन दो टॉयलेट को देखकर तो ऐसा लग रहा है मानो टारगेट था कि यहां पर दो से कम टायलेट लगेंगे ही नहीं। फिर चाहे जगह हो या ना हो।
इस ट्रैक पर ट्रेन आ तो रही है लेकिन ये जाएगी कहां ये बड़ा रहस्य है।
इस बालकनी में लोग खड़े होने के लिए आएंगे कहां से?
मजे की बात तो यह है कि इस कैमरे में नजर क्या आ रहा होगा।
मानना पड़ेगा इसको बनाने वाले को।
भाई ऐसा लग रहा है कि यहां पर हाथ धोने के लिए वॉशबेसिन लगना तो सो लग गया। अब इससे किसी को मतलब नहीं है कि नल कहां पर है और बेसिन कहां पर।
आपने डबल डेकर बस देखी होगी पर क्या कभी डबल डेकर सीढ़ियां देखी हैं।
अब इसको कट्टर दुश्मनी कहेंगे या कभी ना मिटने वाला प्यार।
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