साठ साल से ऊपर उम्र वाले होते हैं ज्यादा प्रभावित
जीवनसाथी की मौत के बाद दिल की धड़कनों के अनियमित होने की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। एक शोध में यह जानकारी देते हुए बताया गया है कि यह खतरा 60 साल से कम उम्र वालों में ज्यादा होता है। इस स्थिति को 'एट्रियल फिब्रिलेशन' कहा जाता है, जिससे स्ट्रोक और हृदय गति रुकने का खतरा बढ़ जाता है। तो अब अगर एक उम्र के बाद अगर किसी जोड़े में से कोई एक गुजर जाए तो आप ये मत समझ लीजियेगा कि इस उम्र में लोग हादसे से प्रभावित नहीं होते। वास्तव में रिश्ता जितना पुराना होगा असर उतना ज्यादा होता है।
तनाव बनता हैं कारण
जीवनसाथी के गुजरने का तनाव सबसे ज्यादा होता है और डेनमार्क के शोधकर्ताओं के मुताबिक, अत्यधिक तनाव के कारण दिल की धड़कन पर सीधा असर पड़ता है। पहले वाले मामले के ठीक उलट डेनमार्क के आरहस विश्वविद्यालय से संबद्ध सिमोन ग्राफ ने बताया कि, "यह खतरा उनके लिए ज्यादा है, जो युवा होते हैं और जिन्होंने अपेक्षाकृत स्वस्थ साथी को खो दिया हो।" यह शोध ओपेन हार्ट नाम के ऑनलाइन जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
दिन गुजरने के साथ कम होता जाता है खतरा
शोध में बताया गया है कि जीवनसाथी की मौत के 8 से 14 दिनों तक इसका खतरा सबसे ज्यादा रहता है, हालांकि बाद में यह धीरे-धीरे कम हो जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि ऐसे लोगों को दिल की धड़कन की अनियमितता के अलावा भावनात्मक तनाव का खतरा भी होता है। इससे हृदय रोग का खतरा और बढ़ जाता है।
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